तेजाब के हर वार से झुलसती जिंदगियां : कानून, सिस्टम और समाज — तीनों की नाकामी की दर्दनाक कहानी!
punjabkesari.in Tuesday, Oct 28, 2025 - 06:07 AM (IST)
नेशनल डेस्कः राजधानी दिल्ली में फिर एक दिल दहला देने वाला एसिड अटैक (Tezaab Attack) सामने आया है। घटना ने एक बार फिर उस भयावह सच्चाई को उजागर कर दिया है कि भारत में तेज़ाब फेंकने वाले अपराधी आज भी कानून से ज़्यादा मजबूत और निडर हैं।
इस बार निशाना बनी है दिल्ली यूनिवर्सिटी की 20 वर्षीय छात्रा, जो लक्ष्मीबाई कॉलेज में पढ़ाई करती है। सोमवार को मुकुंदपुर इलाके में कुछ लोगों ने उसके ऊपर चलती सड़क पर तेजाब फेंक दिया। लड़की के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए। शुरुआती जांच में यह मामला एक परिवारिक साजिश की तरह उभरा। पुलिस ने लड़की के पिता को ही गिरफ्तार किया है, जिसने कथित तौर पर अपने परिचितों की मदद से यह हमला कराया था ताकि किसी को झूठे केस में फंसाया जा सके।
हालांकि इस चौंकाने वाले मोड़ के बावजूद, सवाल वही पुराना है। तेज़ाब आखिर इतनी आसानी से मिलता कैसे है?
कानून सख्त, लेकिन अमल बेहद कमजोर
भारत में 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड की खुली बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। अदालत ने आदेश दिया था कि
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विक्रेता को खरीदार की पहचान नोट करनी होगी,
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बिक्री का पूरा रिकॉर्ड रखना होगा,
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और किसी को भी बिना अनुमति एसिड नहीं बेचा जा सकता।
फिर भी, सड़क किनारे दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर यह ज़हर आज भी सौ-दो सौ रुपये में आसानी से मिल जाता है।
आईपीसी की धारा 326A और 326B के तहत
दोषी को 7 साल से उम्रकैद तक की सजा और कोशिश करने वाले को 5 से 7 साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन NCRB (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के आँकड़े बताते हैं कि 2017 से अब तक इन मामलों में न तो गिरावट आई, न ही दोषियों को सजा दर बढ़ी।
2017 – 244 केस
2021 – 176 केस
2023 – 207 केस
यानी हर साल औसतन 200 से ज्यादा महिलाएं तेज़ाब की शिकार बन रही हैं।
कौन से राज्य सबसे आगे
2023 की क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक –
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पश्चिम बंगाल: 57 केस (देश में कुल का 27%)
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उत्तर प्रदेश: 31 केस
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गुजरात: 15 केस
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ओडिशा: 11 केस
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हरियाणा और असम: 10-10 केस
दिल्ली में भी औसतन हर दो महीने में एक नया केस दर्ज होता है।
तेज़ाब का ज़ख्म सिर्फ शरीर नहीं जलाता
तेज़ाब हमले का दर्द सिर्फ चंद सेकंड का नहीं होता, बल्कि ज़िंदगीभर का होता है। 30 से 40 सर्जरी, सालों तक चलने वाला इलाज और समाज की टेढ़ी नज़रों का बोझ। पीड़िता को हर दिन अपने जले हुए चेहरे से ज्यादा अपमान और अकेलेपन से लड़ना पड़ता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, एसिड अटैक पीड़िताओं में से 80% महिलाएं होती हैं, और उनमें से करीब 70% मामलों में हमलावर पति, प्रेमी, रिश्तेदार या पड़ोसी होता है। यानी खतरा घर के भीतर से ही निकलता है।
क्यों नहीं रुक रहे ऐसे हमले
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आसान उपलब्धता – सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एसिड खुलेआम बिक रहा है।
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धीमी न्याय प्रक्रिया – केसों में सजा मिलने में सालों लग जाते हैं, जिससे अपराधी निडर रहते हैं।
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समाज की चुप्पी – पीड़िता पर सामाजिक कलंक और समझौते का दबाव अपराधियों को बचा लेता है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी हाल ही में कहा था – “हमने बार-बार चेताया, नोटिस भेजे, लेकिन आज भी दिल्ली की दुकानों में एसिड सब्जी की तरह बिक रहा है।”
एसिड अटैक के तुरंत बाद क्या करें
इंग्लैंड की NHS गाइडलाइन के अनुसार –
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सबसे पहले प्रभावित हिस्से को कम से कम 20 मिनट तक ठंडे पानी से धोएं।
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कपड़े या जेवर जो एसिड से गीले हों, तुरंत हटा दें।
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किसी भी क्रीम या मरहम का उपयोग न करें।
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जल्द से जल्द मेडिकल सहायता लें।
ज़रूरत सिर्फ कानून की नहीं, जागरूकता की भी
एसिड अटैक सिर्फ एक अपराध नहीं — यह समाज की बीमार मानसिकता का आईना है। जब तक लोग बोलेंगे नहीं, जब तक सिस्टम नियमित जांच नहीं करेगा और जब तक ऑनलाइन बिक्री पर सख्त रोक नहीं लगेगी तब तक हर साल सैकड़ों चेहरे यूं ही जलते रहेंगे।
