आॅस्ट्रेलिया में चुनाव : ठोस मुद्दे तय करेंगे भविष्य

punjabkesari.in Saturday, Jul 02, 2016 - 02:00 PM (IST)

आस्ट्रेलिया में आज बड़ा उत्साहपूर्ण माहौल है। वहां संसद के लिए चुनाव शुरू हो चुका है। प्रमुख उम्मीदवारों के भाषणों में की गई घोषणाओं के बाद वोटरों को तय करना है कि वे किसे देश की सत्ता सोंपना चाहेंगे। इस बार प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल के गठबंधन तथा विपक्षी लेबर पार्टी के बीच कड़ा मुकाबला है। मजेदार बात यह है कि पिछली बार के चुनाव भी शनिवार को ही हुए थे। विपक्षी लेबर पार्टी ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बड़ा मुद्दा बनाया है। यह भी कम दिलचस्प नहीं कि ऑस्ट्रेलिया में 18 साल से अधिक आयु के हर नागरिक के लिए वोट देना अनिवार्य है। बिना उचित कारण के वोट न देने वालों पर दंड लगाने का प्रावधान है। 

लेबर पार्टी से पहले ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी मामलों के मंत्री पीटर डटन प्रचार के दौरान शरणार्थियों और सीमा सुरक्षा का मुद्दा उठा चुके है। उनके अनुसार शरणार्थियों के पुनर्वास से देश में सामाजिक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा। बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ सकती है। उनकी सरकार ने सीमा सुरक्षा को हमेशा से गंभीरता से लिया है। विपक्ष भी इस मुद्दे को भुनाना चाहता है।लेबर पार्टी घोषणा कर चुकी है कि अगर उनकी पार्टी जीत गई तो शरणार्थी कोटे को दोगुना कर 27 हजार तक कर दिया जाएगा। देखा जाए तो सीमा सुरक्षा और प्रवासियों का मुद्दा ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। सरकार ने पिछले वर्ष 13 हजार 750 के अपने वार्षिक कोटे में से 12 हजार सीरियाई शरणार्थियों को शरण देने का वचन दिया था।  

भारतीय समुदाय की अगली सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं ? उससे भी मुख्य मुद्दों पर बातचीत की गई। उनके अनुसार सरकार की ओर से मिलने वाली छूट, नौकरियों और अप्रवासियों पर भी ध्यान देना चाहिए। अप्रवासियों ने आॅस्ट्रेलिया को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि इसके विकास में योगदान ही दिया है। आॅस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोग स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और समुदाय की सुरक्षा पर जोर देते हैं। इसमें कुछ वर्तमान सरकार को विफल मानते हैं और हटाने की बात करते हैं। 

कई वोटरों का मानना है कि अप्रवासियों की संख्या के बढ़ने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। नए शहरों में यातायात के साधनों पर भी ध्यान दिया जाए, ताकि कहीं जाना हो तो असुविधा का सामना न करना पड़े। कुछ महिलाएं बच्चों के पालन पोषण पर होने वाले में खर्च में छूट की बात उठाती हैं। वे कहती हैं कि कोई भी पार्टी जीते, लेकिन इस छूट से उनकी जेब का 50 प्रतिशत खर्च कम हो जाता है, इस पर ध्यान दिया जाए। खास बात यह है कि लेबर पार्टी और गठबंधन ने इस बार बच्चों की देखभाल के सेक्टर के लिए 3 खरब के पैकेज की बात कही है।

मेलबोर्न के श्रीराम अय्यर लेखक और कलाकार हैं। वे कहते हैं कि कलाकारों को विकास के लिए अतिरिक्त अनुदान मिलना चाहिए। स्टेज पर पिछले 15 सालों से काम कर रहे श्रीराम बताते हैं कि कुछ ही अनुदान मिलते हैं वह भी बड़ी मुश्किल से। उन्हें लगता कि ज्यादातर भारतीय मूल के इन कलाकारों को ऐसे अनुदान के बारे में पता ही नहीं है, न ईमानदारी से इसके लिए उनका आकलन किया जाता है। सबसे कमी यह है कि अनुदान के लिए आवेदन कैसे किया जाना है इसकी प्रक्रिया के बारे में बताया ही नहीं जाता।

युवा वोटरों का मानना है कि सरकार को अ्प्रवासी युवा वर्ग को विभिन्न प्रशिक्षण देने चाहिए। आॅस्ट्रेलिया की संस्कृति को उन्हें अपनाना चाहिए, ताकि जोशीले लोगों वाले समाज का निर्माण किया जा सके। खेलों में शामिल होने से बहुसंस्कृति वाले इन युवाओं को एक साथ होने का मौका मिलेगा। कुछ युवा वोटर शिक्षा अनुदान की बात करते हैं। उनका कहना है कि बहुसंस्कृति वाले खेल क्लब सरकार के एजेंडे का हिस्सा बनने चाहिए।

इनके अतिरिक्त अन्य मुद्दे हैं नौकरियां, स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर, घरों की कीमतें, किराये की दरें, जलवायु परिवर्तन, नवपरिवर्तन और स्टार्ट अप, जुर्माने की दरें, न्यूनतम वेतन, घरेलू हिंसा, अभिभावकों के लिए लंबी अवधि वाला वीजा आदि।  

गौरतलब है कि 2010 के चुनाव में जनसंख्या भी अहम मुद्दा थी। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड बढ़ती जनसंख्या को बेहतर मानते थे, लेकिन पार्टी से उनका पत्ता साफ़ करने वाली जूलिया गिलार्ड जनसंख्या नियंत्रण की बात करती रहीं। यानी जनसंख्या उतनी ही रहे जिससे पर्यावरण, मूलभूत सुविधाओं और संसाधनों के अनुपात में ऑस्ट्रेलिया की विकसित जीवन शैली बनी रहे। देश में आप्रवासियों की संख्या मुद्दा बनता ही रहा है। इसके बावजूद ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ़ स्टेटेस्टिक्स के अनुसार जनसंख्या वृद्धि में आप्रवासियों का योगदान रहा है। वरिष्ठ पर्यावरणविद मार्क ओकॉनर मानते हैं कि जनसंख्या को वह एक संसाधन के रूप में देखते हैं। जितने ज़्यादा लोग, उतना ही ज़्यादा सफल घरेलू उत्पाद होगा। 

इस बारे में ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों के अध्यक्ष और सामाजिक आलोचक प्रोफ़ेसर ग्लेन विदर्स का मानना है कि बढ़ती जनसंख्या के फायदे भी हैं और नुकसान भी। वह जनसंख्या, आर्थिक प्रगति, सामाजिक विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के बीच संतुलन पर जोर देते हैं। वह भी मानते हैं कि  आप्रवासियों के आने से ऑस्ट्रेलिया को आर्थिक स्तर पर फायदा हुआ है। कुल मिलाकर इराक, सीरिया और अन्य देशों से आने वाले अप्रवासियों का मुद्दा इस बार भी चुनाव में अपनी जगह बनाए हुए है।  


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