दिल्ली में केजरीवाल से मुकाबला करने उतरे मोदी
punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2025 - 01:23 PM (IST)
नेशनल डेस्क. दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल को चुनौती देने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ धमके हैं। चुनावी सियासत में एक दिल्ली के सुपरस्टार, तो दूसरे देश के सुपरस्टार। बीते विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल का इलेक्टोरल स्टारडम नरेंद्र मोदी पर भारी पड़ा था, तो लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी भारी पड़े थे। केजरीवाल ने 70 में 62 सीटें आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दी थी तो नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की 7 में से 7 सीटें बीजेपी के नाम कर ली थीं। केजरीवाल और मोदी सियासत के मॉडल के दो अलग-अलग नाम हैं। दोनों एक-दूसरे से डरते भी हैं, लड़ते भी हैं। 2025 में केजरीवाल-मोदी के बीच का संघर्ष और उसके नतीजे सियासत की धारा को किस दिशा में ले जाने वाले हैं, इस पर सबकी नज़र है।
पर्सनालिटी पर चुनाव लड़ना नरेंद्र मोदी को भी पसंद है और अरविद केजरीवाल को भी। अरविन्द केजरीवाल अपनी पर्सनालिटी, अपना मॉडल और अपनी स्टाइल में चुनाव लड़ना चाहते हैं। विकास का केजरीवाल मॉडल, फ्री सुविधाओं का मॉडल, आम आदमी का मॉडल अरविन्द केजरीवाल के सियासत की विशेषताएं हैं। ये सभी विशेषताएं अरविन्द केजरीवाल के व्यक्तित्व की धुरी हैं।
केजरीवाल की सियासत में 'नफरत' नहीं
नरेंद्र मोदी भी ‘मोदी है तो मुमकिन है, 'मोदी की गारंटी', 'नॉन बायलॉजिकल' जैसे आत्मनिष्ठ आत्मकेंद्रित मॉडल विकसित करने की कोशिश करते रहे हैं। बड़ा फर्क इन दोनों में ये है कि अरविन्द केजरीवाल कभी नफरत की सियासत नहीं करते। ‘बंटोगे तो कटोगे’ या फिर 'एक हैं तो सेफ हैं' जैसे नारे पॉलिटिक्स के मोदी मॉडल में अतिरिक्त विशेषता हैं जो पॉलिटिक्स के केजरीवाल मॉडल में नहीं हैं। यह फर्क इतना बड़ा है कि निर्णायक हो जाता है।
जब 'चौथी पास राजा' कहकर अरविन्द केजरीवाल नरेंद्र मोदी पर हमला करते हैं तो यह व्यक्तिगत आक्रमण होकर भी मोदी के मॉडल ऑफ पॉलिटिक्स पर हमला होता है। मोदी के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में योग्य मंत्रियों के अभाव पर चुटकी ली गयी होती है। वहीं अरविन्द केजरीवाल इस बहाने अपने पूर्व आईआरएस अफसर होने और अपनी टीम में युवा, पढ़े लिखे लोगों और टेक्नोक्रैट का सामूहिक नेतृत्व पास होने का बोध भी कराते हैं।
महिलाओं को लुभाने में केजरीवाल ने मोदी को पीछे छोड़ा
'वीमेन लेड डेवलपमेंट' यानी ‘महिलाओं के नेतृत्व में विकास’ का नारा देते हैं नरेंद्र मोदी। जबकि, अरविन्द केजरीवाल इसे अमली जामा पहना डालते हैं। आज दिल्ली की मुख्यमंत्री महिला हैं। वजह इसके पीछे चाहे आप जो भी सुविधानुसार खोज सकते हैं। फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री इलाज, बस में फ्री सफर, मोहल्ला क्लीनिक, संजीवनी योजना और मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के साथ अरविन्द केजरीवाल महिलाओं को विकास की मुख्य धारा मे जोड़ चुके हैं, नरेंद्र मोदी को पीछे छोड़ चुके हैं।
मोदी का 'शीश महल' अटैक, काउंटर ज़बरदस्त
अरविन्द केजरीवाल को गुनहगार ठहराने के लिए पीएम मोदी 'शीश महल' का टर्मोलॉजी टॉस करते हैं। केजरीवाल बचाव करने के बजाए चढ़कर पीएम नरेंद्र मोदी पर ही हमला बोलते हैं- “27000 करोड़ के मकान में रहन वाले, 8400 करोड़ के विमान में उड़ने वाले, दस लाख के सूट पहनने वाले किस मुंह से ‘शीश महल’ की बात करते हैं?”
दिल्ली की जनता से किए गये वादों को जुमला करार देते हुए अरविन्द केजरीवाल उल्टे नरेंद्र मोदी को जनता के बीच ही गुनहगार ठहराते हैं। केजरीवाल पूछते हैं कि बीते दस साल में केवल 4700 लोगों को मकान दे पाए हैं नरेंद्र मोदी, क्यों? 15 अगस्त 2022 तक सबको मकान देने के वायदे क्या जुमला थे?
जुमले क्यों बन गये दिल्ली वालों से किए वादे?
दिल्ली देहात के लोगों को उनकी जमीन पर मालिकाना हक कब मिलेगा? किसानों पर मुकदमों में फंसाने वाली धाराएं कब खत्म होंगी? ये सवाल पूछते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि दिल्ली की सरकार ने दो-दो बार प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेज रखा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बाबत वादा किया था। फिर भी ये वादे जुमले क्यों बन गये?
2041 का दिल्ली मास्टर प्लान नोटिफाई नहीं होने के लिए भी मोदी सरकार पर अरविन्द केजरीवाल हमला बोलते हैं। दिल्ली के विकास में रोड़े अटकाने का आरोप मढ़ते हैं। ऐसा करते हुए अरविन्द केजरीवाल उन दिल्लीवासियों की भावनाओं को भी अपने साथ करते हैं जिन्हें 20 सूत्री कार्यक्रम और धारा 74 (4) के तहत हासिल जमीनों पर मालिकाना हक नहीं मिला है।
हमेशा टकराने वाली सियासत नहीं करते केजरीवाल
अरविन्द केजरीवाल हमेशा नरेंद्र मोदी से टकराने वाली सियासत नहीं करते। जब रैपिड रेल परियोजना या मेट्रो परियोजना के उद्घाटन से सियासी लाभ लेने की कोशिश नरेंद्र मोदी कर रहे होते हैं तो केजरीवाल दिल्ली सरकार की भागीदारी और सहयोग का डंका भी साथ-साथ मिलकर पीटने लगते हैं। बताने लगते हैं कि रैपिड रेल ट्रांजिट प्रॉजेक्ट (आरआरटीपी) में दिल्ली सरकार ने 1260 करोड़ रुपये का निवेश किया। 200 किमी की मेट्रो लाइन दस साल मे बनी है, 250 किमी की मेट्रो लाइनें निर्माणाधीन हैं।
बीजेपी की ओर से जवाबी हमला जरूर होता है कि बीते दस साल में दिल्ली सरकार ने 7268 करोड़ रुपये का निवेश किया है। या फिर बीजेपी कहती है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दिल्ली सरकार ने अलवर-पानीपत आरआरटीएस कॉरिडोर के लिए 415 करोड़ रुपये जारी किए थे। मगर, बीजेपी इस बात से इनकार नहीं कर पाती कि इन ये परियोजनाएं अकेले केंद्र सरकार की नहीं है। इसमे दिल्ली सरकार का भी योगदान है।
'वे परेशान करते हैं हम काम करते हैं'
अरविन्द केजरीवाल की सियासत का खास अंदाज यह भी है कि वे दिल्ली वालों के लिए दिन रात काम करते हैं, काम करने की सोचते रहते हैं लेकिन बीजेपी की सियासत कथित तौर पर काम नहीं करने देने की होती है। वे आम आदमी पार्टी की सरकार को परेशान करते हैं, मंत्रियों को जेल भेजते हैं, मुख्यमंत्री को जेल भेजते हैं, केंद्रीय एजेंसियों का सहारा लेते हैं वगैरह-वगैरह।
अरविन्द केजरीवाल ट्वीट कर रहे हैं, 'प्रधानमंत्री जी हर रोज़ दिल्ली के लोगों को गालियाँ दे रहे हैं, दिल्ली की जनता का अपमान कर रहे हैं। दिल्ली के लोग चुनाव में बीजेपी को इस अपमान का जवाब देंगे।'
दिल्ली बीजेपी में लीडरशिप की कमी
अरविन्द केजरीवाल नहीं चाहते हैं कि चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम केजरीवाल हो। मगर, बीजेपी यही चाहती है। बीजेपी को दिल्ली में अपने नेताओं से कोई उम्मीद नहीं है। मगर, दिल्ली की जनता ज्यादा समझदार है। वह जानती है कि दिल्ली विधानसभा में नरेंद्र मोदी की कोई भूमिका नहीं रहने वाली है और बिना रीढ़ की हड्डी के बीजेपी के नेता विधानसभा में बहुमत अगर ले आए तो उन पर रिमोट कंट्रोल वाला नेतृत्व थोप दिया जाएगा। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी का जादू लोकसभा चुनाव में तो दिल्ली में चल जाता है लेकिन विधानसभा चुनाव में वह जादू कहीं गायब हो जाता है। अरविन्द केजरीवाल का नेतृत्व स्वतंत्र है और उनके वादों पर उन्हें कभी भी पकड़ा जा सकता है, यह बड़ा फर्क है जो दिल्ली वालों को केजरीवाल से जोड़ता है।
गृहमंत्री पर हमलाकर मोदी को घेरते हैं केजरीवाल
अरविन्द केजरीवाल को सूट करता है गृहमंत्री अमित शाह पर हमले करना। दिल्ली में कानून-व्यवस्था की बुरी स्थिति, नशाखोरी, नागरिकों और खासकर महिलाओं में असुरक्षा जैसे मुद्दों पर वे लगातार हमलावर भी हैं। अरविन्द केजरीवाल का ताजा ट्वीट देखें, “अमित शाह जी, कृपया इसे रोकिए। आप लोगों ने दिल्ली का क्या हाल कर दिया। कुछ तो कीजिए? प्रधान मंत्री जी, अगर अमित शाह जी से नहीं हो पा रहा तो कोई काबिल गृह मंत्री दीजिए जो दिल्ली वालों को सुरक्षा दे सके।” जाहिर है अमित शाह को नकारा और अकर्मण्य बताकर अरविन्द केजरीवाल सीधे नरेंद्र मोदी पर भी उंगली उठा रहे हैं।
केजरीवाल बनाम मोदी के बीच निश्चित रूप से कांग्रेस कहीं न कहीं पिस कर रह जाती है। कांग्रेस के पास संदीप दीक्षित, अजय माकन जैसे नेता तो हैं लेकिन वे नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल के मुकाबले स्तरीय नेता कतई नहीं हैं। या फिर कहें कि उनके नेतृत्व को उभरने का अवसर नहीं मिला। ऐसे में दिल्ली की आबोहवा में नरेंद्र मोदी के सियासत का मॉडल भी अरविन्द केजरीवाल की सियासत के मॉडल पर प्रभावी होता नहीं दिख रहा है। यहीं से केजरीवाल मॉडल के गिर्द मजबूत होती सियासत आम आदमी पार्टी को सत्ता के बेहद करीब पहुंचा देती है।
प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व टीवी पैनलिस्ट
Disclaimer: ये पत्रकार के निजी विचार हैं।