कर्नाटक में 5 साल में लापता हुए 13 हजार से ज्यादा बच्चे, बेंगलुरु सबसे आगे
punjabkesari.in Saturday, May 31, 2025 - 06:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कर्नाटक से आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने राज्य में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पिछले पांच वर्षों के भीतर राज्य से करीब 13,000 बच्चे लापता हो चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लड़कियां शामिल हैं। यह आंकड़ा न केवल भयावह है बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह से बच्चों के अपहरण के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं।
पांच साल में 12,790 केस, 1,300 बच्चे अब भी लापता
बेंगलुरु मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 से 2024 के बीच कुल 12,790 बच्चों के अपहरण के मामले दर्ज किए गए हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश बच्चों को खोज लिया गया, लेकिन अब भी 1,300 से अधिक बच्चे ऐसे हैं जिनका आज तक कोई सुराग नहीं मिला है। यह आंकड़ा अपने आप में बहुत कुछ कहता है और यह संकेत देता है कि स्थिति सामान्य नहीं, बल्कि गंभीर है।
लड़कियां ज़्यादा निशाने पर, दिनचर्या के दौरान होते हैं गायब
रिपोर्ट में बताया गया है कि अपहरण हुए बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कहीं अधिक है। चिंताजनक बात यह है कि इन बच्चों का अपहरण उस समय हुआ जब वे अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में लगे थे — जैसे स्कूल जाना, ट्यूशन क्लास अटेंड करना या फिर खेलते समय। यह बताता है कि सार्वजनिक और सुरक्षित माने जाने वाले स्थान भी अब बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं रह गए हैं।
बेंगलुरु बना अपहरण का केंद्र, ये जिले भी शामिल
राज्य में सबसे अधिक अपहरण के मामले राजधानी बेंगलुरु से दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा तुमकुरु, शिवमोग्गा, मांड्या, दावणगेरे, हसन, चित्रदुर्ग और मैसूर जैसे जिले भी इस लिस्ट में शामिल हैं, जहां बच्चों के गायब होने की घटनाएं लगातार दर्ज हो रही हैं। इन जिलों में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बच्चों के लापता होने की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो इस बात को दर्शाता है कि यह समस्या केवल शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में फैली हुई है।
मानव तस्करी और संगठित अपराध की आशंका
इन लापता बच्चों को लेकर सबसे बड़ा डर यह है कि वे किसी बड़े आपराधिक नेटवर्क के शिकार न हो गए हों। सूत्रों के मुताबिक, यह आशंका जताई जा रही है कि कई बच्चे मानव तस्करी, बाल मजदूरी, अंग तस्करी, यौन शोषण या जबरन भीख मंगवाने वाले गिरोहों के हाथों में चले गए होंगे। हालांकि, पुलिस की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि सभी पहलुओं पर जांच की जा रही है और ऐसे आपराधिक नेटवर्क्स पर लगातार निगरानी रखी जा रही है।
सरकार ने बनाई स्पेशल टास्क फोर्स
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने मिलकर लापता बच्चों को खोजने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है। यह टास्क फोर्स पुलिस, बाल संरक्षण एजेंसियों और अन्य संबंधित विभागों के सहयोग से काम कर रही है। इसके अलावा चाइल्ड लाइन, स्कूल प्रशासन, स्थानीय समाजसेवियों और नागरिकों से सहयोग की भी अपील की गई है, ताकि जल्द से जल्द इन बच्चों का पता लगाया जा सके।
अभिभावकों में डर और अविश्वास का माहौल
बच्चों के गायब होने की बढ़ती घटनाओं के कारण अभिभावकों में डर और असुरक्षा की भावना लगातार बढ़ती जा रही है। माता-पिता अब अपने बच्चों को अकेले स्कूल या ट्यूशन भेजने से हिचकिचा रहे हैं। पुलिस की मौजूदगी और निगरानी को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।