पीएम मोदी ने लॉन्च किया ओडिशा इतिहास' काहिंदी संस्करण, बोले- ओडिशा के वीरों को याद रखेगा देश

punjabkesari.in Friday, Apr 09, 2021 - 01:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क:  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  ने आज ‘उत्कल केसरी' हरेकृष्ण महताब द्वारा लिखित पुस्तक ‘ओडिशा इतिहास' के हिंदी संस्करण का विमोचन करेंगे। विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि पूर्वी हिस्सा विकसित होगा, तो हिंदुस्तान विकसित होगा। उन्होंने कहा कि पाइक संग्राम, गंजाम आंदोलन और लारजा कोल्ह आंदोलन से लेकर सम्बलपुर संग्राम तक ओडिशा की धरती ने विदेशी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की ज्वाला को हमेशा नई ऊर्जा दी। 

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पीएम मोदी के संबोधन की मुख्य बातें इस प्रकार:-

  • ओडिशा के अतीत को आप खंगालें, आप देखेंगे कि उसमें हमें ओडिशा के साथ साथ पूरे भारत की ऐतिहासिक सामर्थ्य के भी दर्शन होते हैं।
  • इतिहास में लिखित ये सामर्थ्य वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं से जुड़ा हुआ है, भविष्य के लिए हमारा पथप्रदर्शन करता है।
  • व्यापार और उद्योगों के लिए सबसे पहली जरूरत है- इनफ्रास्ट्रक्चर।
  • आज ओडिशा में हजारों किमी के नेशनल हाइवेज़ बन रहे हैं, कोस्टल हाइवेज बन रहे हैं जो कि पॉर्ट्स को कनैक्ट करेंगे।
  • सैकड़ों किमी नई रेल लाइंस पिछले 6-7 सालों में बिछाई गई हैं। इनफ्रास्ट्रक्चर के बाद अगला महत्वपूर्ण घटक है उद्योग।
  • इस दिशा में उद्योगों, कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए काम हो रहा है।
  • ऑयल और गैस से जुड़ी जितनी व्यापक संभावनाएं ओडिशा में मौजूद हैं, उनके लिए भी हजारों करोड़ का निवेश किया गया है।

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आंदोलन के प्रमुख सेनानी थे  हरेकृष्ण महताब
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और कटक से बीजू जनता दल के सांसद भर्तृहरि महताब भी उपस्थित रहेंगे। ओड़िया और अंग्रेजी में पहले से ही उपलब्ध इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद शंकरलाल पुरोहित ने किया है। उल्लेखनीय है कि डा. हरेकृष्ण महताब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उल्लेखनीय राजनेताओं में से एक थे। वे 1946 से 1950 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे।  ​वह 1942 से 1945 तक लगभग दो साल अहमदनगर फोर्ट जेल में बंद रहे और उसी दौरान उन्होंने ओड़िशा इतिहास पुस्तक की रचना की।


पुस्तक में ओडिशा के इतिहास का वर्णन
पुस्तक में ओडिशा के इतिहास का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि द्राविड भाषा में ‘ओक्वल' और ‘ओडिसु' शब्द का अर्थ किसान है । कन्नड़ भाषा में किसान को ‘ओक्कलगार' कहते हैं । मजदूरों को तेलगु भाषा में ‘ओडिसु' कहते हैं । इन ‘ओक्कल' और ‘ओडिसु' शब्दों से आर्यो ने संस्कृत में ‘उत्कल' और ओड्र' शब्द बनाये । पुस्तक के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य (322 ई. पू.) की राजसभा में यूनान राजदूत मेगास्थनीज के भारत के संदर्भ में वर्णन और इतिहासकार प्लीनी के भारत के भूगोल के बारे में किए गए उल्लेख के अनुसार, कलिंग की सीमा उत्तर में गंगा, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में पर्वतमाला और पूर्व में समुद्र है । चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ओड्र के बारे में लिखा कि इसकी सीमा 1167 मील थी और दक्षिण पूर्व में समुद्र स्थित था ।

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ओडिशा को लेकर बहुत कुछ है इस किताब में
इसमें कहा गया है कि गंगा के मुहाने पर द्वीप पुंज भी कलिंग साम्राज्य के अंतर्गत थे । कालक्रम में वह बार बार परिवर्तित हुए । उत्कल राज महानदी तक फैला था। कालिंग राज्य गोदावरी तक विस्तृत था । बीच में कलिंग राज्य में दो राजवंशों के बीच संघर्ष के कारण पुरी और गंजाम जिलों को लेकर नया राज्य बना। ओडिशा इतिहास पुस्तक के अनुसार, गे चलकर उत्कल और कलिंग एक समूह हो गए। इसके बाद दोनों की भाषा, स्वर और लिपि एक हो गए ।'' पुस्तक के प्रथम अध्याय में ओडिशा की उत्पत्ति शीर्षक के तहत कहा गया है कि लम्बे समय तक दोनों (उत्कल और कलिंग) एक शासन के अधीन रहे । कालक्रम में जीवन संघर्ष में कलिंग गोदावरी तक अपनी सीमा नहीं रख सका और उत्कल भी उत्तर में सीमा सुरक्षित न रख सका ।

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वैदिक- पौराणिक युग से शुरू हुआ था ओडिशा का इतिहास
डा.हरेकृष्ण महताब ने लिखा, कि इस प्रकार हजारों वर्ष तक घात प्रतिघात में तीनों इलाके वर्तमान के ओडिशा राज्य में परिचित रहे हैं ।  ओडिशा इतिहास पुस्तक के दूसरे परिच्छेद में अति पुरातन इतिहास शीर्षक के तहत कहा गया है कि भारत के अन्य प्रदेशों के प्राचीन इतिहास की तरह ओडिशा का इतिहास भी वैदिक- पौराणिक युग से शुरू होता है । इसमें कहा गया है कि वेद आदि में कहीं कलिंग, उड्र या उत्कल का नाम नहीं मिलता है। इसके बाद ‘ब्राह्मण साहित्य' के युग में ओडिशा के किसी अंचल का नाम नहीं मिलता है । कुछ विद्वानों का मत है कि ‘ऐतरेय ब्राह्मण' में कलिंग राजा का उल्लेख है । पुस्तक में बताया गया है कि महाभारत काल में 1100 ई. पू. में कलिंग की राजधानी राजपुरी का उल्लेख है । उस काल में कर्ण, दुर्योधन के चित्रांगदा के स्वयंवर में जाने व दुर्योधन की ओर से कर्ण द्वारा उत्कलियों को परास्त करने का उल्लेख है ।


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Content Writer

vasudha

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