हरियाणा में न्याय क्रांति: नए कानूनों से 140 दिन में बलात्कारी को मौत की सजा, 20 दिन में निपटे अन्य केस
punjabkesari.in Tuesday, Jul 08, 2025 - 04:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क। हरियाणा ने देश में न्याय सुधार की मुहिम में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। नए आपराधिक कानूनों - भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) - के प्रभावी क्रियान्वयन के चलते राज्य में अब बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में भी छह महीने से कम समय में दोषी को सजा मिल रही है। एक ताजा मामले में एक नाबालिग से बलात्कार के दोषी को सिर्फ 140 दिनों के भीतर मौत की सजा सुनाई गई है जो अपने आप में एक असाधारण उपलब्धि है।
इसके अलावा कई अन्य आपराधिक मुकदमे भी 20 दिनों से भी कम समय में पूरे हुए हैं जिससे यह साबित होता है कि हरियाणा त्वरित और कुशल न्याय दिलाने में अग्रणी बन गया है।
95% से अधिक सजा दर, 1,683 जघन्य मामलों की फास्ट-ट्रैक सुनवाई
गृह विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने नई दिल्ली में भारत मंडपम में आयोजित राष्ट्रीय फोरेंसिक प्रदर्शनी के हालिया दौरे के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए इन उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उच्च प्राथमिकता वाले चिन्हित अपराध के मामलों में कई जिलों में सजा दर 95 फीसदी से ज्यादा हो गई है। 'चिन्हित अपराध पहल' के जरिए 1,683 जघन्य मामलों को सख्ती से फास्ट-ट्रैक किया गया है और उच्चतम स्तर पर उनकी निगरानी की गई है। डॉ. मिश्रा ने इस पूरे मॉडल को "हरियाणा की त्वरित, कुशल और पारदर्शी न्याय दिलाने की क्षमता का जीता जागता सबूत" बताया।
आधुनिक प्रौद्योगिकी और गहन प्रशिक्षण से बदली तस्वीर
डॉ. मिश्रा ने बताया कि हरियाणा की इस सफलता के पीछे आधुनिक प्रौद्योगिकी, उन्नत फोरेंसिक बुनियादी ढांचे और नए आपराधिक कानूनों के तहत पुलिसकर्मियों को दिया गया गहन प्रशिक्षण प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कहा कि राज्य ने न केवल राष्ट्रीय मानक स्थापित किए हैं बल्कि देश की न्याय सुधार मुहिम में भी अग्रणी बनकर उभरा है। हरियाणा का यह "समग्र और प्रौद्योगिकी-संचालित मॉडल" बड़े पैमाने पर सराहा जा रहा है।
क्षमता निर्माण को इन सुधारों की रीढ़ बताते हुए, डॉ. मिश्रा ने जानकारी दी कि 54,000 से अधिक पुलिस कर्मियों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सूक्ष्म प्रावधानों में प्रशिक्षित किया गया है। इस प्रशिक्षण में केवल कानूनी समझ ही नहीं, बल्कि पीड़ित-संवेदी जांच, डिजिटल एकीकरण और आधुनिक साक्ष्य प्रबंधन पर भी विशेष जोर दिया गया। राज्य पुलिस बलों के बीच कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देने के मकसद से 37,889 अधिकारियों को आईजीओटी कर्मयोगी प्लेटफॉर्म पर डाला गया है।
डिजिटल पुलिसिंग में लंबी छलांग: ई-समन से ई-साक्ष्य तक
हरियाणा ने ई-समन और ई-साक्ष्य जैसे प्लेटफार्मों के सफल कार्यान्वयन के बल पर डिजिटल पुलिसिंग में भी लंबी छलांग लगाई है। डॉ. मिश्रा ने बताया:
➤ 91.37 फीसदी से अधिक समन इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारी किए जाते हैं।
➤ शत-प्रतिशत तलाशी और जब्ती डिजिटल तरीके से दर्ज की जाती हैं।
➤ 67.5 प्रतिशत गवाहों और शिकायतकर्ताओं के बयान ई-साक्ष्य मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए दर्ज किए जा रहे हैं।
इससे न केवल साक्ष्य संग्रह का मानकीकरण हुआ है, बल्कि जांच में पारदर्शिता भी बढ़ी है। गुरुग्राम, फरीदाबाद और पंचकूला में पॉक्सो अधिनियम के तहत फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों के माध्यम से राज्य के लिंग-संवेदी न्याय के दृष्टिकोण को मजबूती मिली है जिससे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों में तेजी से सुनवाई सुनिश्चित हो रही है।
'निर्दिष्ट स्थानों' पर गवाहों की जांच और उन्नत फोरेंसिक
नए आपराधिक कानूनों के तहत गवाहों की जांच अब पारंपरिक अदालतों से आगे बढ़ चुकी है। गवाहों की जांच अब 'निर्दिष्ट स्थानों' पर की जा सकती है जिनमें सरकारी कार्यालय, बैंक और सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाने वाले अन्य स्थान शामिल हैं। प्रदेश के सभी जिलों में ऑडियो/वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से गवाहों की जांच के लिए 2,117 'निर्दिष्ट स्थान' बनाए गए हैं जिससे पहुंच और सुविधा में काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा सभी जिलों में महिलाओं/कमजोर गवाहों के लिए विशेष रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग रूम/सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
राज्य ने अपने फोरेंसिक बुनियादी ढांचे का भी विस्तार किया है। हर जिले में मोबाइल फोरेंसिक वैन और बड़े जिलों में दो वैन तैनात की गई हैं। इसके अलावा 68.70 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक साइबर फोरेंसिक उपकरण खरीदे गए हैं। राज्य सरकार ने 208 नई फोरेंसिक पदों को मंजूरी दी है जिसमें से 186 पद भरे जा चुके हैं जिससे सघन जांच को और मजबूती मिली है।
ट्रैकिया, मेडलीपर और न्याय श्रुति: प्रौद्योगिकी का कमाल
कार्यप्रणाली में ट्रैकिया (Tracia) और 'डमकस्म्ंच्त् medleapr' (मेडिकल लीगल एग्जामिनेशन एंड पोस्ट मॉर्टम रिपोर्टिंग) जैसे प्लेटफार्मों का सहज एकीकरण किया गया है। इसके माध्यम से पोस्टमार्टम और मेडिकल जाँच रिपोर्ट अब सात दिनों के भीतर डिजिटल रूप से दर्ज की जाती हैं जिससे चार्जशीट दाखिल करने और केस के फैसले में तेजी आई है। क्राइम-ट्रैकिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए हरियाणा नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (नफीस) और चित्रखोजी जैसे बायोमीट्रिक और डिजिटल पहचान उपकरणों का भी बखूबी लाभ उठा रहा है।
करनाल में 'न्याय श्रुति' पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से न्यायिक पहुँच को आधुनिक बनाया गया है। वहाँ पर पाँच जिला न्यायालय अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग क्यूबिकल से सुसज्जित हैं। अब 50 फीसदी से अधिक पुलिसकर्मी और 70 फीसदी आरोपी न्यायिक कार्यवाही में वर्चुअली भाग ले रहे हैं। इससे आरोपियों को न्यायालय लाने-ले जाने से जुड़ी चुनौतियों में काफी हद तक कमी आई है साथ ही समय और सार्वजनिक संसाधनों की भी बचत हुई है।
हरियाणा का यह प्रौद्योगिकी-संचालित न्याय मॉडल निश्चित रूप से अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन सकता है।