नजरिया: पाक की नापाक सरकार

punjabkesari.in Saturday, Jun 09, 2018 - 06:55 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): वैसे तो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पूरे विश्व में आतंक और आतंकियों के स्वर्ग के रूप में विख्यात है, लेकिन अब वहां  आतंकी सीधे-सीधे सरकार बनाने की या सरकार में भागीदारी हासिल करने की कोशिश में हैं। अगले महीने ही पाकिस्तान की 15 वीं नेशनल असेंबली का चुनाव होना है। खूंखार आतंकवादी हाफिज सईद का संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) 25 जुलाई को होने वाले आम चुनाव में अल्लाह-हू-अकबर तहरीक (एएची) पार्टी  के बैनर तले मैदान में उतरेगा। 
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हाफिज के दावे पर जाएं तो उसके नुमाईंदे  200 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। पाकिस्तान की नेशनल असेम्ब्ली में कुल 342  सीटें हैं और हर हाल में  सरकार बनाने वाली पार्टी या गठबंधन के पास 172  सीटें होनी जरूरी हैं।  नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल के  के पास 178 सीटें हैं जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी पीपीपी के पास  महज 46  सीट हैं। सत्ताधारी और विपक्षी पार्टी में अक्सर वहां इतना अंतर रहता ही है क्योंकि मतदाता एकतरफा चलता है। ऐसे में 200 सीटों पर चुनाव लड़कर शायद हाफिज का पहला निशाना कहीं न कहीं सत्ता संतुलन की धुरी बनने का है। अगर अल्लाह-हू-अकबर तहरीक  200  में से 25  सीटें भी जीतती है तो उसे पाकिस्तान की सियासत में सेंध लगाने सफलता मिल जाएगी।  
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यह अपने आप में बड़ी घटना होगी, लेकिन यहां हम अल्लाह-हू-अकबर तहरीक की हार जीत से ज्यादा जो मसला उठाना चाहते हैं वो यह है कि क्या पाकिस्तान अब आतंकियों की पनाहगाह से आगे निकलकर आतंकियों की सरकार और शासन  की तरफ बढ़ रहा है? और क्या यह स्थितियां शेष विश्व के लिए श्रेयस्कर होंगी? पूरी दुनिया जानती है कि हाफिज सईद एक खूंखार और प्रतिबंधित आतंकी है। तो क्या उसकी पार्टी को चुनाव लडऩे देकर पाकिस्तान जानबूझकर ऐसे रास्ते पर जाना चाहता है जहां एक आतंक शासित राज्य की परिकल्पना साकार होती हो? और यदि ऐसा है तो यह मंथन का विषय है खासकर तब जब सत्तर फीसदी दुनिया आतंकी हमलों और गतिविधियों से पीड़ित है। चुनाव पाकिस्तान का अपना आंतरिक मसला हो सकता है लेकिन आतंकवाद पूरे विश्व की साझा समस्या है। आज हाफिज ने पार्टी बनाई , कल मसूद बनाएंगे परसों कोई और आतंकी संगठन इसमें कूद जाएगा ।
PunjabKesariक्यों चुप हैं पाकिस्तान के नेता ? 
दिलचस्प ढंग से हाफिज के संगठन अल्लाह-हू-अकबर तहरीक के चुनाव लडऩे को लेकर पाकिस्तान के तमाम सियासी दल, नेता और यहां तक कि मीडिया भी अजीब सी ख़ामोशी ओढ़े हुए है।  कहां तो इनलोगों को आंतकी संगठन का विरोध करना चाहिए था लेकिन कहां एक अदद प्रतिक्रिया तक नहीं आई है।  तो क्या सबके सब आतंक के समर्थक हैं या फिर डरे हुए हैं ? मीडिया में भी हाफिज का विरोध नहीं हो रहा जबकि पाकिस्तान में कई ऐसे मीडिया हाउस हैं जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर खुलकर प्रतिक्रिया करते हैं।  तो क्या बन्दूक ने सबका मुंह बंद कर रखा है ? 


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Anil dev

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