महज 400 रुपए में बच सकती है लाखों लोगों की जिंदगी

punjabkesari.in Saturday, Apr 09, 2016 - 02:19 PM (IST)

नई दिल्ली: दुनिया भर में जरुरी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव और कुपोषण के कारण प्रतिवर्ष असमय दम तोडऩे वाली लाखों माताओं और बच्चों को प्रति व्यक्ति महज पांच डॉलर खर्च करके बचाया जा सकता है।  जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के नेतृत्व में हुए नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि गर्भ-निरोधक, गंभीर बीमारियों के इलाज की सुविधा और पोषक तत्वों की पूर्ति पर प्रति व्यक्ति पांच डॉलर (लगभग 400 रुपए) खर्च करके प्रतिवर्ष लाखों माताओं और बच्चों की जान बचाई जा सकती है। 

अध्ययन के मुताबिक निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के 74 देशों में आधारभूत स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करके ज्यादातर मौतों को रोका जा सकता है क्योंकि विश्व में माताओं और बच्चों की मौत के 95 फीसदी मामले ऐसे देशों में होते हैं।  दुनिया भर में पिछले वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 60 लाख बच्चे और गर्भावस्था संबंधी बीमारियों से तीन लाख से अधिक महिलाएं असमय काल के गाल में समा गए। 

ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी विकास लक्ष्य की स्थिति बयान करते हैं जिसके तहत दुनिया के प्रमुख देशों के नेताओं ने सितंबर 2000 में मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने का संकल्प लिया था।  सहस्राब्दी विकास लक्ष्य के तहत वर्ष 1990 की तुलना में 2015 तक शिशु मृत्यु दर में दो तिहाई और मातृ मृत्यु दर में तीन चौथाई की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।  
 
अध्ययन दल का नेतृत्व करने वाले ब्लूमबर्ग स्कूल के अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग के प्रोफेसर रॉबर्ट ब्लैक ने कहा गया है कि जिस आबादी को सबसे ज्यादा जरुरत है, उस तक अगर प्रभावी एवं किफायती समाधान पहुंच सके तो बहुत लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी। उन्होंने कहा हमारे अध्ययन में पता चला है कि माताओं और बच्चों के प्राणों की रक्षा के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना बेहद किफायती है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि अगर लक्ष्य आबादी के 90 फीसदी तक भी पहुंच बनायी जा सके तो 40 लाख तक जानें बचाई जा सकती हैं। 

उनके मुताबिक माता, नवजात और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य पैकेज और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करा कर 15 लाख नवजात, 15 लाख बच्चों और लगभग डेढ लाख माताओं को मरने से बचाया जा सकेगा। इनकी मदद से प्रसव के दौरान मरने वाले लगभग साढे आठ लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इसके अलावा निमोनिया, डायरिया और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों और कुपोषण के कारण होने वाली मौतों पर भी रोक लगायी जा सकती है।

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