जब लता मंगेशकर के गीत को सुनकर रो पड़े थे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, ऐसा था इस गीत में दर्द

punjabkesari.in Monday, Feb 07, 2022 - 11:15 AM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय सिनेमा की स्वर कोकिला लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं है, अगर कुछ है तो उनकी यादों और मधुर स्वरों का लंबा चोड़ा इतिहास है, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। लता मंगेशकर की गायिका के दीवानों की संख्या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है और आधी सदी के अपने करियर में उनका कोई सानी कभी नहीं रहा। हिंदी सिनेमा के स्क्रीन पर शायद ही ऐसी कोई बड़ी अभिनेत्री रही हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज उधार न दी हो। सुरों और संगीत की दुनिया में अनगिनत ऐसे किस्से हैं जो आजादी के बाद इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। यहां आपको बताने जा रहे हैं जब देश में ऑल इंडिया रेडियो में जब गानों के प्रसारण पर मनाही थी तो देश के लोगों ने पहली बार रेडियो गोआ पर लता की आवाज सुनी थी। दरअसल जब 1950 में जब उन्होंने 'आएगा आने वाला' गाया तो ऑल इंडिया रेडियो पर फिल्म संगीत बजाने पर मनाही थी। उस समय रेडियो सीलोन भी नहीं था। गोवा उस समय पुर्तगाल के कब्जे में था। भारतीय सेनाओं ने उसे 1961 में जा कर आजाद करवाया।

पांच साल की उम्र में ऐसे शुरू हुआ सुरों का सफर
लता के मधुर स्वरों का सफर पांच साल की उम्र में शुरू हुआ था। नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'लता इन हर ओन वॉइस' में लिखा है कि लता अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर को गाते देखती थी, लेकिन उनके सामने मेरी गाने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। एक बार वो अपने एक शागिर्द को राग पूरिया धनाश्री सिखा रहे थे तो किसी वजह से वो थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर चले गए। लता बाहर खेल रही थी। उन्होंने बाबा के शिष्य को गाते हुए सुना। लता को लगा कि लड़का ढंग से नहीं गा रहा है। वह उसके पास गई और उसके सामने गा कर बताया कि इसे इस तरह गाया जाता है। नसरीन मुन्नी कबीर की किताब में लिखा है कि लता ने खुद बताया कि जब मेरे पिता वापस आए तो उन्होंने दरवाजे की ओट से मुझे गाते हुए सुना। उन्होंने मेरी मां को बुला कर कहा कि हमें ये पता ही नहीं था कि हमारे घर में भी एक अच्छी गायिका है। लता कहती हैं कि अगले दिन सुबह छह बजे बाबा ने मुझे जगा कर कहा था तानपुरा उठाओ। आज से तुम गाना सीखोगी। उन्होंने पूरिया धनाश्री राग से ही शुरुआत की। उस समय लता की उम्र सिर्फ पांच साल थी।

1949 में चमका था सितारा
लता का सितारा पहली बार 1949 में चमका इसी वर्ष चार फिल्में रिलीज हुईं जिनमे 'बरसात', 'दुलारी', 'महल' और 'अंदाज़' शामिल थीं। 'महल' में उनका गाया गाना 'आएगा आने वाला आएगा' के फौरन बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने मान लिया कि यह नई आवाज बहुत दूर तक जाएगी, यह वह जमाना था जब हिंदी फिल्मी संगीत पर शमशाद बेगम, नूरजहां और जोहराबाई अंबालेवाली जैसी वजनदार आवाज वाली गायिकाओं का राज चलता था।

नूरजहां को मिलने वाघा बॉर्डर पर पहुंच गई थी लता
पहले भारत में रहीं और बाद में पाकिस्तान चली गईं नूरजहां और लता मंगेशकर के बीच करीबी दोस्ती थी। एक बार जब लता 1952 में अमृतसर गईं तो उनकी इच्छा हुई कि वो नूरजहां से मिलें जो कि सिर्फ दो घंटे की दूरी पर लाहौर में रहती थीं। फौरन उनको फोन लगाया और दोनों ने घंटों फोन पर बातें कीं और फिर तय हुआ कि दोनों भारत पाकिस्तान सीमा पर एक दूसरे से मिलेंगी। मशहूर संगीतकार सी रामचंद्रन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि मैंने अपने संपर्कों से ये बैठक 'अरेंज' कराई। ये मुलाकात वाघा सीमा के पास उस जगह हुई जिसे सेना की भाषा में 'नो मैन्स लैंड' कहा जाता है। जैसे ही नूरजहां ने लता को देखा वो दौड़ती हुई आईं और किसी बिछड़े हुए दोस्त की तरह उन्हें जोर से भींच लिया। दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे।

हीरे और जासूसी उपन्यास पसंद
रेहान फजल अपने लेख में जिक्र करते हैं कि लता मंगेशकर को हीरे और पन्नों का बहुत शौक था। अपनी कमाई से उन्होंने 1948 में 700 रुपयों में अपने लिए हीरे की अंगूठी बनवाई थी। वो उसे अपने बांए हाथ की तीसरी उंगली में पहना करती थीं। उन्हें सोने से कभी प्यार नहीं रहा। हां वो सोने की पायल जरूर पहना करती थी। इसकी सलाह उन्हें मशहूर गीतकार नरेंद्र शर्मा ने दी थी। लता को जासूसी उपन्यास पढ़ने का भी बहुत शौक था और उनके पास शरलॉक होम्स की सभी किताबों का संग्रह था।

मिठाइयों में पसंद थी जलेबी
लता मंगेशकर को मिठाइयों में सबसे ज्यादा जलेबी पसंद थी। एक जमाने में उन्हें इंदौर का गुलाब जामुन और दही बड़ा भी बहुत भाते थे। गोवन फिश करी और समुद्री झींगे की भी वो बहुत शौकीन थीं। वो सूजी का हलवा भी बहुत उम्दा बनाती थीं।
उनके हाथ का मटन पसंदा जिसने भी खाया था, वो उसे कभी नहीं भूल पाया। वो समोसे की भी शौकीन थीं, लेकिन आलू के नहीं, बल्कि कीमे के। कम लोग सोच सकते हैं कि लता मंगेशकर को गोलगप्पे बहुत पसंद थे। उन्हें नींबू का अचार और ज्वार की रोटी भी बहुत पसंद थी।

'कमबख्त कभी बेसुरी होती ही नहीं"
जानेमाने पत्रकार और लेखक रेहान फजल ने अपने एक लेख शास्त्रीय गायक पंडित जसराज एक दिलचस्प किस्से का वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि एक बार वह बड़े गुलाम अली खां से मिलने अमृतसर गया। बड़े गुलाम अली खां हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने के गायक थे। पंडित जसराज ने कहा कि हम लोग बाते ही कर रहे थे कि ट्रांजिस्टर पर लता का गाना 'ये जिंदगी उसी की है जो किसी का हो गया' सुनाई पड़ा। खां साहब बात करते करते एकदम से चुप हो गए और जब गाना खत्म हुआ तो बोले, "कमबख्त कभी बेसुरी होती ही नहीं"। इस टिप्पणी में पिता का प्यार भी था और एक कलाकार का रश्क भी।

जब नेहरू भी रो पड़े थे  
जवाहरलाल नेहरू के बारे में मशहूर था कि वो न तो कभी सार्वजनिक तौर पर रोते थे और न ही किसी दूसरे का इस तरह रोना पसंद करते थे, लेकिन 27 जनवरी, 1963 को जब लता मंगेशकर ने कवि प्रदीप का लिखा गाना 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया तो वो अपने आँसू नहीं रोक पाए थे।

इंदौर में हुआ था जन्म
महाराष्ट्र में एक थिएटर कंपनी चलाने वाले अपने जमाने के मशहूर कलाकार दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी लता का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर में हुआ था।

सरनेम बदला
लता जी की पहले सरनेम (सरनेम) मंगेशकर नहीं बल्कि हर्डीकर था. जिसे उनके पिता ने बदलकर मंगेशकर रख लिया। उनके सरनेम बदलने का कारण उनका गांव था। उन्होंने अपने गांव मंगेशी को देखते हुए अपनी सरनेम बदलकर मंगेशकर रख ली।
लता मंगेशकर का बचपन का नाम हेमा था लेकिन कुछ समय बाद उनका नाम बदलकर हेमा से लता रख दिया गया।

30,000 से भी ज्यादा गाने
लता मंगेशकर ने अब तक करीब करीब हर भाषाओं में गाने गए है, जो की अपने आप में एक रिकॉर्ड है. लता जी ने करीब 30,000 से भी ज्यादा गाने गाये है।


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Content Writer

Anil dev

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