92 साल बाद ''आम'' हुआ रेल बजट, जानिए पिछले बजट में क्या कुछ बदला?

punjabkesari.in Saturday, Feb 01, 2025 - 10:32 AM (IST)

नेशनल डेस्क। वित्त वर्ष 2016-17 तक भारत में रेल बजट और आम बजट अलग-अलग पेश किए जाते थे लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया और दोनों बजटों को एक साथ पेश किया जिससे 92 साल पुरानी परंपरा समाप्त हो गई। 1 फरवरी 2017 को देश का पहला संयुक्त बजट संसद में पेश किया गया।

क्या 2025 के बजट में रेल बजट भी होगा शामिल? 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 को बजट पेश करेंगी जिसमें रेल बजट भी शामिल होगा। 2016 तक रेल बजट अलग से पेश किया जाता था लेकिन 2017 से यह आम बजट में समाहित कर दिया गया था।

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रेल बजट का आकार कैसे बढ़ा? 

जब देश स्वतंत्र हुआ तब 1947-48 में रेल बजट का आकार केवल 14 करोड़ 28 लाख रुपये था। जैसे-जैसे रेलवे का विस्तार हुआ रेल बजट भी बढ़ता गया। 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार के आखिरी रेल बजट में 63,363 करोड़ रुपये का आवंटन था। 2024-25 के बजट में रेल बजट का आकार बढ़कर 2,62,200 करोड़ रुपये हो गया और यह आम बजट के साथ ही पेश किया गया।

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रेल बजट का इतिहास

1924 से 2016 तक रेल बजट की परंपरा 1924 में शुरू हुई थी जब एकवर्थ समिति की सिफारिशों पर इसे आम बजट से अलग पेश किया गया था। 2016 तक यह परंपरा जारी रही और उस समय के रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आखिरी बार अलग रेल बजट पेश किया।

क्यों खत्म की गई रेल बजट की अलग परंपरा? 

2016 में सरकार ने निर्णय लिया कि रेल बजट को आम बजट में विलय कर दिया जाएगा। यह निर्णय नीति आयोग की सिफारिशों पर लिया गया था। इसके मुताबिक रेलवे को अब सरकार को लाभांश देने से छूट मिलेगी और इसके बजाए रेल मंत्रालय को पूंजीगत व्यय के लिए वित्त मंत्रालय से बजट सहायता मिलेगी।

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क्या फायदे हुए हैं रेल बजट और आम बजट के विलय से? 

रेल और आम बजट के विलय का मुख्य उद्देश्य यह था कि केंद्र सरकार का वित्तीय लक्ष्य एक समग्र दृष्टिकोण से देखा जा सके। इससे राजमार्गों, रेलवे और जलमार्गों के बीच परिवहन योजना में सुधार हुआ और वित्त मंत्रालय को अधिक लचीलापन मिला जिससे वे संसाधनों का बेहतर आवंटन कर सके।

रेल बजट और आम बजट का विलय 

एक ऐतिहासिक बदलाव रेल बजट का आम बजट से विलय करना एक ऐतिहासिक कदम था। पहले रेलवे का राजस्व आम बजट से अधिक था लेकिन समय के साथ रेलवे का राजस्व घटने लगा। 2015-16 तक यह आंकड़ा सिर्फ 11.5 प्रतिशत रह गया था। इसके बाद विशेषज्ञों ने इस परंपरा को समाप्त करने का सुझाव दिया जिसे सरकार ने लागू किया।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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