ऑफ द रिकॉर्ड: प्रियंका ने वाराणसी से सीखा सियासत का पहला बड़ा सबक

punjabkesari.in Sunday, Apr 28, 2019 - 05:07 AM (IST)

नेशनल डेस्कः कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भारी कीमत चुकाते हुए राजनीति में अपना पहला सबक उस समय सीखा जब वह वाराणसी संसदीय सीट के चुनाव मैदान से बाहर हो गईं। वह पिछले कई सप्ताहों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लडऩे के प्रश्र को उठाती रहीं। वास्तव में वह अपनी रैलियों में आकर्षित भीड़ से यह पूछती थीं कि क्या मुझे वाराणसी से चुनाव लडऩा चाहिए? बाद में उन्होंने अपने स्टैंड को मजबूत किया और यह कहना शुरू कर दिया कि अगर पार्टी उन्हें चुनाव लडऩे की अनुमति देती है तो वह चुनाव लड़ेंगी मगर पार्टी की तरफ से इस मामले पर खामोशी छाई रही। 
PunjabKesari
निजी तौर पर पार्टी नेताओं ने यह कहना भी शुरू कर दिया कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लडऩे के प्रति गम्भीर हैं और ऐसे प्रयास शुरू किए गए कि बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रियंका के पक्ष में समर्थन देने की अपील करने के लिए राजी किया जाए। वास्तव में वह विपक्षी पाॢटयों की संयुक्त उम्मीदवार बनना चाहती थीं। उन्होंने अपने समर्थकों को यह बताना भी शुरू कर दिया कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रियंका को चुनाव लडऩे की सहमति दे दी है और इस मामले पर मायावती के साथ भी वार्ताकारों से जरिए बात जारी है लेकिन समाजवादी पार्टी ने इस मामले पर उस समय प्रियंका को झटका दिया जब उसने 5 दिन पूर्व वाराणसी से शालिनी यादव को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। 
PunjabKesari
शालिनी यादव वाराणसी के पूर्व सांसद और राज्यसभा के पूर्व डिप्टी चेयरमैन शाम लाल यादव की बहू हैं। वह पहले कांग्रेस में थीं और अचानक समाजवादी पार्टी में चली गईं। अखिलेश ने शालिनी यादव को मैदान में उतार कर कांग्रेस को सार्वजनिक तौर पर करारा जवाब दिया। तब भी प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लडऩे के बयान देती रहीं। इसी बीच कांग्रेस की तरफ से कोई स्पष्ट बात नहीं की गई मगर बाद में राहुल गांधी ने ‘अच्छा सस्पैंस’ बने रहने की टिप्पणी कर दी। 
PunjabKesari
प्रियंका गांधी के लिए उस समय स्थिति बहुत ही खराब बन गई जब कांग्रेस ने अजय राय को वाराणसी से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। राय 2014 के चुनाव में मोदी के खिलाफ मैदान में थे और अरविंद केजरीवाल के बाद तीसरे स्थान पर रहे थे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का चयन स्पष्ट था। वह इस बात को यकीनी बना सकती थी कि उनका राजनीतिक करियर मोदी के खिलाफ बहुत जोर-शोर से शुरू होता। यहां तक कि उनकी हार भी प्र्रियंका के एक बड़ी लड़ाकू नेता के रूप में उभरने को यकीनी बनाती। अगर प्रियंका प्रधानमंत्री मोदी की जीत के अंतर को कम कर देतीं तो वह कांग्रेस के ब्रह्मास्त्र के रूप में ख्याति प्राप्त कर लेतीं कि पार्टी ने उनका चयन सही ढंग से किया था मगर यह हथियार कभी भी चल नहीं पाया। 
PunjabKesari
अब ऐसी चर्चा है कि सपा-बसपा यह नहीं चाहती थीं कि प्रियंका इस ढंग से मौजूदा स्थिति में सशक्त रूप से उभर कर सामने आएं। यहां तक कि राहुल को भी इस बात का डर था कि ऐसा करने पर प्रियंका वाराणसी तक ही सीमित होकर रह जाएंगी और उसका केन्द्रीय और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 50 सीटों पर भी असर पड़ेगा। अमेठी में राहुल को खुद भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी से कड़ी चुनौती मिल रही है और वह चाहते हैं कि प्रियंका वहां अपना ध्यान केन्द्रित करें ताकि वह आसानी से जीत हासिल करें और केरल का वायनाड निर्वाचन क्षेत्र उनके लिए छोड़ दें।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Pardeep

Recommended News

Related News