Prada Kolhapuri controversy: 'प्राडा 1.2 लाख रुपए में बेच रहा एक जोड़ी कोल्हापुरी चप्पल', भड़के मंत्री प्रियांक खरगे ने उठाई आवाज
punjabkesari.in Monday, Jun 30, 2025 - 01:51 PM (IST)

नेशनल डेस्क: इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड ‘प्राडा' के कोल्हापुरी चप्पलों के डिजाइन की नकल किए जाने को लेकर विवाद पैदा होने के बाद कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इन प्रसिद्ध चप्पलों को तैयार करने वाले राज्य के कारीगरों के नाम, उनकी कला और विरासत को मान्यता दी जानी चाहिए, न कि उन्हें दरकिनार किया जाना चाहिए। इतालवी ब्रांड पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि प्राडा कोल्हापुरी चप्पल 1.2 लाख रुपए प्रति जोड़ी की दर से बेच रहा है।
So, Prada is selling what are essentially Kolhapuri chappals for ₹1.2 lakh a pair.
— Priyank Kharge / ಪ್ರಿಯಾಂಕ್ ಖರ್ಗೆ (@PriyankKharge) June 29, 2025
Few know this: a large number of the artisans who make these iconic chappals actually live in Karnataka, in Athani, Nippani, Chikkodi, Raibag and other parts of Belagavi, Bagalkot and Dharwad.…
‘वे पीढ़ियों से ये चप्पलें बनाते आ रहे हैं... '
खरगे ने रविवार को ‘एक्स' पर कहा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि इन प्रसिद्ध चप्पलों को बनाने वाले कारीगर बड़ी संख्या में कर्नाटक के अथानी, निप्पानी, चिक्कोडी, रायबाग और बेलगावी, बागलकोट तथा धारवाड़ के अन्य हिस्सों में रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वे पीढ़ियों से ये चप्पलें बनाते आ रहे हैं और इन्हें आसपास के शहरों में बेचते हैं, खासकर कोल्हापुर में, जो समय के साथ-साथ न केवल उसका मुख्य बाजार बन गया है बल्कि उसके ब्रांड के रूप में भी स्थापित हो गया है।''
खरगे ने कहा कि जब वे समाज कल्याण मंत्री थे, तो उन्होंने महाराष्ट्र को कोल्हापुरी चप्पलों के एकमात्र जीआई टैग के अधिकार के लिए दबाव डालते देखा था। उन्होंने कहा, ‘‘चमड़े के उत्पाद बेचने वाली सरकारी संस्था डॉ. बाबू जगजीवन राम चमड़ा उद्योग विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से हमने इस मुद्दे को उठाया और यह सुनिश्चित करने के लिए लड़ाई लड़ी कि कर्नाटक के कारीगर इसके श्रेय से वंचित न रह जाएं। मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि हम सफल हुए। जीआई टैग आखिरकार कर्नाटक और महाराष्ट्र के चार-चार जिलों को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। यह कभी भी दो राज्यों के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि हमारी साझा विरासत को संरक्षित करने और हमारे कारीगरों को वह कानूनी मान्यता देने के बारे में थी जिसके वे हकदार हैं।''
मंत्री ने कहा कि यह प्राडा प्रकरण इस बात की याद दिलाता है कि केवल जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) की मान्यता ही पर्याप्त नहीं है। साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक उद्यमिता के महत्व पर जोर दिया। प्रियांक खरगे ने कहा, ‘‘हमें इन कारीगरों के लिए कौशल, ब्रांडिंग, डिजाइन नवाचार और वैश्विक बाजार तक पहुंच में निवेश करने की आवश्यकता है। वे केवल श्रेय के हकदार नहीं हैं, वे बेहतर मूल्य, व्यापक पहुंच और अपनी कला से स्थायी, सम्मानजनक आजीविका हासिल करने के हकदार हैं।'' उन्होंने कहा कि जब अंतरराष्ट्रीय फैशन हाउस हमारे डिजाइन को अपनाते हैं तो, हमारे कलाकारों के नाम, काम और विरासत को भी प्रदर्शित करना चाहिए, न कि उन्हें दरकिनार करना चाहिए।