राहुल गांधी का बढ़ गया कद, मनमोहन हुए मुखर!

punjabkesari.in Saturday, Dec 16, 2017 - 10:26 AM (IST)

नई दिल्ली: गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों, इस चुनाव के बाद लोगों के जेहन में राहुल गांधी की छवि एक मंझे हुए और गंभीर राजनेता के रूप में बनी है। जबकि अमूमन कम बोलने के लिए पहचाने जाने वाले मनमोहन सिंह ने राजनीतिक बयानबाजी के बीच मजबूती से अपनी बात रखकर मुखर होने का संकेत दिया है। पहली बार राहुल गांधी के आत्मविश्वास के आगे बीजेपी के बड़े नेता कमजोर दिखे। राहुल गांधी पूरे वक्त चुनावों में लगे रहे, छुट्टी पर नहीं निकले। कांग्रेस पार्टी के एकलौते स्टार प्रचारक रहे। पूरे गुजरात में घूम-घूम कर प्रचार किया। गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो रहें, इस चुनाव ने राहुल को मंदिर जाना ही नहीं राजनीति करना भी सिखा दिया। 2017 के गुजरात चुनावों ने ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी’ कहकर अपनी चुप्पी को हाई प्रोफाइल बना देने वाले मनमोहन सिंह भी बोलने पर मजबूर हो गए।

मनमोहन सिंह इतने तल्ख लहजे में कभी नहीं दिखे
 चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की टिपप्णी भी दिलचस्प है, जिसमें उन्होंने कहा था कि गुजरात चुनाव ने दो काम अच्छे से करा दिए। डॉ. मनमोहन सिंह जी का मुंह खुलवा दिया और राहुल गांधी को मंदिर जाना सिखा दिया। देखा जाए तो योगी आदित्यनाथ काफी हद तक सही मालूम पड़ते हैं। न मनमोहन सिंह को पहले इतने गुस्से में देखा गया और न ही राहुल गांधी को इतने मंदिरों की यात्रा पर। इसके पीछे गुजरात की उस राजनीति का हाथ है, जिसने मनमोहन सिंह को मुखर होने से लेकर राहुल के मंदिर-मंदिर जाने की जमीन तैयार की। इसके पहले मनमोहन सिंह इतने तल्ख लहजे में कभी नहीं दिखे। मौके-बेमौके डिफेंसिव मोड में रहते हुए उन्होंने कभी दार्शनिक तो कभी शायराना अंदाज जरूर दिखाया है, लेकिन कभी आक्रामक रुख में नजर नहीं आए। 

पीएम मोदी के लगाए आरोपों से गुस्सा हुए मनमोहन
पीएम मोदी के लगाए आरोपों से इतना गुस्सा हुए कि बयान लिखकर जारी कर दिया। मनमोहन सिंह ने बयान में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हार को सामने देखकर बौखलाहट में झूठ और अफवाहों का सहारा ले रहे हैं। निराशा में अपशब्दों का सहारा लेकर और झूठ के तिनके को पकड़कर अपनी डूबती चुनावी नैया को पार कराने का प्रयास कर रहे हैं। 2017 का गुजरात चुनाव याद रखा जाएगा, क्योंकि जितने बेआबरू होकर सवाल पूछे गए उतने ही बेइज्जत करने वाले जवाब दिए गए। जितने ऊंचे ओहदे पर बैठकर कीचड़ उछाले गए उतने ही निचले स्तर तक उसकी गदंगी फैली। यही वो चुनाव है जिसमें राजनीतिक लांछनों का ऐसा दौर चला जिसे काफी वक्त तक याद रखा जाएगा। 

राहुल गांधी ने सीख लिया मंदिर जाना
योगी आदित्यनाथ की बात सही है कि राहुल गांधी ने मंदिर जाना सीख लिया। वहां की राजनीति की मजबूरी उन्हें मंदिरों की चौखट तक लेकर आई है। ये मजबूरी इतनी बड़ी है कि राहुल गांधी मंदिर में दर्शन के साथ ही चुनाव प्रचार का आगाज किया और मंदिर दर्शन के साथ ही प्रचार का समापन। उन्होंने मंदिर दर्शन की शुरुआत द्वाराकाधीश मंदिर से की थी और समापन जगन्नाथ मंदिर में किए।


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