बड़ी गहरी हैं बंदूक संस्कृति की जड़ें

punjabkesari.in Wednesday, Jun 15, 2016 - 01:11 PM (IST)

आॅरलैंडो नाइट क्लब की घटना के बाद अमेरिका में बंदूक संस्कृति पर एक बार फिर बहस तेज़ हो गई है। राष्ट्रपति बराक ओबामा की कोशिशों के बावजूद अमेरिका में इसे नियंत्रित करने के लिए क़ानूनों में बदलाव नहीं हो पा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार अमरीका की एक तिहाई जनसंख्या के पास मौजूद 30 करोड़ बंदूकों की वजह से वहां प्रति व्यक्ति बंदूक के मामले में किसी भी यह देश में सबसे आगे है। फ्लोरिडा के अलावा कैलिफोर्निया, ओरेगान, कनेक्टीकट के न्यूटाउन आदि जगहों पर गोलीबारी की कई घटनाएं हो चुकी हैं। 

एक बड़ा वर्ग बंदूक संस्कृति से संबंधित कानून में परिवर्तन चाहता है। माना जाता है कि देश में एक मजबूत बंदूक लॉबी है। उसने राष्ट्रपति बराक ओबामा की हर उस कोशिश पर पानी फेरा है जिसका संबंध हथियारों से जुड़े कानूनों को सख्त बनाने से था। देश में बढ़ता कट्टरता का खतरा कानून लागू करने वाली एजेंसियों और खुफिया विभाग के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। सीनेटरों ने माना है कि अमरीका इस्लामी आतंकवादियों के साथ युद्धरत देश हैं। उनकी दमनात्मक, घृणास्पद विचारधारा है। यह देश और विदेश में हमारे लोगों के लिए खतरा है।  

सवाल उठता है कि क्या बंदूक से होने वाले खून खराबे को रोकने के लिए अमरीका कभी कुछ करेगा? क्या सरकार ऐसी मशीनों को नियंत्रित करना चाहेगी जो कुछ अच्छे काम करती है, लेकिन उससे ज्यादा अवैध कारनामों को अंजाम देती है। सभी को आॅटोमैटिक गन्स लेने की छूट क्यों है ? कानून व्यवस्था के लिए पुलिस है ही। लोगों ने इन बंदूकों को क्या स्टेटस सिंबल बना लिया है ? इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि अमरीका के बंदूक कानून में कोई बहुत बड़ा बदलाव होगा। यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने जो आंकड़े जारी किए हैं उनके अनुसार वहां पिछले पांच साल में बंदूक से औसतन हर साल 33 हजार लोग मारे गए थे। लोग मर रहे हैं और देश को चलाने वाले खामोश हैं।

कुछ वर्ष पहले कराए गए एक सर्वे के अनुसार अमेरिका का एक बहुत बड़ा वर्ग बंदूक संस्कृति से संबंधित क़ानून में बदलाव चाहता है। इसमें शामिल लगभग 80 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि ऐसे क़ानून की ज़रूरत है कि मानसिक रूप से बीमार लोग बंदूक न ख़रीद पाएं। राष्ट्रीय बंदूक बिक्री पर एक डाटाबेस बनाए जाने का 70 फीसदी लोगों ने समर्थन किया था।

एक बार अविश्वसनीय घटना हुई। साक्षात्कार के प्रसारण के दौरान दो पत्रकारों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद देश की बंदूक से जुड़ी हिंसा पर बहस फिर से गर्म हो गई। व्हाइट हाउस ने कांग्रेस से बंदूक नियंत्रण कानूनों को पारित करने की एक बार फिर से अपील की। उस समय व्हाइट हाउस से जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि सहज बुद्धि की बातें सिर्फ कांग्रेस कर सकती है। वह देश में बंदूक हिंसा को कम कर सकती हैं। कांग्रेस यह सभी कदम कानून का पालन करने वाले अमेरिकियों के संवैधानिक अधिकारों में कोई दखल डाले बगैर उठा सकती है। यदि ऐसा है तो कांग्रेस को रोका किसने है। उसे यह कदम बहुत पहले उठा लेना चाहिए था।

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा कई बार बयान जारी करके बंदूक हिंसा की भर्त्सना और बंदूक की बिक्री पर रोक लगाने का आह्वान कर चुके हैं। हालांकि, वह अमेरिका के एकमात्र राष्ट्रपति नहीं हैं जिन्होंने बंदूक हिंसा को रोकने का प्रयास किया है। पिछले दशकों में बंदूक संस्कृति को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रपतियों ने कई कदम उठाए, लेकिन ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सका है। ओबामा स्वीकार कर चुके हैं कि बंदूक कानूनों में सुधार की असफलता उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल की सबसे बड़ी निराशाओं में से एक है। चुनाव मैदान में डटे डोनाल्ड ट्रंप बंदूक संस्कृति के समर्थक हैं और हिलेरी क्लिंटन विरोधी।

पता चला है कि अमरीकी कांग्रेस के सदस्यों में से ज़्यादातर हथियारों के ज़्यादा ऐसा कानून बनाने के हक़ में नहीं हैं। एक अन्य सर्वे के अनुसार हथियारों पर रोक लगाने का समर्थन 70 फ़ीसदी डेमोक्रेट करते हैं जबकि ऐसे रिपब्लिकनों की संख्या सिर्फ़ 48 फ़ीसदी है। कैलिफोर्निया समेत सिर्फ़ सात राज्यों ने अपने अधिकार क्षेत्र में हथियार ख़रीद पर क़ानून बनाया है। इलिनोइस राज्य में अधिकतर लोग हथियार कानून नियंत्रण के समर्थन में है। अलास्का, नेबरास्का और अलबामा में बहुत से लोग हथियारों के समर्थक हैं। 

हेरानी की बात है कि हॉलीवुड भी इस मुद्दे पर कुछ बोलना नहीं चाहता। समाज का कोई मुद्दा हो हॉलीवुड स्टार बोलने के लिए तैयार मिलते हैं, लेकिन बंदूक पर सब खामोश हैं। बंदूकों पर नियंत्रण की लंबे समय से वकालत कर रही अभिनेत्री सूजान सैरैंन्डन और डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार माइकल मूर प्रतिक्रिया जताने वालों में सबसे आगे रहे हैं। सोशल मीडिया में हजारों लोगों ने बंदूकों पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाने की ऑनलाइन अपील की है। इसके बावजूद बड़े सितारे खामोश रहे। 


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