फूड प्रोसेसिंग से बदल रहा ग्रामीण भारत: चिराग पासवान बोले- ''मखाना से महुआ तक, अब दुनिया भर में दिखेगा ''मेड इन इंडिया'' का दम''
punjabkesari.in Tuesday, Jun 24, 2025 - 04:03 PM (IST)

नेशनल डेस्क। मधुबनी से लेकर बस्तर तक भारत के ग्रामीण इलाकों में एक चुपचाप लेकिन क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है और इस बदलाव का नाम है फूड प्रोसेसिंग। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने अपने एक हालिया लेख में इस तस्वीर को विस्तार से पेश किया है जिसमें बताया गया है कि कैसे यह क्षेत्र 'ग्रामीण भारत से वैश्विक भारत' की सोच को हकीकत बना रहा है।
मंत्री ने ज्ञानेश कुमार मिश्रा नामक एक युवा उद्यमी का उदाहरण दिया जिन्होंने पारंपरिक मखाना को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाया है। उनके ब्रांड ने अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में भी अपनी जगह बनाई है। यह कहानी सिर्फ एक उद्यमी की नहीं बल्कि भारत के कोने-कोने में पनप रही नई उम्मीद का प्रतीक है।
गाँव की रसोई से वैश्विक बाज़ार तक: PMFME का कमाल
आज भारत के हर कोने से छोटे उद्यमी, किसान और स्वयं सहायता समूह (SHG) PMFME (प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना) के तहत मजबूत हो रहे हैं। यह योजना ग्रामीण स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा दे रही है। इसके तहत:
- अब तक 1.41 लाख से अधिक माइक्रो एंटरप्राइजेज को ₹11,205 करोड़ के लोन मिल चुके हैं।
- 3.3 लाख से अधिक SHG सदस्यों को सीड कैपिटल (शुरुआती पूंजी) मिली है।
- 1 लाख से अधिक लोगों को फूड प्रोसेसिंग से संबंधित स्किल ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
मखाना से महुआ तक: भारत के स्वाद को मिला ब्रांड
इस बदलाव के तहत मधुबनी का पारंपरिक मखाना अब फ्लेवर्ड स्नैक्स के रूप में लोकप्रिय हो रहा है जबकि बस्तर की जनजातीय महिलाएँ महुआ से चॉकलेट्स, एनर्जी बार और चाय जैसे अभिनव उत्पाद बना रही हैं। चिराग पासवान ने जोर देकर कहा, "अब ये उत्पाद न सिर्फ भारत की दुकानों में हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय शेल्फ पर भी बिक रहे हैं।" यह भारत के स्थानीय स्वादों को वैश्विक पहचान दिलाने का एक सफल प्रयास है।
औद्योगिक और निवेश की ताकत
सरकार की प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) भी फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसके तहत:
- अब तक 1,604 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं।
- ₹22,000 करोड़ से अधिक का निजी निवेश इस क्षेत्र में आया है।
- इससे 53 लाख से अधिक किसानों को लाभ हुआ है।
- और 7.6 लाख से अधिक नई नौकरियाँ पैदा हुई हैं।
स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी: फूड-टेक की नई पीढ़ी
भारत में 5,000 से अधिक फूड-टेक स्टार्टअप्स उभर रहे हैं जो इस क्षेत्र में टेक्नोलॉजी और नवाचार ला रहे हैं। ये स्टार्टअप AI-सक्षम ट्रेसिबिलिटी (उत्पादों की पहचान और निगरानी), प्लांट-आधारित उत्पाद और टिकाऊ पैकेजिंग जैसे नए क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए तीन NIFTEM (राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान) संस्थान स्थापित किए गए हैं जिनमें से एक बिहार में निर्माणाधीन है।
गुणवत्ता की गारंटी और विश्वसनीयता
अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने के लिए गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर विशेष जोर दिया जा रहा है:
- 100 NABL-मान्यता प्राप्त फूड टेस्टिंग लैब्स गुणवत्ता सुनिश्चित कर रही हैं।
- 50 इरेडिएशन यूनिट्स से उत्पादों की शेल्फ लाइफ में सुधार किया जा रहा है।
- नेशनल मखाना बोर्ड का गठन किया गया है जिसका मुख्य कार्य मखाना के मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग को बढ़ावा देना है।
फूड प्रोसेसिंग अब सिर्फ एक उद्योग नहीं बल्कि ग्रामीण भारत की प्रगति का एक प्रमुख जरिया बन चुका है। मंत्री चिराग पासवान का कहना बिल्कुल सही है हमारा लक्ष्य साफ है: दुनिया की हर दुकान पर एक ऐसा प्रोडक्ट हो, जिस पर लिखा हो 'भारत' और उसके पीछे हो गांव, किसान और आत्मनिर्भरता की कहानी। यह कहानी सिर्फ मुनाफे की नहीं, बल्कि गर्व और पहचान की है।