IAS Success Story: 16 फ्रैक्चर, 8 सर्जरी, नहीं टूटा हौसला, झुग्गी से निकलकर IAS बनीं उम्मुल खैर
punjabkesari.in Tuesday, Aug 08, 2023 - 06:40 PM (IST)

नेशनल डैस्क : अगर इंसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल भी उसके कदम चूमती है। ऐसा ही कुछ किया है राजस्थान के पाली में जन्मी उम्मुल खैर ने। उम्मुल खैर की जिंदगी शुरू से ही परेशानियों से भरी रही। नाजुक हड्डी विकार के साथ जन्मी उम्मुल किशोरावस्था तक बीमार रहीं। उन्हें 16 से ज्यादा फ्रैक्चर और 8 सर्जरी का सामना करना पड़ा है। बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। परिवार झुग्गी में रहता था, इसके बावजूद अपनी मेहनत और लगन से उनका आईएएस बनने का सपना पूरा हुआ।
2017 में पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ऑल इंडिया में 420वीं रैंक हासिल करने वाली उम्मुल का परिवार राजस्थान से राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन चला गया था, जहां वे झुग्गियों में रहते थे। उसके पिता पास ही सड़क पर मूंगफली बेचते थे। एक दिन अचानक ये झोपड़ियां भी ढहा दी गईं। परिवार सड़क पर आ गया। उम्मुल उस वक्त सातवीं क्लास में थीं। पिता के साथ फुटपाथ पर मूंगफली बेचना और वहीं सोना उनकी दिनचर्या बन गई। ये दुख भी कम नहीं थे, एक दिन माँ भी चल बसीं और पिता ने दूसरी शादी कर ली। घर में सौतेली मां के ताने और पढ़ाई छोड़ने का दबाव रोजाना झगड़े का कारण बनने लगा। सौतेली माँ ने कहा कि उसे पढ़ाई छोड़कर घर का काम करना चाहिए और सिलाई करके कुछ पैसे कमाने चाहिए।
परिवार खिलाफ था, छोड़ना पड़ा घर
बचपन से ही पढ़ाई में होशियार रहीं उम्मुल ने आठवीं क्लास में टॉप किया था। जिसके चलते उन्हें चैरिटेबल ट्रस्ट से स्कॉलरशिप मिली और एक प्राइवेट स्कूल में दाखिला मिल गया। लेकिन परिवार इसके खिलाफ था। उन्होंने कहा कि अगर वह आगे पढ़ाई करेगी तो वे उससे रिश्ता तोड़ देंगे। उम्मुल के लिए ये जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। आखिरकार उम्मुल को अपना घर छोड़ना पड़ा और वह अकेले त्रिलोकपुरी में एक किराए की झोपड़ी में रहने में कामयाब रहीं। उम्मुल ने नौवीं कक्षा से छात्रों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि कमरे का किराया दिया जा सके। उम्मुल ने आसपास के दिहाड़ी मजदूरों के बच्चों को प्रतिदिन दस घंटे ट्यूशन पढ़ाकर आईएएस बनने के अपने सपने को जीवित रखा।
उम्मुल के लिए ये कभी आसान नहीं था। किसी भी परिस्थिति में अकेली लड़की का अकेले रहना सुरक्षित नहीं था। लेकिन विकल्प के अभाव में उम्मुल को यहां भी संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान त्रिलोकपुरी में रहने वाली शहनाज बेगम ने उनकी मदद की। वह बताती हैं, “उम्मुल यहां तीन साल तक रहीं। बहादुर लड़की है। वह अकेली रहती थी लेकिन मेरी बेटी उसके साथ सोती थी क्योंकि एक लड़की के लिए अकेले रहना सुरक्षित नहीं है। बदले में उम्मुल ने उसे मुफ्त ट्यूशन दी।”
2012 में हादसे का शिकार हुईं, पर हार नहीं मानी
उम्मुल ने 10वीं कक्षा में 91 प्रतिशत और इंटरमीडिएट में 90 प्रतिशत अंक हासिल किए। 2011 में, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। फिर उन्होंने स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रवेश किया। जेएनयू से एमए किया। जेएनयू में प्रवेश उम्मुल के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। इसी बीच उनके साथ एक हादसा हुआ और वह 2012 में एक हादसे का शिकार हो गईं। पहले से ही नाजुक हड्डी विकार से पीड़ित उम्मुल को इस हादसे ने एक साल के लिए व्हील चेयर पर डाल दिया, लेकिन उम्मुल ने हार नहीं मानी और 2013 में जेआरएफ क्रैक कर एमफिल में एडमिशन ले लिया। इस दौरान उन्हें 25000 रुपए प्रति माह मिलने लगे, जिसके कारण उन्हें दोबारा ट्यूशन पढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी। इसी बीच 2014 में उम्मुल को जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चुना गया, जो उम्मुल के लिए एक बड़ी सफलता थी। 18 साल के इतिहास में वह इस कार्यक्रम के लिए चुनी गई चौथी भारतीय थीं। इसके बाद वह जापान चली गईं। वापस आने के बाद उन्होंने एक साथ एमफिल किया और जेआरएफ क्वालिफाई किया। जैसे ही उन्होंने एमफिल पूरी की, उन्होंने पीएचडी में प्रवेश ले लिया। 2016 में, उम्मुल ने आईएएस बनने के अपने बचपन के सपने के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले ही प्रयास में 120वीं रैंक हासिल की।
नाजुक हड्डी विकार से पीड़ित उम्मुल ने कभी हार नहीं मानी। यह एक ऐसी बीमारी है जो हड्डियों को कमजोर बना देती है। इस विकार में पीड़ित व्यक्ति अधिक दबाव सहन नहीं कर पाता है। जरा सा दबाव पड़ने पर हड्डियां चटकने लगती हैं और टूट जाती हैं। यही वजह है कि उम्मुल को 16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी का सामना करना पड़ा है। आईएएस बनने के बाद उम्मुल अब अपना जीवन दिव्यांग लड़कियों के उत्थान के लिए समर्पित करना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि विकलांग लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने की अनुमति दी जाए। उम्मुल का कहना है कि मंजिल पाने के लिए जुनून होना चाहिए। अगर आप कोई सपना देखते हैं और उसे पूरा करने के लिए ईमानदारी से कोशिश करते हैं तो आपको उसकी प्रेरणा भी मिलती है। सिविल सेवाओं में मुस्लिम प्रतिनिधित्व के बारे में वह कहती हैं कि मेरा मानना है कि पारंपरिक पेशे महंगे होते जा रहे हैं और आज नौकरी पाना आसान नहीं है। लेकिन उच्च सरकारी पद ईमानदार लोगों का इंतजार कर रहे हैं। इसके लिए रणनीति और तमाम व्यावहारिक उपायों पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि ''हिंदी माध्यम से होने के कारण इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित कार्यशाला उनके लिए बहुत उपयोगी साबित हुई। मैंने अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम से बहुत कुछ सीखा। जो मेरी सफलता में बहुत मददगार रहा है।”