कासगंज पर मोदी-योगी की चुप्पी में छिपे कई सवाल

punjabkesari.in Monday, Jan 29, 2018 - 01:41 PM (IST)

नई दिल्ली(ब्यूरो): कासगंज दो दिन दंगे की आग में जलता रहा, न राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और न ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर कुछ बोला। ‘मन की बात’ में बाल विवाह, दहेज प्रथा, महिला सशक्तीकरण, पद्म पुरस्कार जैसे मामलों पर प्रधानमंत्री ने खूब नसीहत दी, मगर सांप्रदायिक सौहार्द का जिक्र तक नहीं किया। कासगंज की घटना पर सीएम योगी की चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है, क्योंकि कानून-व्यवस्था तो राज्य का विषय है।

सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और उच्च जाति के लोगों के बीच हुई झड़प पर रातो-रात डीएम-एसएसपी बदल दिए गए थे। वहां भी बिना प्रशासनिक अनुमति के जुलूस निकालने का मामला उस घटना का कारण बना था। कासगंज में भी यही पुनरावृत्ति हुई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और विश्व ङ्क्षहदू परिषद (विहिप) के जिस तिरंगा यात्रा के बहाने पूरे घटना को दंगे की आग में झोंका गया, बताया जा रहा है कि उसकी प्रशासनिक अनुमति तक नहीं थी। तो सवाल उठना लाजिमी है कि क्या घटना पूर्व नियोजित थी? कासगंज उस वीर सपूत अब्दुल हमीद का पैतृक जिला है, जिसने भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी टैंकों को तहस-नहस कर भारत को जीत दिलाने का काम किया था।

जिस जगह विवाद की शुरुआत हुई, उस जगह को वीर अब्दुल हमीद चौक के नाम से जाना जाता है। बताया जा रहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ युवक इसी चौक पर 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की तैयारी कर रहे थे, जब एबीवीपी और विहिप की तिरंगा यात्रा में शामिल कुछ युवक वहां पहुंचे। उन्हें रास्ते में कुर्सियां बिछी दिखीं तो यात्रा मार्ग बाधित करने की बात कह कर कार्यक्रम आयोजकों से कहासुनी करने लगे। विवाद की शुरुआत यहीं से हुई जो बाद में बढ़कर दो संप्रदायों के बीच दंगे में तब्दील हो गया। अच्छा होता कि तिरंगा यात्रा लेकर जा रहे विहिप और एबीवीपी के लोग अल्पसंख्यक युवकों की ओर से आयोजित राष्ट्रध्वज फहराने वाले कार्यक्रम का हिस्सा बनते और फिर अपनी यात्रा लेकर आगे निकल जाते। ऐसा न कर वे युवक यात्रा मार्ग बाधित करने का मामला बनाकर उत्तेजित नारे लगाने लगे। यह सब अनायास नहीं लगता। यात्रा निकाल रहे लोग स्थानीय थे। उन सबको वीर अब्दुल हमीद चौक पर राष्ट्रध्वज फहराए जाने के कार्यक्रम की जानकारी थी। फिर वही समय और वही रास्ता चुनने का औचित्य क्या था? इसे इत्तेफाक भी मान लिया जाए तो उस कार्यक्रम का हिस्सा बनकर राष्ट्रीय एकता-अखंडता का संदेश देने की बजाए विवाद क्यों बनाया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कासगंज में ‘ध्रुवीकरण’ का टेस्ट (प्रयोग) किया गया?  असल में इस साल के अंत में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं। कर्नाटक को छोड़ बाकी तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं।

इन सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर साफ दिख रही है। ऊपर से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी अपने चार साल के कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं कर पाई, जैसा सपना चुनाव से पहले लोगों को दिखाया गया था। नोटबंदी, जीएसटी ने और लोगों की नाराजगी बढ़ा दी है। बताने के लिए जब काम नहीं है तो वोटों का ध्रुवीकरण ही हथियार होगा। कर्नाटक में भाजपा हिंदुत्व का मुद्दा बनाने की कोशिश में है और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ उसका प्रमुख चेहरा होंगे। योगी की एक दौर की कर्नाटक यात्रा हो चुकी है।  इस घटना के पीछे बीजेपी और विहिप के बीच शुरू हुई अंदरूनी खींचतान को भी देखा जा रहा है। विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगडिय़ा का पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से झगड़ा अब किसी से छिपा नहीं है। मोदी-शाह तोगडिय़ा को किनारे लगाने में लग गए हैं। ऐसे में तोगडिय़ा समर्थक विहिप नेता-कार्यकत्र्ता संभव है भाजपा और मोदी पर दबाव बनाने के मकसद से हिंदुत्व के मुद्दे को उकसा रहे हों। यूपी में भाजपा की सरकार है और दंगे जाहिर है न केवल सरकार बल्कि सत्ताधारी दल पर भी बदनुमा दाग लगाते हैं। इस घटना पर राज्य सरकार की ओर से बरती जा रही नरमी और शनिवार को योगी और मोदी की मुलाकात के बाद भी कोई गंभीर कार्रवाई न होना सवालों का पहाड़ खड़ा कर रहा है।


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