सत्ता के लिए नहीं, सीट बचाने की ‘जंग’

punjabkesari.in Thursday, Nov 30, 2017 - 11:01 AM (IST)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव में सत्ता की बजाय प्रतिष्ठा के लिए लड़ रही है, वहीं कांग्रेस भी भाजपा को सत्ता से हटाने की बजाय उसकी प्रतिष्ठा कम करने के लिए लड़ रही है। भाजपा जानती है कि उसके लिए सत्ता बरकरार रखना चुनौती नहीं है, बल्कि प्रतिष्ठा बचाने रखने की चुनौती है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपनी परंपरागत सीटों के अलावा कांग्रेस खाते की सीटें हथियाकर बाजी पलटना चाहते हैं। लिहाजा, भाजपा का पूरा फोकस कांग्रेस के बागियों की दस सीटों के साथ पिछड़ा और आदिवासी बेल्ट की सौ सीटों पर हैं, जहां से अपनी पुरानी 125 सीटों की गणना को दुरुस्त रख पार्टी प्रतिष्ठा को बचाए रखना चाहती है। 

गुजरात की 182 सीटों में भाजपा के पास 125 सीटें हैं। भाजपा जीत को लेकर तो आश्वस्त है, लेकिन प्रतिष्ठा का सवाल सीटों की संख्या पर है। भाजपा की सीटें घटी तो देश में अलग संदेश जाएगा। इसका सीधा असर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर पड़ेगा। इसी वजह से सारी मशक्कत 125 के आंकड़े को बढ़ाने की हो रही है। भाजपा का अभी तक शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव रहा है। सूरत, बदोदरा, अहमदाबाद, राजकोट जैसे कारोबारी शहर में भाजपा ने लगातार जीत दर्ज की है, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। जीएसटी और नोटबंदी के कारण इन चारों शहरों की लगभाग 60 से ज्यादा सीटें खतरे में हैं। 

सियासी जानकारों के मुताबिक भाजपा जिस दक्षिण गुजरात के कारण दो दशक से सत्ता में है, वहां खतरे को भांप लिया है। पार्टी इस बार उन इलाकों पर खास फोकस कर रही है, जहां कांग्रेस उसे चुनौती देती रही है। वह इलाके उत्तर गुजरात के हैं। वहां की लगभाग सौ सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और अन्य दल जीतते रहे हैं। यह इलाका मूलत: आदिवासी और पिछड़ा वर्ग बहुल है। गुजरात चुनाव का बाहरी मुद्दा भले ही विकास हो, लेकिन पूरा चुनाव जातिगत समीकरण पर ही होता है। गुजरात में सर्वाधिक 40 प्रतिशत मतदाता पिछड़े समाज का है। इसके अलावा 14 प्रतिशत वोट के साथ आदिवासी समाज चुनाव को प्रभावित करता है। राज्य में आदिवासी वोट बंटा हुआ है। वह कांग्रेस के अलावा उस चेहरे के साथ जाता है, जो उनके बीच लगातार बना रहता है। यही कारण है कि एनसीपी और जदयू जैसी पार्टियां इसी बेल्ट से जीत हासिल करती हैं। खास बात यह है कि पिछड़ा समाज का वोट भी विभााजित है। वह कांग्रेस और भाजपा में बंटता है। कांग्रेस के पास चूंकि, कोई पिछड़ा चेहरा नहीं था, इसलिए सबसे ज्यादा लाभा भाजपा को मिलता था।


 


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