नजरिया: स्कूलों, अस्पतालों पर लगाम कसना जरूरी

punjabkesari.in Wednesday, Jul 11, 2018 - 03:42 PM (IST)

नेशनल डेस्क(संजीव शर्मा ): दिल्ली के एक स्कूल द्वारा  फीस के लिए बच्चों को बंधक बनाए जाने का मामला अफसोसजनक है।  दिलचस्प ढंग से एक दो नहीं पचास बच्चों की फीस भरने में देरी हुई थी। यह सीधे तौर पर कोई तकनीकी खामी दिखाई देती है। एक या दो बच्चों की फीस समय पर नहीं आने का मतलब तो यह हो सकता है कि अभिभावक पैसे नहीं दे पाए। लेकिन पूरी क्लास की फीस लेट होने के मामले में कोई अन्य कारण भी हो सकता है।

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स्कूल प्रबंधन ने न सिर्फ इन कारणों की अनदेखी की बल्कि बच्चों को जिस तरह से बंधक बनाया गया वह शर्मनाक और दंडनीय है।  सरकार को इस पर तुरंत एक्शन लेकर स्कूल प्रबंधन पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो।  वैसे दिलचस्प ढंग से दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए कई सख्त कदम उठाये भी हैं। मसलन जिन स्कूलों को सरकार ने सस्ते में जमीन दी है, या जिन्हें कोई अन्य सरकारी सहायता मिली है उनकी फीस  सरकार की मंजूरी के बिना  नहीं बढ़ाई जा सकती।  लेकिन इसके बावजूद निजी स्कूलों की दबंगई का  जीता जगता उदाहरण आपने देख ही लिया।

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इससे पहले भी एक बड़े निजी स्कूल में एक छात्र की ह्त्या का मामला सुर्खियों में रहा था। वहां भी स्कूल प्रबंधन की भूमिका खेदजनक थी। एडमिशन के नाम पर हर साल मोटी रकम, विशेष दुकानों से  यूनिफार्म और किताबें खरीदना ये सब चोंचले निजी स्कूलों के स्तर पर आम हैं और  एक तरह से इनके  बहाने बच्चों के माता-पिता को जमकर लूटा जाता है। अब जबकि फीस में देरी के कारण बच्चों को बंधक बनाने का मामला सामने आया है तो यह जरूरी है कि  समय रहते इस समस्या के इलाज को कोई बड़ी पहल की जाए। बच्चों को एटीएम समझने वाले स्कूलों की  ऐसी गलतियों को क्षमा करने के स्थान पर उनकी मान्यता रद की जानी चाहिए ताकि सबक और सन्देश दोनों दिए जा सकें। स्कूलों की ही तरह निजी अस्पतालों की लूट के किस्से भी आम हैं। कहीं डेंगू जैसी बीमारी के इलाज के लिए 25 लाख का बिल। '

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कहीं पैसे नहीं चुकाने की सूरत में शव नहीं देना -ऐसी खबरें भी आम हैं। वास्तव में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में निजी संस्थानों ने बेतहाशा लूट मचा रखी है। कोई दो राय नहीं कि मनुष्य इन्हीं दो चीजों पर सबसे ज्यादा फोकस करता है। उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा दिलाई जाए। दूसरे बीमारी की स्थिति में बढिय़ा इलाज कराया जाए। ऐसे में इन्हीं दो चिंताओं को निजी संस्थान अब अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।  लेकिन अगर यहीं जनता को लूटा जाएगा तो सरकार को गंभीर होना ही होगा।  आखिर यह उसके कल्याणकारी स्वरुप पर भी दाग लगाने वाले कृत्य हैं।  


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Anil dev

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