हर मिनट की कीमत ₹2.5 लाख, संसद अगर न चले तो जानें कितना खाली हो जाता देश का खजाना?

punjabkesari.in Tuesday, Jul 29, 2025 - 08:42 AM (IST)

नई दिल्ली: संसद का मानसून सत्र जारी है, लेकिन चर्चा से ज्यादा सुर्खियों में हैं हंगामा, वॉकआउट और नारेबाजी। जनता को भले लगे कि यह सिर्फ राजनीतिक खींचतान है, लेकिन असल में हर मिनट की यह खामोशी और टकराव देश के खजाने पर भारी पड़ रही है। संसद का हर गुजरता मिनट सरकारी खजाने से औसतन ₹2.5 लाख का खर्च लेता है—और यही वजह है कि जब सदन बाधित होता है, तो उसका आर्थिक असर बेहद चौंकाने वाला होता है।  प्रति घंटे करीब 1.5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। वहीं, अगर संसद में कार्यवाही पूरे दिन चलती है तो यह खर्च 9 करोड़ तक पहुंच जाता है। हालांकि,  कोई आधिकारिक तौर खर्चे का डेटा नहीं दिया गया है।

संसद चलाने का खर्च: हर मिनट की कीमत ₹2.5 लाख
लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों को चलाने का औसत खर्च करीब ₹1.25 लाख प्रति मिनट प्रति सदन है। यह आंकड़ा पहली बार 2012 में सामने आया था, जिसे बाद में संसद के पूर्व महासचिव ने भी स्वीकार किया। इस खर्च में सांसदों का वेतन-भत्ता, संसद भवन का रखरखाव, बिजली-पानी, सुरक्षा, तकनीकी संसाधन और तमाम प्रशासनिक खर्च शामिल होते हैं। 

मानसून सत्र में कितना नुकसान?
21 जुलाई 2025 से शुरू हुए इस सत्र में अब तक 8 दिन बीत चुके हैं, जिनमें से सिर्फ 5 दिन की कार्यवाही का डेटा उपलब्ध है। आइए समझते हैं इस अवधि में कितना नुकसान हो चुका है:

राज्यसभा सिर्फ 6.8 घंटे (408 मिनट) चली है जबकि उसे 30 घंटे चलना चाहिए था। यानी 1,392 मिनट का नुकसान।

लोकसभा महज 1.8 घंटे (108 मिनट) चली है जबकि उसे भी 30 घंटे कार्य करना था। यानी 1,692 मिनट का नुकसान।

नुकसान की गणना:
राज्यसभा: 1,392 मिनट × ₹1.25 लाख = ₹17.40 करोड़

लोकसभा: 1,692 मिनट × ₹1.25 लाख = ₹21.15 करोड़

कुल अनुमानित नुकसान: ₹38.55 करोड़ (सिर्फ 5 कार्यदिवस में)

क्या सिर्फ पैसे की बर्बादी है?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह नुकसान केवल पैसों तक सीमित नहीं है। PRS के संसदीय विशेषज्ञ चक्षु रॉय के अनुसार, जब संसद नहीं चलती, तो नीतियों पर चर्चा नहीं होती, मंत्री जवाबदेही से बच निकलते हैं और कई महत्वपूर्ण विधेयक या तो बिना बहस के पारित हो जाते हैं या अधर में लटक जाते हैं।

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ भी संसद की गिरती कार्यक्षमता को लेकर चिंता जता चुके हैं। उनके अनुसार, जब जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं होती, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर होती है और लोगों का संस्थाओं पर भरोसा डगमगाने लगता है।

2021 में भी हो चुका है बड़ा नुकसान
यह कोई पहली बार नहीं है। 2021 के मानसून सत्र में संसद की बार-बार बाधित कार्यवाही से ₹133 करोड़ से ज्यादा का अनुमानित नुकसान हुआ था। अब एक बार फिर वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है।


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Content Writer

Anu Malhotra

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