गोली का जवाब गोले से देना जानती है मौजूदा मोदी सरकार, पूर्व राजनयिक
punjabkesari.in Friday, Jun 27, 2025 - 06:33 PM (IST)

National Desk : पूर्व राजनयिक विवेक कटजू द्वारा केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी पर की गई टिप्पणी (‘Mapping continuity and a shift’) एक वरिष्ठ राजनयिक के स्तर के अनुरूप नहीं है। उन्होंने पुरी द्वारा “थिएटर ऑफ द अब्सर्ड” शब्द का गलत अर्थ निकाला और जानबूझकर विवाद पैदा करने की कोशिश की। यह बात भारत के ही पूर्व राजनयिक भास्वती मुखर्जी ने अपने लेख मे लिखी है।
भाजपा की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से था प्रभावित : पुरी
पुरी ने ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की रणनीति पर कहा था कि पहले की सरकारें पाकिस्तान के झूठे बयानों को सच मानती थीं और आतंकवाद को उनकी राज्य नीति का हिस्सा होने के बावजूद बातचीत करती थीं। 26/11 के बाद भी भारत ने कोई सख्त कदम नहीं उठाया। आज स्थिति बदली है, अब भारत आतंक के खिलाफ सीधा और प्रभावी जवाब दे रहा है।पुरी के बयान का संदर्भ साफ था, यूपीए सरकार की आतंकवाद से निपटने की नीति को जनता और विशेषज्ञों द्वारा अक्सर कमजोर और हास्यास्पद माना गया है। कटजू का यह कहना कि मोदी सरकार की शुरुआती पाकिस्तान नीति भी उतनी ही विफल थी, भ्रामक और सतही है, क्योंकि दोनों समय के राजनीतिक संदर्भ बिल्कुल अलग थे।
पुरी ने खुद स्वीकारा है कि उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से सहमति के चलते पार्टी जॉइन की। वह 1974 से 2013 तक भारतीय विदेश सेवा में रहे और अधिकतर कांग्रेस सरकारों के अंतर्गत काम किया। उस समय भारत की आतंकवाद से निपटने की रणनीति को कई वरिष्ठ अधिकारियों ने अपर्याप्त और कमजोर माना—खासतौर पर 26/11 के संदर्भ में। “रणनीतिक संयम” (Strategic Restraint) की नीति उस समय कई अधिकारियों को भी स्वीकार नहीं थी। “पुरी राजनेता” दरअसल “पुरी राजनयिक” के अनुभवों से ही बने हैं, उन्होंने खुद देखा कि भारत कैसे आतंकवाद और असममित युद्ध से निपटने में असफल रहा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे उस रक्षात्मक सोच को आज भी समर्थन दें।
2005-2008 के आतंकी हमले, भारत की छवि पर असर
2005 से 2008 तक, यूपीए शासन के दौरान भारत में सात बड़े आतंकी हमले हुए—दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, जयपुर, अहमदाबाद और समझौता एक्सप्रेस जैसे हमलों में 2,000 से अधिक नागरिक मारे गए। 26/11 ने भारत की सुरक्षा छवि को तोड़कर रख दिया, और सरकार की प्रतिक्रिया बेहद बिखरी हुई और भ्रमित करने वाली थी। तत्कालीन कैबिनेट सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने माना था कि पाकिस्तान पर हमला करने के बजाय संयम बरतना बेहतर होगा, लेकिन इसका कोई ठोस लाभ सामने नहीं आया। बाहरी दुनिया को भारत ‘सॉफ्ट स्टेट’ (कमज़ोर राष्ट्र) लगने लगा था। 2009 में शरम अल-शेख में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ दिए गए संयुक्त बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र करना एक बड़ी भूल थी—जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को गलत रूप में पेश किया गया। इन्हीं गलतियों की पृष्ठभूमि में पुरी ने मोदी सरकार की नीति का अंतर बताया, जहाँ पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी, लक्षित और सीमित कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई।
मोदी सरकार की रणनीति में बदलाव
प्रधानमंत्री मोदी 2014 में दक्षिण एशिया को एकजुट, शांतिपूर्ण और व्यापारिक सहयोग वाला क्षेत्र बनाने के लक्ष्य से सत्ता में आए, जो यूपीए की “पड़ोसी पहले” नीति की निरंतरता थी। लेकिन 2016 का पठानकोट हमला इस आशावाद का अंत था। यह हमला मोदी की पाकिस्तान नीति में निर्णायक मोड़ बन गया। गौर करने की बात यह है कि यह हमला मोदी की पाकिस्तान यात्रा से पहले ही योजनाबद्ध था। इसके बाद मोदी सरकार की नीति में स्पष्ट बदलाव आया—2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 का बालाकोट हवाई हमला, और अब पहलगाम के जवाब में आतंकवादी ठिकानों पर गहराई से हमला। इन सभी कार्रवाइयों ने भारत की रणनीति को मजबूत, संतुलित और निर्णायक बना दिया। अब भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहाँ आतंकी संगठन युवाओं को गुमराह करने से पहले दो बार सोचते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा संकट किसी भी नेता के राजनीतिक साहस की परीक्षा होते हैं। मोदी ने ऐसे मौकों पर दृढ़ और तर्कसंगत फैसले लिए हैं, जो यूपीए सरकार की भ्रमित, कमजोर प्रतिक्रिया के ठीक विपरीत हैं। पुरी का साक्षात्कार स्पष्ट, तथ्यपरक और ईमानदार था। इसमें विवाद खड़ा करना, महज सनसनी फैलाना है।