भांग का रंग जमा हो चकाचक, पढ़ लो ध्यान लगा

punjabkesari.in Thursday, Mar 21, 2019 - 12:04 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): अब होली है तो भांग का जिक्र भी तो होगा ही। देश में शिवरात्रि और होली पर भांग पीने का रिवेआज है। अब यह कहना भी बेमानी होगा की रिवाज जायज़ नहीं है ,क्योंकि रिवाज़/परम्परा के पीछे कोई न कोई तर्क जरूर होता है। अपने पढ़े लिखे बंधुओं का जो तर्क हमारी समझ में घुसा हुआ है वो यह है कि भांग पीने से हमारे पेट की सफाई हो जाती है और हमारा शरीर अगले सीजन के लिए रेडी हो जाता है। इसलिए शिवरात्रि और होली पर एक माह के अंतराल में दो डोज भांग का प्रावधान किया गया। लेकिन यह प्रवृति न बन जाये इसलिए इसे धार्मिक रैपर में लपेट कर परोसा गया। अपुन को यह तर्क जमता भी है। हालांकि स्पष्ट कर दें की इसमें भांग चिलम /सिगरेट आदि से पीना शामिल नहीं है। पारम्परिक सेवन ठंडाई /होता/ या ज्यादा से ज्यादा पकौड़े के रूप में प्रचलित है।
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क्या कहती है साईंस 
अब वास्तविक विज्ञान की भी सुन लेते हैं। हमारे शरीर में एक डोपामीन नामक हार्मोन रहता है। इसे  ख़ुशी वाला हार्मोन भी कहते हैं यानि हैप्पी हार्मोन। इसी का स्तर तय करता है की हम कितने खुश हैं। भांग हमारे शरीर के अंदर मौजूद इसी डोपामीन हार्मोन का स्तर बढ़ा देती है। भांग में टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल यानी टीएचसी मौजूद होता है। यही टीएचसी डोपामीन को बढ़ाता है। हालांकि टीएचसी की मात्रा 30 से अधिक होने पर  इसका उल्टा असर भी होता है। अत्यधिक मात्रा में सेवन से स्मृति भ्रंश और उच्च रक्तचाप की शिकायत हो जाती है। फेफड़े भी चोक हो सकते हैं।   

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लेडी भांग ज्यादा खतरनाक 
भांग के बारे में एक दिलचस्प बात और भी है। लेडी भांग ज्यादा खतरनाक होती है। जिसे हम गांजा कहते हैं वो इसी लेडी भांग से बनता है। नर प्रजाति के भांग के पौधे में टीएचसी कम रहता है ,जबकि मादा भांग में टीएचसी ज्यादा होता है। देश में गांजे पर प्रतिबंध है जबकि भांग का इस्तेमाल खुले तौर पर होता है। उत्तराखंड में तो राज्य सरकार ने भांग की खेती के लिए भी प्रयास शुरू कर दिए हैं। जबकि हिमाचल में भी भांग की खेती को मंजूरी की मांग उठ रही है।
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vasudha

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