ब्रिटेन में पहली बार सफल ''रे-ट्रेसिंग गाइडेड लेजर सर्जरी'', अब बिना चश्मे के देख सकेंगे दुनिया
punjabkesari.in Sunday, Nov 10, 2024 - 12:47 PM (IST)
नेशनल डेस्क. 50 साल की रेबेका हैकवर्थ को चश्मे के बिना पढ़ने में कठिनाई होती थी और निकट दृष्टि दोष (नेयर-विजन) की समस्या थी, अब उन्हें चश्मे की आवश्यकता नहीं है। यह चमत्कारी बदलाव ब्रिटेन में पहली बार हुई रे-ट्रेसिंग गाइडेड लेजर सर्जरी के माध्यम से हुआ है, जिसे अब "सुपर-विजन" कहा जा रहा है।
इस नई तकनीक से मरीज की आंखों का एक डिजिटल 3D क्लोन बनता है, जिसे 'आईवतार' कहा जाता है। यह तकनीक आंखों की अनूठी विशेषताओं का गहराई से विश्लेषण करती है और सटीक सर्जरी में मदद करती है, जिससे रोगी को सामान्य दृष्टि प्राप्त होती है। डॉ. डेविड एलाम्बी इस सर्जरी का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके अनुसार इस तकनीक की सफलता दर 100% है, जिससे मरीजों को बेहतर दृष्टि मिल रही है।
'आईवतार' तकनीक का काम करने का तरीका
इस सर्जरी में सबसे पहले एक साइटमैप स्कैनर डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है, जो रोगी की आंख का 3D मॉडल या 'आईवतार' बनाता है।
इस 'आईवतार' में आंख की संरचना के सटीक माप, जैसे कि कॉर्निया और लेंस को उन्नत इमेजिंग तकनीकों के माध्यम से कैप्चर किया जाता है।
यह 'आईवतार' एक वर्चुअल ब्लूप्रिंट के रूप में कार्य करता है, जो सर्जन को आंख की विशेषताओं का विस्तार से निरीक्षण करने और समझने की सुविधा देता है।
सर्जरी से पहले इस मॉडल पर कई बार परीक्षण किया जाता है, जिससे सटीक नतीजे सुनिश्चित होते हैं।
लेजर की 2,000 किरणों से ट्रेस होती हैं आंखें
इस तकनीक में लेजर की 2,000 किरणें आंख की संरचना को ट्रेस करती हैं ताकि यह देखा जा सके कि वे किस तरह मुड़ती हैं और कॉर्निया व लेंस के माध्यम से कैसे फोकस होती हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी किरणें रेटिना पर सही ढंग से फोकस हो, जिससे रोगी को सर्वोत्तम दृष्टि मिल सके।
लाभ और उपयोग
निकट दृष्टि दोष और कॉर्निया का पतला होना जैसी समस्याओं के लिए यह तकनीक बेहद प्रभावी है।
इसके अलावा 'आईवतार' तकनीक उम्र से संबंधित आंखों में होने वाले बदलावों का अनुमान भी लगा सकती है और उपचार को इस प्रकार से डिज़ाइन कर सकती है कि भविष्य में भी दृष्टि बनी रहे।
इस सर्जरी से नाइट विजन (रात में देखने की क्षमता) में भी सुधार होता है, जो पहले की लेजर सर्जरी में उपलब्ध नहीं था।
इलाज की लागत और उपलब्धता
इस नई तकनीक से दोनों आंखों की सर्जरी पर लगभग 7 लाख रुपए का खर्च आता है।
फिलहाल, यह तकनीक यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में उपलब्ध है, लेकिन ब्रिटेन में इसे पहली बार लागू किया गया है।