मौत के बाद यहां दफन होना चाहते थे पोप फ्रांसिस, मृत्यु से पहले ही बता दी अपनी आखिरी इच्छा
punjabkesari.in Monday, Apr 21, 2025 - 04:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ईसाई धर्म के सर्वोच्च नेता, पोप फ्रांसिस, का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया है, जिससे विश्वभर में शोक की लहर दौड़ गई है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन बाद में उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था।
लंबे समय से चल रहा था इलाज
14 फरवरी को उन्हें फेफड़ों में संक्रमण, निमोनिया और एनीमिया के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान उनकी हालत को लेकर वेटिकन ने चिंता जताई थी। ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होने के संकेत भी मिले थे। लगभग पांच हफ्तों तक इलाज चलने के बाद 14 मार्च को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी, लेकिन स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार नहीं हो पाया।
ऐतिहासिक पोप रहे फ्रांसिस
पोप फ्रांसिस का कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। वे 1300 वर्षों में पहले गैर-यूरोपीय पोप थे और पहले लैटिन अमेरिकी जिन्होंने यह पद संभाला। 2013 में पोप चुने जाने के बाद उन्होंने चर्च के पारंपरिक रवैये को चुनौती देते हुए कई क्रांतिकारी फैसले लिए।
उन्होंने LGBTQ+ समुदाय को चर्च से जोड़ने की पहल की। समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च में स्वागत को वैधता दी और समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की अनुमति दी। इसके साथ ही उन्होंने पुनर्विवाह जैसे संवेदनशील विषयों पर भी उदार रुख अपनाया और धार्मिक मंजूरी दी।
बच्चों के यौन शोषण पर जताया था दुख
पोप फ्रांसिस ने चर्च के भीतर हुए बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं पर खुले तौर पर माफी मांगी थी। उन्होंने इन घटनाओं की जांच के आदेश दिए और दोषियों को सजा दिलाने की कोशिश की। उनके नेतृत्व में चर्च की छवि को सुधारने के प्रयास किए गए।
एक सदी बाद वेटिकन के बाहर दफन होने की इच्छा
पोप फ्रांसिस ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि वे परंपरा से हटकर वेटिकन के बजाय रोम की 'सेंट मैरी मेजर बैसिलिका' में दफन होना चाहते हैं। यह निर्णय उनके ‘मदर ऑफ गॉड’ माने जाने वाली मैरी के प्रति गहरे लगाव को दर्शाता है। यदि ऐसा होता है, तो वे पिछले 100 वर्षों में पहले पोप होंगे जिन्हें वेटिकन से बाहर दफनाया जाएगा।
उनकी विदाई न केवल कैथोलिक समुदाय बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक युग का अंत है। पोप फ्रांसिस ने धार्मिक मान्यताओं को आधुनिक संवेदनाओं से जोड़ते हुए जो राह दिखाई, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।