मेडिकल सर्टिफिकेट मौत का फरमान न बन जाए

punjabkesari.in Tuesday, Apr 26, 2016 - 04:06 PM (IST)

बीमारी के लिए अथवा नौकरी के दौरान छुट्टी के लिए आम आदमी को मेडिकल सर्टिफिकेट की जरुरत पड़ जाती है। यह जानकर विश्वास नहीं होता कि आतंकियों को भी आराम करने के लिए यह सटिफिकेट चाहिए। लेकिन यह सत्य है। यह आराम नहीं, उन्होंने लड़ाई से बचने का तरीका खोज निकाला है। वे ऐसा स्रोत ढूंढते हैं जो उनकी समस्या का हल निकाल सके। उनके लिए झूठे सर्टिफिकेट का इंतजाम कर सके। इस जानकारी को जुटाने का दावा अमरीकी सेना ने किया है। उसके मुताबिक आतंकियों को इन लड़ाइयों से निजात चाहिए। वे इनसे बहुत परेशान हो चुके हैं। इंतजाम में कमियां, पैसे का अभाव और सेना के बढ़ते दबाव को इसके मुख्य कारण माना जा रहा है।

पूर्वी सीरिया में कई आतंकियों के ऐसे मेडिकल सर्टिफिकेट देकर लड़ाई के मैदान में न जाने के मामले सामने आए हैं। आईएसआईएस की फौज में बड़े पैमाने पर युवाओं को भर्ती किया गया है,फिर वे मेडिकल अनफिट कैसे होने लगे। एक और खबर ने इन लड़ाकों को मानसिक रूप से परेशान कर दिया है। वह है उनका वेतन आधा कर दिया जाना। वे वेतन कम मिलने से निराश हैं, जबकि उन्हें मोटे पैसे का और कई सब्जबाग दिखाकर संगठन से जुड़ने लालच दिया गया था। आईएसआईएस की परेशानी यह है कि उसका अब इराक ओर रमाडी पर कब्जा नहीं रहा है। अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे ताकतवर देशों ने साझा हमला करके उसकी कमर तोड़ दी है। वह पैसे की भारी कमी से जूझ रहा है। अमरीकी सेना के थिंक टैंक सेंटर फॉर कंबेटिंग टेरेरिज्म के मुताबिक हर आतंकी को करीब 100 पाउंड यानि 9700 रुपए दिए जा रहे है। इतने कम वेतन में जान की बाजी लगाने का जोश अब उनमें कम होता जा रहा है।

घायलों के बारे में समझा जा सकता है कि उन्हें हमलों में न जाने की कुछ छूट मिल जाती होगी। लेकिन पिछने दिन पहले एक और खबर ने उनकी रुह को कंपा दिया है। घायल लड़कों का जिंदा रहना मुश्किल हो गया है। पैसे की कमी दूर करने के लिए उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है,फिर उनके अंगों को निकालकर अवैध तरीके से विदेशी बाजारों में बेचा जा रहा है। अरबी अखबार अल-सबह और ईरानी न्यूज एजेंसी फॉर्स ने इसकी पुष्टि की है। इनके अनुसार घायलों को मारकर उनका दिल और किडनियों को निकालकर विदेशी बाजारों में उन्हें बेचने के लिए भेजा जाता है। मोसूल की जेल में बंद कैदियों का खून निकालने की खबर भी मिली है। ये सैनिक सीरियाई सेना के थे। एक अस्पताल के कर्मियों ने 183 लोगों के शव देखे थे जिनके अंग निकाले गए थे। संयुक्त राष्ट्र में इराक के राजदूत मोहम्मद अलहाकिम आईएस पर अंगों की तस्करी का आरोप लगा चुके हैं।

इन घटनाओं से जाहिर होता है कि अपने अस्त्त्वि को बनाए रखने के लिए आईएसआईएस किसी प्रकार का भी अमानवीय कदम उठा सकता है। यदि अपने लड़ाकों के प्रति यही रवैया रहा तो उनकी तादाद में तेजी से कमी आ सकती है। उनमें पैसे का आकर्षण समाप्त हो रहा है,सुविधाओं की कमी होती जा रही है और घायल होने के बाद भी उनके जिंदा रहने की गारंटी नहीं है। उन्होंने इससे बचने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट देने का जो आ​इडिया निकाला है उसके देर तक चलने की कोई गारंटी नहीं है। कुछ सीमित संख्या तक लड़ाकों के यह तरकीब चल सकती है,बड़ी संख्या में यदि ऐसे सर्टिफिकेट आने लगेंगे तो उनकी सत्यता पर संदेह होना स्वाभाविक है। कोई गंभीर रूप से घायल है तो वह अब आईएस के लिए फायदे का सौदा बन गया है। उन्हें देर तक वह ढोना नहीं चाहेगा। इसका रास्ता भी उसने निकाल लिया है,जो बहुत भयावह है।

आईएसआईएस युवाओं की भर्ती ठीक उसी तरह से किया करता था जिस तरह से कॉरपोरेट  वर्ल्ड या फिर बड़ी कंपनियां उनकी हायरिंग करती हैं। कुछ मामले ऐसे भी आए जब युवाओं को एक अच्छे खासे पैकेज के जरिए संगठन में शामिल होने के लिए आकर्षित किया गया। उसने जॉब साइट्स पर आने वाले तमाम युवाओं पर अपनी नजर रखनी शुरू की जो नौकरी की तलाश में रहते। रिक्रूटर्स किसी भी युवा का नंबर हासिल कर उससे संपर्क करते। कुछ युवाओं से यह तक पूछा गया कि क्या वह टर्की, सऊदी अरब या फिर यूएई जैसे देशों में नौक‍री करने के इच्छुक हैं। अगर वह हां कहते तो फिर उनसे अच्छी सैलरी का वादा किया जाता। साथ ही साथ उनके लिए ट्रैवलिंग के भी खासे इंतजाम किए जाते। इन देशों में नौकरी का लालच देकर कुछ युवाओं को भर्ती किया गया था। जब वे उनके पास पहुंच जाते तो फिर उन्हें झांसा देकर इराक या फिर सीरिया भेज दिया जाता। डेसक जॉब पर कम और लड़ाई के मैदान में अधिक को उतारा जाता। अब असलियत उनके सामने आ चुकी है। जाल में फंसे कई युवा आजादी के लिए छटपटा रहे हैं।

आईएसआईएस संगठन से युवाओं कर मोहभंग हो रहा है। संगठन ने आर्थिक संकट को दूर करने के लिए तो कदम उठाया है यह उसके लिए घातक साबित होगा। वह दिन दूर नहीं जब उसके लड़ाके मैदान ही नहीं,संगठन को छोड़ कर भागना शुरू कर देंगे।


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