बांग्लादेश में अब हिंदुओं को सरकारी नौकरी से जबरन देना पड़ रहा इस्तीफा, 2 शब्द लिखवाकर छीनी जा रही नौकरी

punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2024 - 03:07 PM (IST)

बांग्लादेश : बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की समस्याएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। हाल के दिनों में, सरकारी नौकरियों में कार्यरत हिंदू शिक्षाविदों को गंभीर दबाव का सामना करना पड़ा है। 5 अगस्त से अब तक, लगभग 50 हिंदू शिक्षाविदों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। हिंदू समुदाय लंबे समय से बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न, हमलों और अत्याचारों का सामना कर रहा है, जो उनके जीवन को कठिन बना रहा है और अब सरकारी नौकरियों में भी उन्हें हाथ धोना पड़ रहा है।

PunjabKesari

धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न
इन हालात के चलते, हिंदू शिक्षाविदों को सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने की स्थिति में लाया गया है। यह कदम धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न की व्यापक समस्या को उजागर करता है, जिसके कारण समुदाय के सदस्य अपने पेशेवर जीवन में भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हिंदू समुदाय के लोगों को न केवल धार्मिक आधार पर बल्कि सामाजिक और पेशेवर स्तर पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना इस बात का संकेत है कि उत्पीड़न की स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है।

अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता
इस मुद्दे के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से चिंता और समर्थन की आवश्यकता है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में सम्मान और सुरक्षा का अनुभव कर सकें।

PunjabKesari

बांग्लादेश छात्र एक्य परिषद का खुलासा
बांग्लादेश छात्र एक्य परिषद, जो कि बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एक्य परिषद का छात्र संगठन है, ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बांग्लादेश में हिंदू शिक्षाविदों के इस्तीफे से जुड़ी नई जानकारी साझा की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया गया कि हाल के दिनों में कई हिंदू शिक्षाविदों को सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। हमने उन शिक्षकों की सूची प्राप्त की है जिन्होंने हाल ही में इस्तीफा दिया है, जिसमें कई सरकारी कॉलेजों के शिक्षकों के नाम शामिल हैं।

प्रिंसिपल का इस्तीफा
इस सूची में बकरगंज कॉलेज की प्रिंसिपल शुक्ला रॉय का नाम भी शामिल है। उनके इस्तीफे की एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें वे एक सादे कागज पर "मैं इस्तीफा देती हूं" लिखवाकर अपना इस्तीफा दे रही हैं। यह तस्वीर इस बात का प्रमाण है कि इस्तीफा देने का दबाव कितना तीव्र था।

क्या है इस्तीफे की प्रक्रिया 
इस्तीफे की प्रक्रिया में यह भी सामने आया है कि कई मामलों में केवल एक सादे कागज पर इस्तीफा दर्ज किया गया है, जिसमें कोई विशेष कारण या विवरण नहीं लिखा गया। यह दर्शाता है कि इन शिक्षाविदों को बिना किसी स्पष्टीकरण या आत्म-सम्मान के इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि बांग्लादेश में हिंदू शिक्षाविदों की स्थिति काफी चिंताजनक है। उन्हें धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर रहा है।

PunjabKesari

बांग्लादेश में हिंदू शिक्षाविदों के इस्तीफे दिए गए कुछ लोगों की सूची...

भुवेश चंद्र रॉय
प्रधानाचार्य, पुलिस लाइन हाई स्कूल एंड कॉलेज, ठाकुरगांव

डॉ. दुलाल चंद्र रॉय
निदेशक, आईक्यूएसी, आरयू

डॉ. विजय कुमार देबनाथ
सथिया पायलट मॉडल स्कूल, पबना

अद्रिश आदित्य मंडल
प्रधानाचार्य, कपोतक्ष महाविद्यालय, कोइर, खुलना

डॉ. सत्य प्रसाद मजूमदार
कुलपति, बुएट

केका रॉय चौधरी
प्रधानाचार्य, वीएनसी

सोनाली रानी दास
सहायक प्रोफेसर, होली फैमिली नर्सिंग कॉलेज

मिहिर रंजन हलदर
कुलपति, कुवैत

यह भी पढ़ें- Emergency की रिलीज पर लटकी तलवार? फिल्म में सिख समाज का अपमान, जानिए मूवी बैन को लेकर HC में क्या बोला CBFC

दीपान दत्ता
प्रधानाचार्य, किशोरगंज नर्सिंग कॉलेज

डॉ. प्रणब कुमार पांडे
जनसंपर्क प्रशासक, अरबी

सौमित्र शेखर
कुलपति, काज़ी नजरुल इस्लाम विश्वविद्यालय

कंचन कुमार विश्वास
भौतिकी शिक्षक, झेनाइदाह कलेक्टरेट स्कूल एंड कॉलेज

डॉ. चयान कुमार रॉय
प्रधानाचार्य, खान साहेब कमरुद्दीन कॉलेज (प्रोसेसिंग)

डॉ. रतन कुमार
सहायक प्रोक्टर, अरबी

यह भी पढ़ें- दिल्ली IAS कोचिंग सेंटर में 3 छात्रों की मौत पर CBI ने किया बड़ा खुलासा, जांच में सामने आई ये बात

डॉ. पुरंजीत महलदार
सहायक प्रोक्टर, राबी

गौतम चंद्र पाल
सहायक शिक्षक, आज़िमपुर गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल

डॉ. तापसी भट्टाचार्य
प्रधानाचार्य, अनवर खान मॉडर्न नर्सिंग कॉलेज

खुकी बिस्वास
इंचार्ज, जेसोर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग एंड मिडवाइफरी

धारित्री
मदारीपुर नर्सिंग इंस्टीट्यूट

बिस्वजीत कुमार
प्रधानाचार्य, मनीरामपुर आदर्श माध्यमिक विद्यालय (प्रोसेसिंग)

प्रोफेसर बिनु कुमार देय
उप-कुलपति, चबी

सुभ्रता विकास बरुआ
उप-प्रधानाचार्य, चिटगांव कॉलेज

यह भी पढ़ें- बच्चे स्कूल में नहीं कर सकेंगे फोन का इस्तेमाल, इस देश की सरकार ने लिया बड़ा फैसला

नानी बागची
प्रधानाचार्य, बार्डेम नर्सिंग कॉलेज (प्रोसेसिंग)

गीता अंजलि बरुआ
प्रधानाचार्य, आज़िमपुर गर्ल्स स्कूल

प्रदीप
मदारीपुर नर्सिंग इंस्टीट्यूट

प्रोफेसर डॉ. बंगा कमल बोस
प्रधानाचार्य, गाजी मेडिकल कॉलेज, खुलना

प्रोफेसर डॉ. कांता रॉय मिमी
विभागाध्यक्ष, एनाटॉमी, एम अब्दुर रहीम मेडिकल कॉलेज, दिनाजपुर

प्रोफेसर अमित रॉय चौधरी
कोषाध्यक्ष, खुलना विश्वविद्यालय

दिलीप कुमार
निवासी शिक्षक, राजशाही विश्वविद्यालय

प्रोफेसर डॉ. दीपिका रानी सरकार
प्रोवोस्ट, जगन्नाथ विश्वविद्यालय

तापसी भट्टाचार्य
प्रधानाचार्य, अनवर खान मॉडर्न नर्सिंग कॉलेज

राधा गोविंद
प्रधानाध्यापक, अशरफ अली मल्टीपर्पस हाई स्कूल

अनुपम महाजन
प्रधानाध्यापक, खागरिया मल्टीपर्पस हाई स्कूल

यह भी पढ़ें- इस रेगिस्तान में है 'नरक का द्वार', जहां 53 साल से धधक रही है भीषण आग

ऊम कुमार साहा
प्रधानाध्यापक, विद्यनिकेतन हाई स्कूल, नारायणगंज

ब्यूटी मजुमदार
प्रधानाचार्य, फेनी नर्सिंग कॉलेज

सुबेन कुमार
निवासी शिक्षक, राजशाही विश्वविद्यालय

रतन कुमार मजूमदार
प्रधानाचार्य, पुराण बाजार डिग्री कॉलेज, चांदपुर

अल्पना बिस्वास
प्रधानाचार्य, जहरुल हॉल कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग

पूरे मामले पर मोहम्मद यूनुस ने चुप्पी साध ली है...
इसके साथ ही, पत्रकारों, मंत्रियों और पूर्व सरकार के अधिकारियों को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। इन लोगों को न केवल प्रताड़ित किया जा रहा है, बल्कि कई मामलों में उन्हें जेल में भी डाला जा रहा है। यह एक गंभीर संकेत है कि बांग्लादेश में स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इस पूरे संकट के दौरान, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। उनकी चुप्पी इस बात को और अधिक चिंताजनक बना देती है कि बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों और उत्पीड़न पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित नहीं हो रहा है। उनकी चुप्पी और कोई ठोस बयान न देना इस संकट की गंभीरता को और बढ़ा देता है। बांग्लादेश में बढ़ते हुए उत्पीड़न और हिंसा के इस माहौल में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों को आगे आकर स्थिति की गंभीरता को समझना होगा और इसके खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे।

 

 

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Utsav Singh

Related News