विधि मंत्रालय ने नये वाद नीति दस्तावेज को मंजूरी दी, कहा- UCC एजेंडे में बनी रहेगी

punjabkesari.in Wednesday, Jun 12, 2024 - 12:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कई अवसरों पर विचार-विमर्श के बाद, केंद्रीय विधि मंत्रालय ने मंगलवार को राष्ट्रीय मुकदमा नीति पर एक दस्तावेज को अंतिम रूप दिया, जिसका उद्देश्य लंबित मामलों के शीघ्र समाधान पर जोर देना है। विधि मंत्री का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को राष्ट्रीय वाद नीति “दस्तावेज” पर हस्ताक्षर किए। राष्ट्रीय वाद नीति दस्तावेज को मंजूरी के लिए आने वाले दिनों में केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा।

सूत्रों ने बताया कि यह नीति मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिवसीय एजेंडे का हिस्सा है। कार्यभार संभालने के तुरंत बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए मेघवाल ने कहा कि मंत्रालय की प्रमुख प्राथमिकता सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों, निचली अदालतों, न्यायाधिकरणों और उपभोक्ता अदालतों में लंबित मामलों में तेजी से न्याय दिलाना होगी। एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि दस्तावेज में लंबित मामलों से संबंधित मंत्री द्वारा उठाए गए मुद्दों को शामिल किया गया है। पदाधिकारी ने बताया, “यह पहली फाइल थी जिस पर वह हस्ताक्षर करना चाहते थे।” राष्ट्रीय वाद नीति का मसौदा कई वर्षों से तैयार किया जा रहा है तथा विभिन्न सरकारों द्वारा इसकी रूपरेखा पर विचार-विमर्श किया किया गया है।

मेघवाल ने कहा, “वाद से संबंधित सभी हितधारकों के लिए जीवनयापन में आसानी एक कारक है...वादियों, अधिवक्ताओं और अन्य सहित सभी हितधारक इसका हिस्सा हैं...मंत्रालय ने नीति दस्तावेज को अंतिम रूप दे दिया है।” संप्रग-दो में तत्कालीन कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने राष्ट्रीय वाद नीति पेश की थी, लेकिन यह कभी आगे नहीं बढ़ सकी। मोइली ने नीति तो बना दी थी, लेकिन इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए नहीं भेजा था। बाद में जब यह दस्तावेज कैबिनेट के पास गया तो इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। एक आधिकारिक बयान में 23 जून, 2010 को कहा गया था कि केंद्र ने राष्ट्रीय विधिक मिशन के तहत भारत के विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए एक राष्ट्रीय वाद नीति तैयार की है, ताकि लंबित मामलों की औसत अवधि 15 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष की जा सके।

नरेन्द्र मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आई तो विधि मंत्रालय ने इस नीति पर एक नया कैबिनेट नोट भेजा और तब से यह लंबित पड़ा है। पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पी.के. मल्होत्रा ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, “राष्ट्रीय वाद नीति की मांग की जा रही है क्योंकि आरोप है कि सरकार द्वारा न्यायालयों में बेबुनियाद मामले दायर किए जाते हैं क्योंकि अधिकारी संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना पसंद नहीं करते हैं। न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए नीति आवश्यक है।” मध्यस्थता के एक सवाल का जवाब देते हुए मेघवाल ने कहा कि सरकार भारत को मध्यस्थता का केंद्र बनाने की दिशा में काम कर रही है और योजनाओं को सक्षम बनाने के लिए कुछ कानूनों में बदलाव किया गया है। उन्होंने कहा, “विवादों (मध्यस्थता के तहत) का निस्तारण यहीं क्यों नहीं किया जा सकता। भारतीयों को मध्यस्थता के लिए सिंगापुर, दुबई या लंदन क्यों जाना चाहिए?” राष्ट्रीय वाद नीति 2014 से भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रही है। 
 


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Content Editor

Mahima

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