अभी रोटी को मोहताज था पाकिस्तान अब पानी के लिए भी तरसेगा, मचेगा त्राहिमाम

punjabkesari.in Friday, Apr 25, 2025 - 09:01 AM (IST)

नेशनल डेस्क। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में सबसे बड़ा फैसला सिंधु जल समझौते को निलंबित करना रहा। भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता तब तक भारत इस संधि को लागू नहीं करेगा। भारत का यह फैसला पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा आर्थिक हथियार माना जा रहा है।

दरअसल पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत की लगभग 90 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि अपनी पानी की जरूरतों के लिए सिंधु जल समझौते के तहत मिलने वाले पानी पर ही निर्भर है। ऐसे में यदि भारत चिनाब, झेलम और सिंधु जैसी पश्चिमी नदियों के पानी को रोकता है तो पाकिस्तान में पानी के लिए त्राहिमाम मच सकता है। पानी रोके जाने से न केवल पाकिस्तान की खेती योग्य जमीन सूख जाएगी बल्कि पीने के पानी से लेकर बिजली परियोजनाओं तक को भारी झटका लगेगा जिससे पाकिस्तान की पहले से ही खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और भी बदतर हो जाएगी।

हालांकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सिंधु जल समझौते को निलंबित करना इतना आसान है? क्या भारत रातोंरात इन तीनों नदियों का पानी रोक सकता है? और यदि नहीं तो भारत को ऐसा करने में कितना समय लगेगा? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।

सिंधु जल समझौता: एक नजर

भारत और पाकिस्तान ने 1960 में सिंधु जल प्रणाली की नदियों के पानी के उपयोग को लेकर एक समझौता किया था। इस समझौते के तहत तीन पूर्वी नदियां - सतलज, ब्यास और रावी - का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता है जबकि पश्चिमी नदियां - झेलम, चिनाब और सिंधु - के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। यह ध्यान देने योग्य है कि इस समझौते में भारत ने पूरी नदी प्रणाली का केवल 20 प्रतिशत पानी ही अपने पास रखा था जबकि 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को शांति के बदले इस्तेमाल करने दिया गया था।

 

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क्या रातोंरात रुक सकता है पानी?

भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने का जो फैसला लिया है उसका सीधा अर्थ है कि भारत अब पश्चिमी नदियों यानी झेलम, चिनाब और सिंधु नदी के पानी को पाकिस्तान को इस्तेमाल नहीं करने देगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत के पास वर्तमान में ऐसा कोई बुनियादी ढांचा मौजूद नहीं है जिससे इस पानी को रातोंरात पाकिस्तान पहुंचने से रोका जा सके। यदि भारत बांध बनाकर या पानी का भंडारण करके ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में भीषण बाढ़ आने का खतरा पैदा हो सकता है।

पानी रोकने में कितना लगेगा समय?

वर्तमान स्थिति को देखते हुए भारत ने तीनों पश्चिमी नदियों पर चार परियोजनाओं की योजना बनाई है। इनमें से दो परियोजनाएं - चिनाब नदी पर बगलीहार बांध और रतले परियोजना - पहले से ही चालू हैं। चिनाब की एक और सहायक नदी मारुसूदर पर पाकल डुल परियोजना और झेलम की सहायक नदी नीलम पर किशनगंगा परियोजना निर्माणाधीन हैं जिनमें से केवल बगलीहार बांध और किशनगंगा परियोजना ही वर्तमान में कार्यरत हैं।

ऐसे में यदि भारत पाकिस्तान के हिस्से वाली तीनों नदियों के पानी को पूरी तरह से रोकना चाहता है तो इसमें काफी लंबा समय लगने की संभावना है। दरअसल इन तीनों नदियों से मिलने वाले लाखों क्यूसेक पानी के उपयोग के लिए भारत को एक व्यापक बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा। यही बात पाकिस्तानी विशेषज्ञों का भी मानना है। पाकिस्तानी नेताओं का कहना है कि भारत रातोंरात सिंधु जल समझौते से मिलने वाले पानी को नहीं रोक सकता है इसलिए उनके पास भारत के इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त समय है।

फिलहाल कुल मिलाकर पहलगाम हमले के बाद भारत का सिंधु जल समझौते को निलंबित करने का फैसला एक कड़ा रणनीतिक कदम है जिसका दीर्घकालिक प्रभाव पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और जल सुरक्षा पर पड़ सकता है। हालांकि इस फैसले को पूरी तरह से लागू करने में भारत को महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा विकसित करने और संभावित बाढ़ जोखिमों से निपटने के लिए समय और योजना की आवश्यकता होगी।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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