दिल्ली में आंदोलन कर रहे लाखों किसानों पर मंडरा रहा कोरोना का खतरा, नहीं संभले तो होगा भारी नुक्सान

punjabkesari.in Saturday, Dec 05, 2020 - 06:26 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कृषि सुधार कानूनों को लेकर दिल्ली में डटे लाखों किसानों से कोरोना वायरस का खतरा सिंघु बॉर्डर पर बढ़ता जा रहा है। यहां प्रदर्शन कर रहे किसानों में सर्दी, खांसी और बुखार के मामले बढ़ रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या बुजुर्ग किसानों की है। स्वास्थ्यकर्मियों की टीम किसानों को दवाई उपलब्ध भी करवाने में जुटी है। यहां लोग मास्क का उपयोग नहीं कर रहे हैं। और बीमारी को बहुत हल्के में ले रहे हैं, ऐसे में कोरोना का खतरा बढ़ रहा है। 

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विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान जिन स्थानों पर एकत्र हैं, वहां से कोविड-19 के गंभीर प्रसार की आशंका है, यहां अनेक किसानों ने मास्क नहीं पहन रखे हैं। वहीं, प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि उनके लिए नए कृषि कानून कोरोना वायरस से अधिक बड़ा खतरा हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार को किसानों को आंदोलन की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि सरकार के पास महामारी कानून के तहत ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने की शक्ति है जिससे संक्रमण फैल सकता है। सिंघु व टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों के बीच न तो शारीरिक दूरी का पालन किया जा रहा है और न ही कोई भी मास्क लगा रहा है। हालात ये हैं कि इस लापरवाही के बीच आसपास की कॉलोनियों में रहने वाले लोग भी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अगर नहीं संभले तो दोनों जगहों पर कोरोना विस्फोट हो सकता है।

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दिल्ली में अंदोलन कर रहे किसानों पर कोरोना वायरस संक्रमण फैलने का खतरा भी मंडरा रहा है, लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। छब्बीस नवंबर को अपने घर से निकले पंजाब के मनसा जिले से आए 50 वर्षीय गुरनाम सिंह ने कहा कि उन्हें टीकरी बॉर्डर पर पहुंचते ही सीने में दर्द हुआ। इसके बाद उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह प्रदर्शनकारियों के बीच लौट आए। गुरनाम ने कहा, हम पंजाब से हैं। जहां भी जाते हैं, प्यार बांटते हैं। न तो कोरोना वायरस और न ही ठंड हमें हमारी लड़ाई लडऩे से रोक पाएगी। अपने ट्रैक्टर में आराम कर रहे राम सिंह भी मनसा से हैं। उन्होंने कहा कि जब तक कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया जाता, तब तक वह और उनके बुजुर्ग चाचा वापस नहीं जाने वाले।  किसान ने कहा कि उन्हें अपने गांववालों का पूरा समर्थन हासिल है। हर घर से कम से कम एक व्यक्ति यहां प्रदर्शन में शामिल हुआ है। सड़क पर एक के पीछे एक 500 से अधिक ट्रैक्टर खड़े हैं। अधिकतर पर पोस्टर लगे हैं, जिनपर किसान नहीं तो खाना नहीं, जीडीपी नहीं, कोई भविष्य नहीं जैसे नारे लिखे हुए हैं। 

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हनी ने कहा, मैं किसान का बेटा हूं। अगर आज हम अपने किसान समुदाय के अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ सकते, तो ऐसी पढ़ाई-लिखाई का क्या फायदा। कुछ स्वयंसेवियों ने प्रदर्शन स्थल पर सौर ऊर्जा पैनल लगा रखे हैं ताकि किसान अपने मोबाइल फोन चार्ज कर सकें। इसके अलावा कई स्थानीय समूह पानी, साबुन, सूखे-मेवे तथा मच्छर मारने के साधन उपलब्ध करा रहे हैं। टीकरी बॉर्डर पर अस्थायी शौचालय भी बनाए गए हैं। किसानों ने खुद को मिल रही मदद के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों ने हमारे लिये न केवल अपने घर के बल्कि दिलों के दरवाजे भी खोले हैं। दरअसल केन्द्र सरकार ने सितंबर में तीन कृषि कानूनों को मंजूरी दी थी। सरकार का कहना है कि इन कानूनों का मकसद बिचौलियों को खत्म करके किसानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की अनुमति देकर कृषि क्षेत्र में सुधार लाना है। किसानों को चिंता है कि इन कानूनों से उनकी सुरक्षा कवच मानी जानी वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था और मंडियां खत्म हो जाएंगी। सरकार का कहना है कि एमएसपी जारी रहेगी और नए कानूनों से किसानों को अपनी फसल बेचने के और विकल्प उपलब्ध होंगे। किसान शनिवार को सरकार के साथ पांचवें दौर की बातचीत करेंगे। इस बीच उन्होंने आठ दिसंबर को भारत बंद का भी आह्वान किया है। 

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Anil dev

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