फॉस्टरकेयर का इस्तेमाल छोटे बच्चों को गोद लेने के लिए पिछले दरवाजे के रूप में हो रहा : सीएआरए
punjabkesari.in Sunday, Jun 24, 2018 - 02:15 PM (IST)
नई दिल्ली: भारत में लोग फॉस्टरकेयर सिस्टम का इस्तेमाल छोटे बच्चों को गोद लेने के लिए पिछले दरवाजे के रूप में कर रहे हैं जबकि इस प्रोग्राम का मकसद उन बच्चों को परिवार की तरह का माहौल देना है जिन्हें कोई गोद लेने वाला नहीं मिलता। बड़े बेसहारा और अनाथ बच्चों के देखभाल की प्रणाली ‘फॉस्टर केयर’ एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें इन बच्चों को खासतौर पर अस्थायी रूप से ऐसे परिवारों के साथ रखा जाता है जिससे उनका कोई संबंध नहीं होता है। इसका मकसद बच्चे को पारिवारिक माहौल देना है।
सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (सीएआरए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) दीपक कुमार ने कहा कि भारत में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो बड़े बच्चों को गोद लेना चाहते हैं। इसलिए हमें पता है कि ऐसे बच्चों को आसानी से गोद नहीं लिया जाएगा। ऐसे बच्चों को संस्थानों में बड़ा करने से बेहतर है कि उन्हें किसी परिवार के साथ जोड़ा जाए। इसलिए फॉस्टर केयर प्रोग्राम का मतलब इन बड़े बच्चों को एक परिवार में रखना है।
सीएआरए के आंकड़े के अनुसार 2017-18 में दो साल से ज्यादा उम्र के 2,537 बच्चों में से सिर्फ 597 बच्चों को गोद लिया गया। कुमार ने बताया लेकिन हमने देखा कि फॉस्टरकेयर प्रोग्राम को इस तरह से नहीं लिया गया जैसा इसे होना चाहिए था और एक हद तक इसमें अनैतिक चीजें शुरू हो गई हैं। प्राथमिक तौर पर छोटे बच्चों के मुकाबले यहां कानूनी तौर पर गोद लेने के लिए रखे गए बड़े बच्चों को गोद लेने की इच्छा रखने वाले दंपती की संख्या में अंतर है।
उन्होंने बताया कि सीएआरए के तहत पंजीकृत करीब 8,000 चाइल्ड केयर संस्थान हैं और इन संस्थानों में 95 फीसदी से ज्यादा बच्चे पांच साल की उम्र से ज्यादा के हैं। फॉस्टरकेयर प्रोग्राम के दिशानिर्देशों के अनुसार, बच्चे के लिए इसकी अवधि एक साल से अधिक नहीं होनी चाहिए लेकिन बच्चे और उसे अपने साथ रख कर देखरेख करने वाले अभिभावकों के बीच तालमेल के आकलन के आधार पर इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है। ‘ग्लोबल एडवोकेसी एट चिल्ड्रेन इमरजेन्सी रिलीफ इंटरनेशनल’ के निदेशक इयान आनंद फोर्बर प्रैट ने कहा कि फॉस्टरकेयर की अवधारणा भारत में नई है इसलिए इसके बारे में जागरूकता और जानकारी फैलाना जरूरी है।