सवालों के घेरे में जम्मू कश्मीर का परिसीमन

punjabkesari.in Tuesday, Jan 25, 2022 - 05:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क: आज समूचा राष्‍ट्र भारतीय आजादी का अमृत महेात्‍सव मना रहा है। अगले साल हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। इस क्रम में होने वाले उत्‍सवों को मनाते हुए इस तथ्‍य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि किसी देश के विकास की दृष्टि से 75 साल का वक्‍त यदि बहुत ज्‍यादा नहीं होता, तो कम भी नहीं होता। लिहाजा, इतिहास के इस मोड़ पर यह मूल्‍यांकन करना बड़ा जरूरी है कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक लंबे संघर्ष के बाद हासिल आजादी को लेकर उन्‍हें पूरा करने में हम कहां तक कामयाब हुए हैं। एक नवस्‍वतंत्र राष्‍ट्र को बुलंदियों तक ले जाने के इरादे से हमारे संविधान निर्माताओं ने लोकतांत्रिक राह चुनी और एक ऐसे लचीले संविधान का निर्माण किया, जो बदलते वक्‍त व परिस्थितियों के अनुरूप देश की उम्‍मीदों पर खरा उतर सके। इस क्रम में ऐसी स्‍वतंत्र लोकतांत्रिक संस्‍थाओं का निर्माण किया गया, जो निष्‍पक्ष रूप से लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को मजबूती प्रदान करती रहें। इसी क्रम में देश में निष्‍पक्ष चुनावों को संपन्‍न कराने के लिए चुनाव आयोग का गठन किया गया, तो जनसंख्‍या में होने वाले परिवर्तन के मद्देनजर विभिन्‍न लोकसभा व विधानसभाओं की सीमाओं के निर्धारण के लिए विभिन्‍न परिसीमन आयोगों के गठन का प्रावधान भी किया गया। संविधान के अनुच्छेद-82 के मुताबिक सरकार हर दशक (10 वर्ष) के बाद परिसीमन आयोग का गठन कर
सकती है। 

इसके तहत जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है। अब तक भारत में 1952, 1963, 1973 व 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया जा चुका है। यहां यह चर्चा भी आवश्‍यक है कि पिछले छह-सात वर्षों में देश की तमाम निष्‍पक्ष एवं स्‍वतंत्र लोकतांत्रिक संस्‍थाओं की स्‍वतंत्रता को राजनीतिक स्‍वार्थ के मदृदेनजर जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। केन्‍द्र की सत्‍ता पर काबिज हुकूमत अपनी मनमर्जी चलाने के लिए हर संस्‍था के काम में टांग अड़ा रही है। जाहिर है कि परिसीमन आयोग भी इसका अपवाद नहीं हो सकता। जम्‍मू- कश्‍मीर के परिसीमन के लिए मार्च 2020 में जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्‍त) की अध्‍यक्षता में गठित आयोग के कार्यकलापों से भी यही प्रतीत हो रहा है कि सरकारी दबाव में यह आयोग भी कानूनी व संवैधानिक नियमों के दायरे से बाहर जाकर काम कर रहा है। संवैधानिक प्रावधानों में यह स्‍पष्‍ट किया गया है कि देश के किसी भी राज्‍य में लोकसभा व विधानसभा की सीटों की सीमाओं के निर्धारण का यदि कोई एकमात्र आधार हो सकता है, तो वह जनसंख्‍या ही है। जनसंख्‍या के आधार पर ही सीटों की संख्‍या तय होगी। लेकिन जम्‍मू-कश्‍मीर के मामले में सीटों को बढ़ाने के लिए जिस किस्‍म की दलीलें खुद अयोग की ओर से दी गई हैं, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। जम्मू और कश्मीर में पिछला परिसीमन आयोग जस्टिस जी. डी. शर्मा (सेवानिवृत्‍त) के नेतृत्व में बनाया गया था। आयोग ने 1981 की जनगणना के अनुसार सीटों का निर्धारण किया। 1981 की जनगणना के अनुसार जम्मू और कश्मीर की जनसंख्या 59,87,389 जिसमें लद्याख की जनसंख्या 1,32,372 भी सम्मलित है। 1995 में जिलों की जनसंख्या के अनुसार विधानसभा सीटों का निर्धारण नीचे चार्ट के अनुसार किया गया।


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परिसीमन आयोग 1995 की रिपोर्ट के अनुसार कुल 111 सीटों का निर्धारण किया गया जिसमें 87 सीटें जम्मू कश्मीर क्षेत्र के लिए बनाई गई। जिसमें 37 सीटें जम्मू क्षेत्र, 46 कश्मीर क्षेत्र व 4 सीटे लद्याख क्षेत्र की बनाई गई। पाक द्वारा गैर कानूनी कबजे वाले कश्मीर क्षेत्र के लिए 24 सीटें बनाई गई। जस्टिस जी. डी. शर्मा आयोग के सम्मुख भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी संगठनो ने क्षेत्रफल के हिसाब से सीटों का निर्धारण किया जाने की मांग भी रखी। उन्होंने बताया कि जम्मू क्षेत्र में 26000 वर्ग किमी और कश्मीर क्षेत्र में  15120 वर्ग किमी और बाकी 57000 वर्ग किमी लद्याख में आता है। आयोग ने जनसंख्या के अनुसार सीटों का बंटवारा किया, जो लागू किया गया। अभी तक जम्मू कश्मीर में 83 विधानसभा सीटें ही थी। जम्मू और कश्मीर की विधानसभा व लोकसभा परिसीमन करने के लिए भारत सरकार ने 6 मार्च, 2020 को श्रीमती रंजना प्रकाश देसाई जी की अध्यक्षता में नया परिसीमन आयोग बनाया। जिसका काम 2011 के जनगणना जनसंख्या के अनुसार सीटों का विभाजन करना है। 2011 के जनगणना के जम्मू और कश्मीर जिलों की जनसंख्या और उनमें कितनी विधानसभा बन सकती है व निम्नलिखित है।


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उपरोक्त चार्ट में देखे एक विधानसभा की औसतन जनसंख्या 1,36,300 है। सभी विधानसभा की जनसंख्या 1,36,300 या +/- 10% होनी चाहिए, जो कि अधिक से अधिक 1,49,930 व कम से कम 1,22,670 होनी चाहिए। 20/12/2021 को एक प्रेस नोट में भारत निर्वाचन आयोग की तरफ से निकाला गया जिसमें 20/12/2021 की मीटिंग का हवाला दिया गया कि परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 9(1) (अ) को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 60(2)(इ) के साथ पढ़ा जाता है, जो इस प्रकार है। सभी निर्वाचन-क्षेत्र यथासाध्य भौगोलिक रूप में संह्रत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमन करते समय प्राकृतिक विशेषताओं, प्रशासनिक इकाईयों की विद्यामान सीमाओं, संचार सुविधाओं और सार्वजानिक सुविधा को ध्यान में रखना होगा। जिसमें जिलों की संख्या 12 से 20 व तहसीलों की संख्या 52 से 207 करने का जिक्र किया गया है। उन्होंने जनसंख्या के घनत्व का हवाला दिया है।  जिसके अनुसार किश्तवार जिले में 29 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर व श्रीनगर जिले में 3436 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर बताया गया है।


इसी नोट में जहां कुछ सुविधाओं की कमी का जिक्र किया गया है, वहीं 20 जिलों को तीन केटेगरी ए, बी और सी में बांटने का जिक्र भी है।  जिसमें मार्जिन +/- 10% of औसत जनसंख्‍या का जिक्र भी किया है। जहां जनसंख्‍या के हिसाब से एसटी व एससी सीटें बनाने का जिक्र इस नोट में किया गया है, वहीं कुछ जिलों में कुछ सीटें बढ़ाने का जिक्र है। पेपर-1 में जिलों के अनुसार सीटों का आवंटन किया गया है। प्रेस नोट में परिसीमन कानून 2002 तथा धारा 60(2)(बी) जो कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 का है, का भी हवाला दिया गया है। इन दोनों अधिनियमों की यह धारा 1952-9 (ए), 1962-9 (ए), 1973-9 (ए), के परिसीमन अधिनियम में भी इस धारा को इसी प्रकार रखा गया है। सभी अधिनियमों में यह धारा शब्द दर शब्द एक ही है। आज तक जब भी भारत सरकार ने लोकसभा या विधानसभा के लिए कभी भी परिसीमन किया गया है उसे जनगणना के जो आंकड़े उपलब्ध है उनके अनुसार किया गया है। सभी परिसीमनों का आधार केवल और केवल जनसंख्या को रखा गया है। प्रदेश की औसत जनसंख्या के +/- 10% ही आधार रहा है।  इसके अलावा कोई और आधार अगर परिसीमन में लाया जाता है तो वह गैर कानूनी होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 लोकसभा के गठन के बारे में है, उसमें भी लोकसभा के क्षेत्रों को प्रदेशों में बांटन व बनाने का आधार केवल जनसंख्या है। 81 (2) (ख) के अनुसार - प्रत्येक रज्य को प्रादेशिक निर्वान क्षेत्रां में ऐसी रीति से विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आवंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हों।

 भारत निर्वाचन आयोग के प्रेस नोट में जम्मू काश्मीर के किश्तवार जिले में 29 व्‍यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बताया गया है, जो कि गलत है। किश्तवार जिले का क्षेत्रफल 1644 वर्ग किलोमीटर है और उसकी जनसंख्या 2,30,696 है, जो 140 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बनता है ना कि 29।  श्रीनगर जिले की कुल जनसंख्या 12,36,829 है, जो 625 व्‍यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बनता है ना कि 3436, जो भारत निर्वाचन आयोग ने बताया है। जम्मू और काश्मीर में 1995 में किये गए परिसीमन के समय भी भारतीय जनता पार्टी ने प्रति वर्ग किमी क्षेत्र के प्रश्न जस्टिस जी.डी. शर्मा आयोग सामने रखे थे, जिसे उन्होंने नही माना। भारत में इस प्रकार के बहुत से जिलें है जहां प्रति वर्ग किमी में रहने वाले लोगों की जनसंख्या जम्मू कश्मीर से बहुत कम है जिनकी सूची नीचे दी गई है।

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भारत सरकार के परिसीमन आयोगों व प्रदेश के परिसीमन आयोगों ने नही माना है। मुझे लगता है कि इस परिसीमन पर कोई बाहरी दवाब है जिसे आयोग को नही मानना चाहिए। इससे आयोग की विश्वसनीयता समाप्त हो जाऐगी। जम्मू क्षेत्र में तीन विधानसभा क्षेत्र बढ़ाने का प्रस्ताव आयोग ने रखा है। किश्तवाड़ जिले में 3 विधानसभा क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव है। जनसंख्या 230696 है अगर यहां तीन विधानसभा क्षेत्र बनाये जाते है तो एक विधानसभा की जनसंख्या 76898 रह जायेगी, जो कि औसत जनसंख्या 1,36,300 से 59482 (43.64%) कम रह जायेगी। इसी प्रकार रियासी जिले की जनसंख्या 314667 है। अगर यहां भी 3 विधानसभा क्षेत्र बनाये जाते है तो वहां भी एक विधानसभा में जनसंख्या 104889 रह जायेगी, जो कि औसत जनसंख्या में 31411 (23.04%) कम होगी।  कठुआ जिले की कुल जनसंख्या 616435 है। अगर वहां 6 विधानसभा क्षेत्र बनते है तो एक विधानसभा में 102739 जनसंख्या रह जायेगी जो कि औसत जनसंख्या में 33561 (24.62%)  कम होगी। कश्मीर क्षेत्र में जिन जिलों में 4 विधानसभा क्षेत्र कम करने का प्रस्ताव है उनमें कुपवाड़ा जिले की जनसंख्या 870354 है। अगर वहां 6 विधानसभा सीटों को कम करने का प्रस्ताव है। अगर वहां 6 विधानसभा सीटों को कम करने का प्रस्ताव है। 

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अगर वहां 5 सीटें बनाई गई तो एक विधानसभा की जनसंख्या 170070 जो कि औसत जनसंख्या 136300 से 37770 (27.71%) अधिक है। इसी प्रकार श्रीनगर निले की जनसंख्या 1236829 है, वहां आयोग 9 सीटों के स्थान पर 8 सीटें बनाना चाहता है। तब एक विधानसभा में 154603 जनसंख्या आयेगी, तब औसत जनसंख्या से 17303 (12.69%) अधिक होगी। बड़गाम जिले की जनसंख्या 753745 है। इस जिले में आयोग 6 सीटों के स्थान पर 5 सीटें बनाना चाहता है, वहां एक विधानसभा की जनसंख्या 150749 होगी। जो कि औसत जनसंख्या से 14449 (10.60%) अधिक होगी। इसी प्रकार अनंतनाग जिले की जनसंख्या 1078692 है वहां भी आयोग 8 के स्थान पर 7 सीटें करना चाहता है। यहां एक विधानसभा सीट में 154098 जनसंख्या होगी, जो कि औसत जनसंख्या से 17798 (13.05%) अधिक होगी। जम्मू क्षेत्र में 76898 पर जबकि कश्मीर क्षेत्र में 174070 जनसंख्या औसत पर विधानसभा बनाने में 97172 की जनसंख्या का अंतर है, जिसे किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता । यह शायद भारत में किसी भी आयोग द्वारा परिसीमन में सबसे बड़ा अंतर होगा, जो कि गैर कानूनी, असंगत, भेदभावपूर्ण कार्य होगा।



श्री चतर सिंह
पूर्व चेयरमैन, ओबीसी आयोग,
दिल्ली सरकार
98 11150242


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Content Writer

Anil dev

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