किसान आंदोलन को लेकर पहले से चिंतित था संघ, इस बात के दिए थे संकेत

punjabkesari.in Tuesday, Nov 23, 2021 - 12:41 PM (IST)

नेशनल डेस्क: तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय को अब आरएसएस के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है। इस आंदोलन के दौरान आरएसएस संकेत दिए थे कि किसानों का निरंतर विरोध सामाजिक एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था। सूत्रों ने कहा कि संघ परिवार इस बात को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहा कि यह हिंदुओं और सिखों के बीच की खाई में तब्दील हो सकता है। जबकि संघ ने कभी भी कृषि कानूनों का खुले तौर पर विरोध नहीं किया और न ही उनके निरसन के विचार का समर्थन किया। लगभग एक साल तक यह सरकार को इस मुद्दे को हल करने में अक्षमता के बारे में संकेत देता रहा। फरवरी में मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में आरएसएस के तत्कालीन महासचिव सुरेश भैयाजी जोशी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि संघ इस बात से चिंतित था कि विरोध का सामाजिक एकता पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

आंदोलन का ज्यादा देर तक चलना फायदेमंद नहीं
सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा था कि लंबे समय तक चलने वाला कोई भी आंदोलन फायदेमंद नहीं है। आंदोलन होने से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए, लेकिन बीच का रास्ता खोजना होगा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, जिन्होंने अपने अक्टूबर, 2020 के विजयदशमी भाषण में कृषि कानूनों का समर्थन किया था, लेकिन उन्होंने अपने 2021 के भाषण में इस मुद्दे को स्पष्ट किया था कि एक आंदोलन न केवल इससे जुड़े लोगों को प्रभावित करता है, बल्कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज को भी प्रभावित करता है। किसी भी आंदोलन का ज्यादा देर तक चलना समाज के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए और दोनों पक्षों को इसका समाधान निकालने के लिए काम करना चाहिए।

भागवत ने कृषि में "आत्मनिर्भरता" पर दिया था जोर
यहां तक कि अपने 2020 के विजयदशमी भाषण में भी भागवत ने कृषि में "आत्मनिर्भरता" पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि  नीतियां ऐसी होनी चाहिए कि एक किसान इन शोध निष्कर्षों का उपयोग करने में सक्षम हो और अपनी उपज को बिना फंसे हुए बेच सकें। तभी ऐसी नीति भारतीय दृष्टिकोण के अनुकूल होगी और वास्तव में स्वदेशी कृषि नीति होगी। आरएसएस के सूत्रों ने कहा कि निरंतर आंदोलन जिसके परिणामस्वरूप कई किसानों की मौत हुई और लखीमपुर खीरी की घटना ने अब राजनीतिक रूप से भी भाजपा को चिंतित करना शुरू कर दिया था। जमीन से प्रतिक्रिया यह थी कि पश्चिमी यूपी के कम से कम 20 निर्वाचन क्षेत्रों में, जहां सिखों और जाटों की एक बड़ी आबादी है, वहां किसानों के आंदोलन और लखीमपुर खीरी की घटना का नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला था।

राष्ट्रीय सिख संगत को पुनर्जीवित करेगा संघ
आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि हमने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठकों के दौरान उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान सिखों और जाटों के लिए किसी भी कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहा था। आरएसएस के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि संघ हालांकि कृषि कानूनों को लेकर सरकार और सिखों के बीच विवाद के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में अधिक चिंतित है। संघ उस अलगाव की भावना से चिंतित है जिसे सिखों ने पिछले एक साल में महसूस करना शुरू कर दिया है। हम राष्ट्रीय सिख संगत को पुनर्जीवित करने पर काम कर रहे हैं, जिसका गठन 1980 के दशक में पंजाब में हुए घटनाक्रम के मद्देनजर किया गया था। उस समय हिंदुओं और सिखों के बीच विभाजन व्यापक हो गया था और संगत ने इसे पाटने के लिए बहुत काम किया था।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anil dev

Recommended News

Related News