मुनीर बने मुशर्रफ 2.0, क्या पाकिस्तान में होगा तख्तापलट?

punjabkesari.in Saturday, May 10, 2025 - 11:05 PM (IST)

नेशनल डेस्कः भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार शाम 5 बजे सीजफायर लागू होने के बाद एक बार फिर पाकिस्तान ने इस समझौते का उल्लंघन किया। सीजफायर की घोषणा के तीन घंटे बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में फायरिंग शुरू कर दी। यह घटनाएं भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा रही हैं, और इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। इसी बीच पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने एक बार फिर अपनी आक्रामक और विवादास्पद रणनीतियों से यह साबित कर दिया है कि वह अपने पूर्ववर्ती जनरल परवेज मुशर्रफ के रास्ते पर चल रहे हैं। मुनीर की नेतृत्व शैली और उनके द्वारा कश्मीर और भारत के खिलाफ दिए गए उन्मादी बयान, उन्हें "मुशर्रफ 2.0" के रूप में स्थापित कर रहे हैं। पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक संकट और सैन्य शक्ति के बीच बढ़ती अस्थिरता के बीच, क्या पाकिस्तान में एक और तख्तापलट की स्थिति बन रही है? यह सवाल अब हर किसी के मन में है।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर का जिहादी चेहरा
पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने पहले भी भारत और कश्मीर के खिलाफ उन्मादी भाषण दिए हैं। पहलगाम हमले से ठीक पहले उनका जिहादी चेहरा और अधिक स्पष्ट हो चुका था। असीम मुनीर की शहबाज शरीफ के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने उन्हें भारतीय सीमा पर आक्रामक कार्रवाइयों के लिए प्रेरित किया है। उनके द्वारा कश्मीर में शांति को नष्ट करने की कोशिशों के कारण भारत ने उनके खिलाफ एक रणनीति तैयार की है और इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का पर्दाफाश किया गया है। मुनीर का इतिहास भी विवादास्पद रहा है। सियाचिन में तैनात रहते हुए वे भारतीय सीमा पर कई बार आक्रामकता दिखा चुके हैं। उनके कारगिल जैसे कदम पाकिस्तान को गंभीर खतरे में डाल सकते हैं, क्योंकि भारत अब उनकी रणनीतियों के खिलाफ तैयार है।

नवाज़ शरीफ़ और भारत-पाकिस्तान संबंध
पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में शांति के प्रयासों को देखा गया था, हालांकि साथ ही दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष भी देखने को मिला। नवाज़ शरीफ़ के नेतृत्व में लाहौर घोषणा के जरिए दोनों देशों ने परमाणु तनाव को कम करने की कोशिश की थी। लेकिन, कारगिल युद्ध (1999) के बाद यह प्रयास विफल हो गए, जब पाकिस्तान ने कश्मीर में भारतीय ठिकानों पर घुसपैठ की। कारगिल युद्ध के बाद, पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच तनाव बढ़ गया और नवाज़ शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। इससे पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल उत्पन्न हुआ। बाद में जनरल मुशर्रफ ने पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया और भारत के साथ शांति वार्ता की कोशिशें कीं, लेकिन फिर भी सैन्य संघर्षों ने रिश्तों को खराब किया।

नवाज़ शरीफ़ का तीसरा कार्यकाल और भारत-पाकिस्तान संबंध
नवाज़ शरीफ़ ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान भी भारत के साथ शांति की दिशा में कदम उठाए। 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया और 2015 में मोदी ने लाहौर का अचानक दौरा किया। हालांकि, इसके बाद पठानकोट एयरबेस और उरी हमलों ने इन शांति प्रयासों को विफल कर दिया।


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Content Writer

Pardeep

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