Haryana Result : इन 5 गलतियों के चलते कांग्रेस को मिली हार, एग्रेसिव प्रचार भी नहीं आया काम!

punjabkesari.in Tuesday, Oct 08, 2024 - 04:48 PM (IST)

नैशनल डैस्क : हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सभी को चौंका दिया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक बार फिर राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में है, जबकि कांग्रेस, जो पिछले 10 सालों से सत्ता से बाहर थी, फिर से सत्ता के करीब पहुंचते-पहुंचते रह गई। अधिकांश एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिखाई गई थी, लेकिन साइलेंट वोटरों के प्रभाव ने पार्टी को धराशायी कर दिया।

कांग्रेस का एग्रेसिव प्रचार, फिर भी हार
हरियाणा में कांग्रेस ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया, जिसमें जवान, पहलवान, किसान और संविधान जैसे मुद्दों पर भाजपा को घेरा गया। इस दौरान भाजपा का प्रचार अधिकतर डिफेंसिव रहा, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान से आरक्षण के प्रावधान को खत्म न करने की गारंटी दी। इसके बावजूद, कांग्रेस पार्टी हार गई।

कांग्रेस की हार के 5 बड़े कारण-

1. हुड्डा का एकाधिकार: हरियाणा कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा का एकाधिकार बढ़ता गया। पिछले डेढ़-दो सालों से सभी महत्वपूर्ण निर्णय हुड्डा के नेतृत्व में लिए जा रहे थे, जैसे कि प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की नियुक्ति और लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण। इस बार विधानसभा चुनाव में 90 में से 70 से अधिक सीटें हुड्डा के कहने पर तय की गईं, जिससे यह संदेश गया कि जाट समुदाय का प्रभाव बढ़ रहा है।

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2. दिग्गज नेताओं की नाराजगी:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला टिकट बंटवारे से संतुष्ट नहीं थे। दोनों नेताओं ने अपने समर्थकों के लिए प्रचार किया, लेकिन बाकी सीटों पर चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं रहे। कुमारी सैलजा ने लंबे समय तक चुनाव प्रचार से दूरी बनाई, फिर भी उनकी और हुड्डा के बीच बातचीत में खटास बनी रही। आरक्षित सीटों पर सैलजा का प्रभाव हो सकता था, लेकिन वे चुनाव प्रचार में अलग-थलग पड़ गईं।

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3. सुनील कनुगोलू की रिपोर्ट:
कांग्रेस के रणनीतिकार सुनील कोणुगोलू ने हरियाणा में एक आंतरिक सर्वे करवाया, जिसके आधार पर टिकट वितरण और प्रचार की रणनीति बनाई गई। हालांकि, यह रिपोर्ट कांग्रेस की जीत में सहायक नहीं बनी। कोणुगोलू का स्ट्राइक रेट कर्नाटक में अच्छा रहा, लेकिन हरियाणा में वह अपनी रणनीति को सफल नहीं बना सके।

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4. छोटी पार्टियों की अनदेखी:
कांग्रेस ने स्थानीय और छोटे दलों की अनदेखी की, जिसका खामियाजा चुनाव परिणामों में देखने को मिला। करीब 11% वोट अन्य पार्टियों को मिले, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी कई सीटों पर अच्छे वोट हासिल किए। चुनाव से पहले AAP ने कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के दबाव में कांग्रेस ने गठबंधन नहीं किया।

5. पार्टी का संगठन कमजोर: कांग्रेस का संगठन जमीनी स्तर पर बहुत कमजोर साबित हुआ। पिछले कई वर्षों में जिलों में पार्टी के जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष नहीं बनाए गए। जब कुमारी सैलजा अध्यक्ष थीं, तब हुड्डा गुट ने नियुक्तियों में रुकावट डाली। वहीं, उदयभान के अध्यक्ष बनने पर सैलजा-सुरजेवाला गुट ने रोड़े अटकाए। इस स्थिति में भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय रहे, जबकि कांग्रेस ने ओवर कॉन्फिडेंस में जमीनी कमजोरी को नजरअंदाज किया।


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News Editor

Rahul Singh

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