Lok Sabha Elections 2024: AI कैसे बन रहा बड़ी चुनौती ? कुछ सेकेंडों में बदल सकता है हार-जीत का फैसला

punjabkesari.in Friday, Mar 15, 2024 - 10:48 AM (IST)

नेशनल डेस्क: वर्तमान में, भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव दिख रहा है जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को चुनाव प्रचार में उपयोग किया जा रहा है। नई तकनीक के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी और उनके नेता आगे बढ़ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें अग्रणी हैं। बीजेपी ने विभिन्न भाषाओं में मोदी जी के भाषणों का अनुवाद करने के लिए AI का इस्तेमाल किया है, जो कि चुनाव प्रचार में एक नया मोड़ है। सोशल मीडया पर बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, ओडिया और मलयालम जैसी भाषाओं में भी पीएम मोदी का भाषण सुना जा सकता है।

दिसंबर 2023 में उत्तर प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदी भाषण का तमिल में अनुवाद करने के लिए एक खास AI टूल का इस्तेमाल किया गया था। ये टूल असली समय में काम करता है, यानी भाषण होते वक्त ही अनुवाद कर देता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का चुनाव प्रचार में उपयोग न केवल वोटरों को समझने में मदद करता है, बल्कि राजनीतिक दलों को भी अपने संदेश को अधिक प्रभावशाली ढंग से पहुंचाने में सहायक होता है। इस नई तकनीक का इस्तेमाल चुनाव प्रचार अभियान को और असरदार बना सकता है और वोटों की गिनती को सीधे देखने में भी मदद कर सकता है।

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चुनाव में AI का हुआ इस्तेमाल
हाल ही में पाकिस्तान के आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने उनके नए भाषणों में उनकी आवाज की कॉपी करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया, जबकि खुद इमरान खान जेल में बंद थे। इसी साल जनवरी में बांग्लादेश के चुनाव में उल्टा हुआ। वहां विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार समर्थक लोगों ने गलत काम के लिए एआई का इस्तेमाल किया। विपक्ष को नीचा दिखाने के लिए बनावटी वीडियो (दीपफेक) तक भी बनाए गए। चीन और रूस पर ये आरोप लगा है कि वो दूसरे देशों के चुनाव को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं, खासकर ताइवान में। 

AI प्रभावित चुनाव 
हालांकि, इस तकनीक के गलत उपयोग का भी खतरा है, जैसे कि फेक न्यूज को फैलाना। इसलिए, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को इस तरह की गलत जानकारी को रोकने के लिए सख्त नियमों का पालन करना चाहिए। ये फेक न्यूज लोगों को आपस में लड़ा सकते हैं। इस टेक्नॉलजी से बड़े-बड़े लोग भी चिंतित हैं। उनका कहना है की पहले हम खबर को अखबारों और टीवी से खबरें पढ़ते-देखते थे। अब फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी चीजों पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लिया जाता है।

इन पर फेक न्यूज यानी झूठी खबरें बहुत तेजी और असानी से फैलाई जाती हैं। एक सर्वे में 87 फीसदी लोगों ने माना है कि ये फेक न्यूज ही चुनाव को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं। ये नई टेक्नॉलजी हमारी पसंद और नापसंद को समझकर ऐसी खबरें दिखा सकती है जिन्हें हम सच मान लेंगे। इसका इस्तेमाल किसी नेता की छवि खराब करने के लिए भी किया जा सकता है। उनके गलत बयान तैयार किए जा सकते हैं या उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा सकता है। 

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निष्पक्ष चुनाव की संभवता
ये फेक न्यूज सिर्फ लिखावट में ही नहीं बल्कि वीडियो और आवाज में भी हो सकती है, जिन्हें असली समझना बहुत मुश्किल है। चुनाव में उम्मीदवार के हार-जीत के नतीजों पर बड़ा असर पड़ सकता है। अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है, पर चिंता है कि भविष्य में AI का इस्तेमाल मतगणना में गड़बड़ी करने के लिए भी किया जा सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निष्पक्ष चुनाव करा पाना संभव हो पाएगा? AI के ये टूल इतने बढ़िया होते हैं कि ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि असल में ये गलत काम किसने किया।

गूगल और चुनाव आयोग  की पार्टनरशिप
गूगल के साथ चुनाव आयोग की पार्टनरशिप का फैसला एक सकारात्मक कदम है, जिससे लोगों को सही और जरूरी जानकारी मिल सके। इस तरह की पहल से, निष्पक्ष चुनाव का संभावनात्मक अनुमान है। लेकिन, इस नई तकनीक के अपयोग से जुड़ी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, इसे ठीक से नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि यह चुनाव प्रक्रिया को गलत दिशा में न ले जाए। इसमें अब यूट्यूब और गूगल सर्च पर चुनाव से जुड़ी जरूरी जानकारी (जैसे- वोटर रजिस्ट्रेशन और वोट कैसे डालें) आसानी से मिल सकेगी। साथ ही गलत जानकारियों को फैलने से रोकने के लिए गूगल खास तकनीक (AI) का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा चुनाव से जुड़े विज्ञापनों को दिखाने के लिए भी गूगल सख्त नियम लागू कर रहा है।

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गूगल कैसे फर्जी खबरें रोकेगा 
गूगल ने चुनाव में फर्जी खबरों को फैलने से रोकने के लिए एक नया दल (कोलिशन) ज्वाइन किया है। इस दल का नाम है कोएलिशन फॉर कंटेंट प्रोवीनेंस एंड ऑथेंटिसिटी (सी2पीए)। इससे पहले भी गूगल ने 'गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव ट्रेनिंग नेटवर्क' और 'फैक्ट चेक एक्सप्लोरर टूल' जैसी चीजें शुरू की थीं, ताकि पत्रकार सही खबरें लोगों तक पहुंचा सकें और गलत खबरों का पर्दाफाश कर सकें। जल्द ही यूट्यूब पर वीडियो बनाने वाले लोगों को ये बताना जरूरी होगा कि उन्होंने जो वीडियो बनाया है वो असल है या नहीं। साथ ही यूजर्स को भी ये पता चलेगा कि ये असली नहीं है क्योंकि यूट्यूब खुद ही वीडियो पर लेबल लगाएगा। 

क्या है फेक खबर के खिलाफ कानून 
अभी तक भारत में कोई खास कानून नहीं है जो सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डीपफेक टेक्नोलॉजी को ध्यान में रखकर बनाया गया हो और जो सीधे ऐसे फर्जी वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को सजा दे सके। मौजूदा कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति पर तब तक कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक कि वो गलत सूचना देश की सुरक्षा, एकता या अखंडता के लिए खतरा न हो या किसी की बदनामी न करे। अगर कोई व्यक्ति किसी नेता की नकली आवाज या वीडियो बनाकर झूठी खबर फैलाता है, तो उस पर पुराने कानून जैसे भारतीय दंड संहिता (1860) या आने वाले नए कानून भारतीय न्याय संहिता (2023), इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (2000) और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम, 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है। देश दुनिया में हर नई टेक्नॉलोजी आने पर ये सवाल हमेशा उठता है कि आखिर इसका इस्तेमाल अच्छा होगा या बुरा। कुछ लोग एआई से घबराते हैं, वहीं कुछ को लगता है ये बहुत फायदेमंद भी हो सकता है।


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Content Editor

Mahima

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