हमेशा सच साबित नहीं हुए एग्जिट पोल

punjabkesari.in Saturday, Dec 16, 2017 - 10:31 AM (IST)

नई दिल्ली: गुजरात व हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल के अनुसार दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है लेकिन  अगर कुछ राज्यों के चुनावों के एग्जिट पोल का विश्लेषण किया जाए तो यह बात साफ हो जाएगी कि हर बार ये सही साबित नहीं हुए हैं। इसी कड़ी में बात करते हैं बिहार की। 2015 में बिहार विधानसभा के चुनावों के बाद जो भी एग्जिट पोल आए उन सब के मुताबिक बिहार में एन.डी.ए. की सरकार बन रही थी। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो सभी सर्वे झूठे साबित हुए। महागठबंधन ने 178 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि एन.डी.ए. को मात्र 58 सीटें ही मिलीं। दिल्ली में 2015 में हुए चुनावों में हालांकि सर्वे में आप की बढ़त दिखाई गई थी लेकिन जो सही तस्वीर थी उसे भी एग्जिट पोल दिखाने में असमर्थ रहे थे। सभी एग्जिट पोल में आप को औसतन 30 से 40 सीटें दी गई थीं लेकिन जब परिणाम आया तो आप ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर 70 में से 67 सीटें जीत कर सभी चुनावी सर्वे को झूठा साबित कर दिया था। विपक्षी कांग्रेस पार्टी का जहां सूपड़ा साफ हो गया था वहीं भाजपा ने जैसे-तैसे करके 3 सीटें जीत अपनी नाक बचाई थी।

सच साबित हुए सर्वे तो राहुल पर उठेंगे सवाल
एग्जिट पोल के नतीजे कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बुरी खबर की आहट लेकर आए हैं। महीनों की जी तोड़ मेहनत और सधे जातीय समीकरणों के बावजूद कांग्रेस एग्जिट पोल के मुताबिक हिमाचल में सत्ता गंवा रही है जबकि गुजरात में भी उसकी सीटों में कोई खास इजाफा नहीं दिख रहा। अध्यक्ष के रूप में उनके नाम की घोषणा के एक सप्ताह बाद ही गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव परिणाम आ रहे हैं और अगर एग्जिट पोल के नतीजे सच साबित हुए तो राहुल पर कई सवाल उठेंगे।

हार की जिम्मेदारी से कैसे बचेंगे राहुल?
राजनीति के जानकारों का कहना है कि राहुल के पूरे राजनीतिक करियर में केवल और केवल हार ही हुई है। अब गुजरात और हिमाचल चुनाव में कांग्रेस का हारना सीधे तौर पर उनकी हार मानी जाएगी। आलोचक कहेंगे कि चाहे पार्टी और सर्वाधिकार राहुल को दे दो, उनकी किस्मत में हार ही है।

बड़े नेताओं के चेहरों पर रौनक नहीं 
 हालांकि सभी सर्वे में भाजपा जीतती दिख रही है लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं के चेहरों पर  न  तो  रौनक  दिख रही है और न ही किसी भी पदाधिकारी ने  कोई आधिकारिक बयान दिया। इससे साफ है कि भाजपा भी कहीं न कही परिणामों को लेकर असमंजस में है। अभी तक पी.एम. और राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान को तो छोडि़ए, किसी प्रवक्ता तक ने इस पर साफ  तौर  से  कुछ नहीं बोला है।

भरोसा जीतने की चुनौती
अपनी पार्टी में उन्हें गंभीरता से लिया जाए, इसके लिए आवश्यक है कि वह खुद को साबित करें लेकिन ऐसा करने में अगर उन्हें नाकामी मिली तो फिर पार्टी का भरोसा जीतना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।

फिर क्यों बंटाधार?
राहुल नि:संदेह नए अवतार में नजर आ रहे हैं लेकिन यह हार उन पर हमले फिर से करने का मौका खोल देगी। उन पर सवाल उठेंगे कि अगर उनकी छवि सुधारी है तो फिर यह बंटाधार क्यों।


 


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