पंथ रत्न जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा: एक चुंबकीय व्यक्तित्व के मालिक
punjabkesari.in Tuesday, Sep 24, 2024 - 12:28 PM (IST)
नेशनल डेस्क: सिख धर्म, राजनीति और शिक्षा के अटल स्तंभ, पंथ रत्न जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा का निधन 1 अप्रैल, 2004 को हुआ। उनका जीवन एक प्रेरणादायक यात्रा थी, जिसने न केवल सिख समुदाय, बल्कि पूरे देश पर गहरा प्रभाव डाला। 24 सितंबर, 1924 को पटियाला जिले के टोहड़ा गांव में जन्मे जत्थेदार टोहड़ा का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से सिख धर्म की सेवा में अनगिनत योगदान दिए।
जानिए क्या है प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जत्थेदार टोहड़ा का जन्म एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ। उनके माता-पिता अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा को महत्व दिया। हालाँकि, परिवार में आर्थिक तंगी के कारण जत्थेदार को पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। इस असमर्थता ने उनके मन में शिक्षा की महत्ता का एक गहरा एहसास पैदा किया, जो आगे चलकर उनके जीवन का एक मुख्य प्रेरक तत्व बना।
युवाओं के लिए आदर्श बना दिया
गुरु नानक कालेज, मोगा में अध्ययन के दौरान जत्थेदार टोहड़ा का पहला भाषण सुनकर छात्र जीवन में ही उनके प्रति गहरा आकर्षण हुआ। उनका चुंबकीय व्यक्तित्व और उनके विचारों ने उन्हें युवाओं के लिए आदर्श बना दिया। उन्होंने 30 वर्षों तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जो सिख पंथ की प्रतिनिधि संस्था है। इसके अलावा, वे लगभग इतने ही समय तक भारतीय संसद के सदस्य भी रहे। जत्थेदार टोहड़ा का कार्यकाल सिख धर्म के प्रसार और उसके प्रबंधन में महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने सिख तीर्थ स्थलों के विकास के लिए कई प्रयास किए, जिसमें ऐतिहासिक गुरुद्वारों का संरक्षण और पुनर्निर्माण शामिल था। उनके कार्यकाल में अरबों रुपए की पंथ संपत्तियों का अवैध अतिक्रमण समाप्त किया गया और धार्मिक प्रचार के आधुनिक तरीकों को अपनाया गया।
गुरुद्वारों को पंथक प्रबंधन के तहत लाने का कार्य
जत्थेदार टोहड़ा ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम 1971 को लागू करने में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसने दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारों को पंथक प्रबंधन के तहत लाने का कार्य किया। इस कानून ने सिख समुदाय के अधिकारों और संपत्तियों की रक्षा में मदद की। उन्होंने हमेशा पंजाब में अकाली सरकारें बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साम्प्रदायिक भावनाओं से ओत-प्रोत, जत्थेदार टोहड़ा ने शिरोमणि कमेटी और अकाली दल को अपने मूल सिद्धांतों से भटकने से रोकने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण ही पंजाब में शिरोमणि कमेटी की स्थिति मजबूत हुई।
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
शिक्षा के क्षेत्र में जत्थेदार टोहड़ा का योगदान अद्वितीय था। जब उन्होंने 1973 में शिरोमणि कमेटी की अध्यक्षता संभाली, तब संस्था केवल 3-4 शैक्षणिक संस्थान चला रही थी। उनके कार्यकाल के अंत में, शिरोमणि कमेटी द्वारा लगभग 20 कॉलेज और 30 स्कूल चलाए जा रहे थे, जिनमें दो इंजीनियरिंग कॉलेज, दो मेडिकल कॉलेज और एक डेंटल कॉलेज शामिल थे। जत्थेदार टोहड़ा का यह मानना था कि शिक्षा के माध्यम से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने हमेशा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया।
सादगी और ईमानदारी का प्रतीक
जत्थेदार टोहड़ा का जीवन सादगी और ईमानदारी का प्रतीक था। उन्हें विरासत में केवल 8 एकड़ जमीन और एक कच्चा घर मिला था, जिसे उन्होंने मेहनत से रहने लायक बनाया। वे चुनावी फंड से एक पैसा भी घर नहीं लाते थे, बल्कि सभी को बाहर ही बांट देते थे। उन्होंने कई बार सांसदों को दिल्ली और चंडीगढ़ सरकारों द्वारा रियायती दरों पर दिए गए प्लॉट लेने से इंकार किया, यह कहते हुए कि "अगर मुझे यहां रहना नहीं है तो प्लॉट लेकर क्या करेंगे?" उनका घर हमेशा लोगों के लिए खुला रहता था। वे सुबह चार बजे से ही लोगों से मिलते थे, जिससे कोई भी बिना किसी रुकावट के उनसे बातचीत कर सकता था।
शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शून्यता
1 अप्रैल, 2004 को जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा के निधन ने सिख धर्म, राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शून्यता (खालीपन) छोड़ दिया है। उनके योगदानों को आज भी याद किया जाता है, और उनकी विरासत सदियों तक जीवित रहेगी। उन्होंने जो मानक स्थापित किए हैं, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। जत्थेदार टोहड़ा का जीवन और कार्य एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जो यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति अपने समर्पण और मेहनत से समाज में कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। उनके योगदानों को सदा याद रखा जाएगा, और वे सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।