जस्टिस वर्मा की बढ़ेंगी मुश्किलें! मोदी सरकार ला सकती है महाभियोग प्रस्ताव,आवास से मिले थे जले हुए नोट
punjabkesari.in Wednesday, May 28, 2025 - 06:29 AM (IST)

नेशनल डेस्कः दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार जल्द ही संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकती है। यह कदम तब सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को प्रमाणित और विश्वसनीय पाया।
क्या है पूरा मामला?
14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद फायर ब्रिगेड को बड़ी मात्रा में जले हुए नोटों की गड्डियाँ मिली थीं। इस घटना ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के एक गंभीर और दुर्लभ मामले को उजागर किया। इसके बाद 22 मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया।
कौन थे जांच समिति में?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इस समिति में देश के तीन वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल थे:
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न्यायमूर्ति शील नागू – मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट
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न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया – मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
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न्यायमूर्ति अनु शिवरामन – न्यायाधीश, कर्नाटक हाई कोर्ट
इस समिति ने कई गवाहों और सबूतों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोप “विश्वसनीय और गंभीर” हैं।
CJI खन्ना की सिफारिश और राष्ट्रपति को रिपोर्ट
9 मई 2025 को इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, CJI संजीव खन्ना ने समिति की जांच रिपोर्ट को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा था। रिपोर्ट के साथ यह सिफारिश भी की गई कि जस्टिस वर्मा को हटाने की महाभियोग प्रक्रिया शुरू की जाए।
हालांकि, जस्टिस वर्मा को स्वयं इस्तीफा देने का विकल्प दिया गया था, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया।
ट्रांसफर और निष्क्रियता
20 मार्च को जस्टिस वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट में कर दिया गया और उन्होंने 5 अप्रैल को वहां न्यायाधीश पद की शपथ ली, लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया।
राष्ट्रपति द्वारा यह रिपोर्ट राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी भेज दी गई है, ताकि वे इस पर संसद में कार्रवाई शुरू कर सकें।
महाभियोग की प्रक्रिया क्या है?
संविधान और न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, किसी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
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आधार: केवल दो आधार — सिद्ध भ्रष्टाचार (proven misbehaviour) और अक्षमता (incapacity)।
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प्रस्ताव:
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लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों द्वारा
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राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों द्वारा
महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
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जांच समिति:
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प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है जिसमें शामिल होते हैं:
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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश
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किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
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एक विशिष्ट नागरिक (जैसे कानूनविद्)
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जांच के बाद निर्णय: यदि समिति न्यायाधीश को दोषी पाती है, तो संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना ज़रूरी है।
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राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।
जुलाई सत्र में आ सकता है प्रस्ताव
सरकारी सूत्रों के अनुसार, संसद के आगामी मानसून सत्र (जुलाई के तीसरे सप्ताह से संभावित) में यह महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। इसके लिए विपक्षी दलों से सहमति बनाने की कवायद शुरू की जाएगी। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों से फिलहाल संपर्क नहीं किया गया है।
न्यायपालिका की साख पर सवाल
यह मामला केवल एक न्यायाधीश की जांच का नहीं, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और पारदर्शिता से भी जुड़ा हुआ है। अगर संसद में यह प्रस्ताव लाया जाता है, तो यह स्वतंत्र भारत में दुर्लभतम घटनाओं में से एक होगा, जब किसी सिटिंग जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पूरी तरह से आगे बढ़ेगी।