सामान्य होते भारत-चीन संबंधों के अर्थ

punjabkesari.in Monday, Apr 30, 2018 - 01:24 AM (IST)

नेशनल डेस्कः शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मध्य चीनी शहर वुहान में दो दिवसीय अनौपचारिक वार्ता में भाग लेकर देश लौट आए। ‘चाइना डेली’ समाचार पत्र के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चीन तथा भारत ‘दो बदन हैं परंतु उनकी आत्मा एक है।’ उन्होंने यह भी कहा कि 2000 वर्षों के इतिहास में भारत तथा चीन ने मिल कर विश्व अर्थव्यवस्था को गति तथा मजबूती दी है और 1600 वर्षों तक इस पर उनका वर्चस्व रहा है।

दूसरी ओर शी ने कहा कि ‘हमारी इस मुलाकात के समय अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सुधार के अहम मोड़ पर है। चीन तथा भारत दोनों वैश्विक विकास के महत्वपूर्ण इंजन हैं और हम बहुध्रुवीय तथा वैश्वीकृत होती जा रही दुनिया को प्रोत्साहित करने के प्रमुख स्तम्भ हैं। विश्व में शांति तथा संतुलन के लिए चीन-भारत के अच्छे संबंध एक महत्वपूर्ण तथा सकारात्मक कारक हैं।

शी की ये बातें केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं हैं कि ये ऐसे समय में कही गई हैं जब अमेरिका तथा अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने विभिन्न संरक्षक कदम उठाए हैं तथा चीन के उत्पादों पर भारी आयात शुल्क लगाए हैं, बल्कि इस तथ्य के चलते भी महत्वपूर्ण हैं कि चीन तथा भारत के मध्य 73 दिनों तक चले डोकलाम विवाद के बाद से ही दोनों देशों में तनाव काफी बढ़ गया था।

दोनों देशों के बीच एक के बाद एक कई उच्चस्तरीय वार्ताएं हुईं 
इस बीच भारत के साथ दो-दो हाथ करने के लिए युद्ध छेडऩे की आवाज चीनी मीडिया में उठती रही। हालिया सैटेलाइट इमेज तथा इंटैलीजैंस रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि चीन ने अनेक स्थायी सैन्य चौकियां, कुछ हैलीपैड तथा नई खंदकें उस स्थान के करीब ही बना ली हैं जहां दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के सामने डटी रही थीं। कड़ाके की सर्दी के बावजूद वहां 1800 चीनी सैनिक तैनात हैं। हालांकि, यह मुलाकात अचानक नहीं हुई। दोनों ही ओर से कई कदम उठाए गए। अगस्त में रूस, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका के नेताओं के साथ हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों के मध्य गतिरोध खत्म हुआ। इसके बाद भारत की ओर से एक के बाद एक उच्चस्तरीय यात्राएं की गईं जिनमें भारतीय विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्री तथा रक्षा मंत्री शामिल थे।

कुछ खास राजनीतिक कदम भी उठाए गए जैसे कि तिब्बत से दलाई लामा के निष्कासन के 60 वर्ष पूरे होने संबंधी समारोहों से अधिकारियों को दूर रहने के निर्देश भारत सरकार ने जारी किए थे। मार्च में शी के जीवन भर के लिए राष्ट्रपति चुने जाने पर मोदी ने उन्हें बधाई भी दी।

इन कदमों के उत्तर में चीन ने अपने यहां से भारत को बहने वाली नदियों का हाइड्रोलॉजिकल डाटा सांझा करने के अलावा भारत के साथ निम्र स्तरीय मिलिट्री एक्सरसाइज फिर से शुरू करने का प्रस्ताव दिया। ये दोनों गतिविधियां गत वर्ष संकट के बाद से स्थगित थीं। आखिर क्यों अब दोनों देश संबंध सामान्य बनाने के इच्छुक हैं और क्या ये इतने पुख्ता हैं कि इन पर नए संबंध बनाए जा सकते हैं या यह केवल राजनयिक पहल ही है?

भारत को चाहिए कई मुद्दों पर चीन का साथ
सबसे पहले तो आक्रामक तेवर छोडऩा दोनों ही देशों के हित में है। फिर चाहे डोकलाम में सैन्य दृष्टि तथा ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना से दूर रह कर राजनीतिक दृष्टि से चीन को टक्कर देने वाला भारत ही एकमात्र राष्ट्र था। सीमा के कई हिस्सों पर भारत के पास सैन्य बढ़त है परंतु अपनी ताकत बढ़ाने में इसे अभी समय लगेगा। भारत कई मुद्दों पर भी चीन का सहयोग चाहता है जैसे कि पाकिस्तानी आतंकी गुटों पर दबाव बनाना तथा मसूद अजहर को आतंकी घोषित करना। मोदी के साथ संबंधों को आगे बढ़ा कर शी भारत के अमेरिका तथा उसके सहयोगियों की ओर झुकाव को रोकना चाहते हैं जो कॉमनवैल्थ देशों में भारत की प्रमुख भूमिका से जाहिर है।

हालांकि, अभी इसे दोनों देशों में घनिष्ठता के रूप में देखना जल्दबाजी होगी। चीन के फूदान विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफैसर शेन ङ्क्षडगली का मानना है कि राजनयिक आयोजन इतने महत्वपूर्ण नहीं होते जितना कि उनका मसौदा तथा ईमानदारी। उनका यह भी मानना है कि ‘यदि मैं एक भारतीय होता तो अभी मैं अपना रुख नरम नहीं करता’ क्योंकि सामान्य होते रिश्तों के बावजूद दोनों देशों में प्रतिद्वंद्विता आसमान, जमीन तथा सागर में पहले से भी अधिक बलवती होती जा रही है। - विजय कुमार


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