नजरिया: राजभवनों पर फिर से सवाल

punjabkesari.in Sunday, Jul 08, 2018 - 01:22 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): दिल्ली में एलजी और सरकार के मध्य चल रही खींचातानी के बीच ओडिशा से एक हैरानीजनक खबर आयी है। ओडिशा के नए नए लाट साहब यानी राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल ने अपने निजी दौरे के लिए 46 लाख का हवाई किराया खर्च किया है। इसके बाद एक बार फिरसे राजभवनों के अनावश्यक और खर्चीले प्रारूप को लेकर चर्चा गरमा गयी है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है कि राजभवनो ने इस तरह से जनता का पैसा बहाया हो।  लेकिन गणेशी लाल का मामला इसलिए ज्यादा हैरान करने वाला है क्योंकि वे बीजेपी की राष्ट्रीय अनुशासन समिति के अध्यक्ष रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने इसी जिम्मेदारी के तहत कांग्रेस पर देश लूटने के आरोप भी लगाए थे। बाद में मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें अपनी उसी कांग्रेस विरोधी मुखरता का मेवा मिला और वे इसी साल मई में ओडिशा के राज्यपाल बनाये गए।  
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गणेशी लाल हरियाणा के सिरसा से सम्बन्ध रखते हैं और वहीं पर अपने नागरिक अभिनंदन के लिए पहुंचे थे। उन्होंने 10 से 13 जून तक सिरसा का दौरा किया। इसके लिए भुवनेश्वर से दिल्ली तक चार्टेड प्लेन लिया गया और आगे निजी चॉपर किराये पर लिया  गया। इन दोनों का किराया ही 46 लाख 18 हज़ार था। बाकी दौरे का खर्च अलग से है। जब इतना ज्यादा खर्च हुआ तो ओडिशा सरकार ने भी लिखित में सफाई मांगी। लेकिन तब उसे सियासी रंगत देकर मामला  शांत करने की कोशिश हुई। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या इस तरह से आम जनता की कमाई राज्यपालों को उड़ानी चाहिए? 
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यौन शोषण तक के आरोप 
राजभवनों की बदनामी का सिलसिला गणेशी लाल के अकूत धन खर्च तक ही सीमित नहीं है। देश में एक अन्य राज्यपाल  यौन शोषण के आरोप झेल रहे हैं। उन पर राजभवन की ही एक महिला अधिकारी के यौन शोषण के आरोप हैं। एक राज्यपाल पद पर रहते हुए दिल्ली में ज़मीन घोटाले को लेकर विवादित रही हैं। उन्हें बाद में गिरफ्तार भी किया गया था।   कई अन्य राज्यपालों पर भी शाही अंदाज़ और विलासिता के आरोप हैं। ऐसे में यह सवाल फिर से खड़ा हो गया है कि  आखिर राजभवनों की जरूरत क्या है? खासकर तब जब उनका मौजूदा भारतीय शासन/प्रशासन में कोई सक्रिय रोल ही नहीं है तो जनता राजभवनों का शाही खर्च क्यों सहन करे? आंकड़े बताते हैं कि देश के राजभवनों पर औसतन पांच सौ करोड़  वार्षिक  खर्च आता है। यह सिर्फ राजभवनों के रख-रखाव का खर्च है। लाट साहबों के दौरे और उनके लाव -लश्करों का खर्चा अलग से हैं। आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि इतने बजट में देश में हर 20 जिलों में विकास की गंगा बहाई जा सकती है।  
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शांता ने किया था विरोध 
राजभवनों को लेकर खुसर-पुसर लम्बे अरसे से होती रही है, लेकिन पहली बार इस मसले पर शांता कुमार ने खुलकर ब्यान दिया था। बकौल शांता कुमार राजभवन फिजूलखर्ची के गढ़ हैं और वर्तमान परिदृश्य में इनकी कोई जरूरत नहीं है। शांता कुमार का यह ब्यान तब आया था जब उन्हें राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा था। उसके बाद अन्य नेताओं ने भी उनकी बात का समर्थन किया था।
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आचार्य देवव्रत हैं जरा हटकर 
इस सारी बहस के बीच हिमाचल के मौजूदा राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने एक नई मिसाल पेश की है। देवव्रत भीहरियाणा से ही हैं लेकिन गणेशी लाल से उलट उन्होंने राजभवन में फिजूलखर्ची रोकने को कई कदम उठाये हैं। देवव्रत ने राजभवन में समारोहों के दौरान मांस-मदिरा परोसे जाने पर रोक लगा दी है। अंग्रेजों के जमाने से शिमला राजभवन में चली आ रही मधुशाला उन्होंने पहले ही दिन बंद करवा दी थी। राजभवन में सूरज की रौशनी का वैज्ञानिक इस्तेमाल करके उन्होंने  पिछले साल ही पांच लाख का बिजली बिल बचाया है।  


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vasudha

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