भारत में पारसियों की सिकुड़ती आबादी और सरकार के उपाय

punjabkesari.in Friday, Aug 19, 2022 - 09:56 PM (IST)

भारत सरकार ऑनलाइन डेटिंग की मदद से पारसी जोड़ों को मिलाना चाहती है. लेकिन कुछ पारसी कहते हैं कि घटती आबादी की समस्या, स्त्रियों को अपने दायरे से बाहर रखने वाली पारसी अस्मिता की पारंपरिक परिभाषाओं में निहित है. भारत सरकार ने हाल में एक ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफॉर्म पेश किया है जिसका लक्ष्य पारसी समुदाय की सिकुड़ती आबादी को बहाल करने का है. कोशिश ये है कि पारसी औरत और पुरुष एक दूसरे से मिले जुलें, घनिष्ठता बढ़ाएं, शादी करें और बच्चे पैदा कर सकें. शादी के योग्य पारसियों को आपस में मिलाने के लिए ये डेटिंग सेवा कोई पहली कोशिश नहीं है. 2013 में भारत ने "जियो पारसी" योजना शुरू की थी. उसके तहत सिलसिलेवार ढंग से पारसी सांस्कृतिक अभियान चलाए गए थे ताकि समुदाय के लोग एक दूसरे के करीब आ सकें. इन अभियानों के तहत पारसी युवाओं के लिए होलीडे कार्यक्रम रखे गए थे, लड़कों और लड़कियों के लिए आपस में घुलनेमिलने के लिए सांस्कृतिक आयोजन किए गए थे. यह भी पढे़ंः कुर्द अपना धर्म छोड़ कर पारसी क्यों बन रहे हैं 1941 में भारतीय पारसी आबादी 1,14,000 के करीब थी. 2011 की जनगणना में ये गिरकर करीब 50,000 रह गई. भारतीय उपमहाद्वीप में पारसी समुदाय एक जातीयधार्मिक समूह है जो जरतुष्ट धर्म को मानता है. आंकड़े दिखाते हैं कि शादी के योग्य करीब 30 फीसदी पारसी एकल हैं और प्रति दंपत्ति प्रजनन दर 0.8 बच्चों की है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, साल में300 जन्म की तुलना में औसतन 800 पारसियों की एक साल में मौत हो जाती है. एक बच्चे के पिता साइरस डाभर ने डीडब्ल्यू को बताया, "पारसी दंपत्ति सिर्फ एक बच्चा पैदा करने का फैसला करते हैं, क्योंकि खर्चे बढ़ रहे हैं और सारे संसाधन एक ही बच्चे पर केंद्रित करना लोगों को जंचता है. लेकिन हमेशा कोई ना कोई रिश्तेदार, परिचित, मित्रगण होते हैं, जो आपके पीछे लगे रहते हैं कि कम से कम दो या तीन बच्चे तो कीजिए." भारत के पारसी कौन है? आज के पारसी सासानिद ईरान के फारसियों के वंशज हैं, जो 7वीं सदी में भारत आए थे जब फारस पर अरब के मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था. पारसी धर्म जरतुष्ट, दुनिया के सबसे पुराने संगठित धर्मो में से एक है जिसकी जड़ें प्राचीन फारस में हैं. पारसी खासतौर पर पश्चिमी भारत के राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र में आ बसे थे, लेकिन कुछ समुदाय देश भर में बिखरे हुए हैं. कुछ पारसी अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और दूसरे पश्चिमी देशों में भी बसे थे. पारसी समुदाय आपसी घनिष्ठता और सद्भावना वाला समुदाय है, उसके कुछ सदस्यों को परोपकारी ट्रस्टों और अनुदानों के जरिए आधुनिक भारत के निर्माण में मदद करने का श्रेय भी जाता है. उल्लेखनीय नामों में टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन उद्योगपति रतन टाटा और सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला का नाम शामिल है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शायद सबसे ज्यादा मशहूर पारसी फ्रेडी मरकरी होंगे जो ब्रिटिश बैंड क्वीन के लीड सिंगर थे. पारसियों में पितृसत्तात्मकता की समस्या है? किसी को आमतौर पर पारसी तभी माना जाता है जबकि उसके मातापिता, दोनों पारसी हों. जियो पारसी योजना दंपत्तियों की मदद के लिए कई सेवाएं भी मुहैया कराती है, जैसे बच्चों की देखभाल में मदद और प्रजनन से जुड़े उपचार जैसे इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन. हालांकि प्रजनन के उपचार उन पारसी औरतों को हासिल नहीं हैं जो समुदाय से बाहर जाकर यानी गैर-पारसी से विवाह करती हैं. समावेशिकता की बात आती है तो कई पारसी अपने समुदाय की कड़ी आलोचना करते हैं कि वो बेहद पितृसत्तात्मक है. एक हिंदू से विवाह करने वाली पारसी महिला करमिन भौट ने डीडब्ल्यू को बताया, "आदमी तो जिससे मर्जी उससे शादी कर सकते हैं और वे पारसी ही माने जाते हैं, लेकिन औरत समुदाय से बाहर जाकर शादी कर ले तो उसे बेदखल कर दिया जाता है." वो कहती हैं कि "औरत भले ही धर्म से जुड़ी रहना चाहे और अपने बच्चे को पारसी धर्म के हिसाब से पालना-पोसना चाहे, तो भी वो ऐसा नहीं कर सकती. क्योंकि समाज उसे परजात यानी बाहरी कहकर बहिष्कृत कर चुका होता है." पारसी कौन कहलाएगा वाली ये कट्टरता भविष्य की पीढ़ियों तक जाती है. यह भी पढ़ेंः पारसी समुदाय के अस्तित्व पर संकट ऋषि किशनानी के पिता हिंदू और मां पारसी हैं, लिहाजा वो पारसी नहीं माने जाते हैं. उन्होंने और उनकी पारसी पत्नी ने अपने बच्चे को पारसी धर्म में बड़ा करने का फैसला किया. उन्होने डीडब्लू को बताया, "मेरे बच्चे को पारसियों के खेल के मैदान में खेलने नहीं दिया गया, जहां उसके सारे दोस्त खेलते हैं क्योंकि उसकी मां ने गैर-पारसी से शादी की थी. हिंदू महिला से शादी करने वाले मेरे पारसी दोस्त के बेटे को वहां खेलने की इजाजत है. ये पारसी समुदाय में पसरा हुआ एक तरह का नस्लवाद और लिंगभेद है." औरतों से भेदभाव के खिलाफ याचिका किशनानी की पत्नी ने, अंतरधार्मिक विवाह के बाद पारसी औरतों और उनके बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को लेकर एक याचिका भी दायर की है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. शिकायत में सर्वोच्च अदालत से बंबई हाईकोर्ट के 1908 के उस आदेश को निरस्त करने की मांग भी की गई है जिसमें कहा गया था कि अंतरधार्मिक शादी करने वाले पारसी पुरुषों की संताने पारसी ही मानी जाएंगी जबकि अंतरधार्मिक शादी करने वाली पारसी स्त्रियों से पैदा होने वाली संतानों को पारसी का दर्जा नहीं मिलेगा. मुंबई में, बहुत सारी पारसी कालोनियां हैं जिन्हें "बाग" भी कहा जाता है. यहां पारसी लोग सस्ते में मकान खरीद सकते हैं या किराए में रह सकते हैं. गैर-पारसी से शादी करने वाली औरतों का, इन घरो में रहने का अधिकार भी छिन जाता है. समुदाय के कुछ हिस्सों में गैर-पारसियों में विवाहित औरतें अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार में शामिल होने जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखी जाती हैं. ऋषि किशनानी कहते हैं, "समुदाय के नेतागण पारसी पिताओं की संतानो को तो मान्यता देते हैं लेकिन उन बच्चों को मान्यता नहीं देते जिनकी माताएं पारसी हैं. अगर इस असमानता से छुटकारा पा लिया जाए तो आबादी स्वतः ही बढ़ जाएगी."

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