PICS: मिनटों में तबाह हो गया था केदारनाथ धाम, लेकिन मंदिर को नहीं पहुंचा कोई नुकसान

punjabkesari.in Friday, Oct 20, 2017 - 03:55 PM (IST)

देहरादूनः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज केदारनाथ मंदिर के भव्य और दिव्य पुर्निनर्माण की रूपरेखा का अनावरण करते हुए राज्य सरकारों के साथ-साथ उद्योग और व्यापार जगत से भी इसमें आगे आकर योगदान का आह्वान किया। मंदिर के 21 अक्तूबर को कपाट बंद होने जा रहे हैं।
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भारी बर्फबारी होने के चलते इस मंदिर को बंद कर दिया जाता है। लगभग 400 साल तक बर्फ के अंदर पूरी तरह से ढका हुआ बाबा केदारनाथ का मंदिर जिसे बारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, जिसकी महिमा अपरंपार है। चारों तरफ बर्फ के पहाड़ और दो तरफ से मन्दाकिनी और सरस्वती नदियों के बीचों बीच खड़ा शिव के इस मंदिर की छठा अनोखी है। 2013 में यहां जो तबाही आई थी उसका मंजर आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है।
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16 जून 2013 की वो भयावह रात
16 जून 2013 की रात केदारनाथ में घड़ियाल, शंख और श्लोक आखिरी बार गूंजे थे। इसके बाद शिव की इस नगरी में ऐसा जल प्रलय आया कि केदार घाटी की का पूरा रूप ही बदल गया। शहर में वीरानी छा गई। लोग मदद के लिए पुकार रहे थे और रास्तों पर लाशों के ढेर लगे थे। इस सब तबाही के बीच अगर कुछ सही सलामत बचा था तो वो थे केदारनाथ मंदिर। हालांकि पानी मंदिर के अंदर तक गया जरूर लेकिन इस धाम को क्षति नहीं पहुंचा सका।
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बदल गया था मंदाकिनी की धारा का रुख
इस तबाही में न होटल बचे थे और न ही धर्मशालाएं। चारों तरफ बह रही थीं सिर्फ लाशें। तबाही का कारण बना केदरानाथ के पड़ोस में बहने वाली नदी मंदाकिनी की धारा का रुख बदलना। पूरे उत्तराखंड की नदियां किनारे तोड़कर बहने लगीं। देवभूमि की नदियों के प्रचंड प्रवाह में देव और महादेव भी बह गए। पहाड़ सरक गए, सड़कें धस गईं। कुछ नहीं बचा था तब। आईटीबीपी ने तब केदारनाथ में फंसे कई लोगों को बचाकर निकाला। कहते हैं कि कई शव कहां गए उनका पता नहीं चल पाया। काफी दिनों तक लोग अपनों को ढूंढते रहे।

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