Pitru paksha 2019: श्राद्ध निकालते हैं ज्योतिष और वास्तुदोषों के चक्रव्यूह से बाहर

punjabkesari.in Wednesday, Sep 18, 2019 - 07:25 AM (IST)

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ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है, ईसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है। इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढऩे का रिवाज है। बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान हैं। तिब्बत में इसे तंत्रमंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिम समाज में मोमबत्ती प्रज्जवलित करने की प्रथा है।

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दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति और श्रद्धापूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है इसलिए इसे ‘कनागत’ भी कहते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। यह एक श्रद्धापर्व है, भावना प्रधान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके, दोनों हाथों द्वारा आह्वान करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।

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दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तु शास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैऋत्य दिशा (दक्षिण - पश्चिम का कोना) में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं, पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं।

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पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध
मान्यता है कि ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो निम्र परिणाम देखने को मिलते हैं : 
1. संतान न होना, 2. धन हानि, 3. गृह क्लेश, 4. दरिद्रता, 5. मुकद्दमे, 6. कन्या का विवाह न होना, 7. घर में हर समय बीमारी, 8. नुक्सान पर नुक्सान, 9. धोखे, 10 दुर्घटनाएं, 11. शुभ कार्यों में विघ्न।


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Niyati Bhandari

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