जानिए क्या है NRC ड्राफ्ट जिसने कर दिया 40 लाख से ज्यादा लोगों को बेघर

punjabkesari.in Monday, Jul 30, 2018 - 03:28 PM (IST)

नई दिल्ली: असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे एवं अंतिम मसौदा को आज जारी हो गया है। एनआरसी पर जारी मसौदे के अनुसार 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है और जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया। बता दें कि वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए समूचे राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जिला उपायुक्तों एवं पुलिस अधीक्षकों को कड़ी सतर्कता बरतने के लिए कहा गया है। एहतियातन सीआरपीएफ की 220 कंपनियों को भी तैनात कर दिया गया है और अब 14 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है।

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क्या है एनआरसी
दरअसल, सरकार द्वारा एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स नाम का एक अभियान चलाया गया है। जिसके तहत सरकार असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को निकालती है। यह अभियान दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिना जाता है। जो डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर काम करता है। यानि सबसे पहले अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान की जाती है, उसके बाद उन्हें भारत से हटाते हुए उनके देश वापस भेज दिया जाता है।

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37 साल पुराना है ये अभियान
असम में रह रहे घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए ये अभियान लगभग 37 सालों से चल रहा है। 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बने बांग्लादेश और उस दौरान हुए संघर्ष में कई लोग पलायन कर भारत आ गए थे और यहीं रहने लगे। इसके बाद स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच हिंसक वारदातें भी हुई। इसके चलते 1980 के दशक से उन्हें वापस भेजने की मांग की जा रही है।

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1979 में शुरू हुआ इसके लिए पहला आंदोलन
घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन द्वारा इसकी मांग की गई। सबसे पहले 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया। 6 साल चलने वाले इस आंदोलन ने हिंसक रूप भी लिया और हजारों का तादाद में इसमें लोगोंकी मौत भी हुई है।

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तत्कालीन राजीव सरकार द्वारा पेश किया गया समझौता
बढ़ती हिंसा को देखते हुए 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम गण परिषद और स्टूडेंट यूनियन से मुलाकात की और केंद्र सरकार और आंदोलकारियों के बीच एक समझौता हुआ जिसमें ये कहा गया कि 1951-71 से आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और इसके बाद वालों को वापस भेज दिया जाएगा। लेकिन ये समझौता सफल नहीं हुआ और फेल हो गया। इसके बाद लगातार सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। एक बार फिर 2005 में राज्य और केंद्र में एनआरसी लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

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बीजेपी ने बनाया चुनावी मुद्दा
2014 में बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और घुसपैठियों को वापस भेजने की बात कही। 2015 में कोर्ट द्वारा एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दे दिया गया। जिसका फायदा बाजेपी को मिला और 2016 में बीजेपी की राज्य में पहली बार सरकार बनी। जिसके बाद घुसपैठियों को वापस भेजने प्रक्रिया तेज हुई। 3 साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने कि लिए 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे। जिसमें लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी थी। इसके लिए 14 तरह के प्रमाणपत्र लगाए गए जो ये साबित कर सके कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है। इसके लिए सरकार द्वारा बड़ी तादाद में रिकॉर्डस चैक किए गए। 

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इसमें भी है हिंदू-मुस्लिम मुद्दा
चुनावी रणनीति के तहत मोदी ने हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात कही थी। इसी के चलते सरकार नागरिकता संशोधन बिल पास करवाना चाहती है। घुसपैठियों में मुस्लिमों के अलावा बंग्ला हिंदूओं की भी अच्छी खासी तादाद है। आज जारी होने वाले अंतिम मसौदे से सबसे ज्यादा डरे लोगों में मुस्लिम लोग शामिल हैं। साल 1951-1971 यानि 1971 से पहले हजारों लोग राज्य में पहुंचे हैं लेकिन इनके पास किसी तरह की कोई पहचान के कागजात नहीं हैं। ऐसे में मुस्लिम समुदाय पर तलवार लटकी हुई है। 

 


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Anil dev

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