पुरुषों के फेफड़ों में महिलाओं से ज्यादा जमा हो रहे जहरीले कण, रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
punjabkesari.in Thursday, Dec 18, 2025 - 06:00 PM (IST)
नेशनल डेस्क : ट्रैफिक में गाड़ी चलाते समय या भीड़भाड़ वाली सड़कों पर पैदल चलते हुए दिल्ली के पुरुष अपने फेफड़ों में महिलाओं की तुलना में अधिक मात्रा में प्रदूषण के जहरीले कण खींच रहे हैं। नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली और नोएडा की एक पर्यावरण कंसल्टेंसी के वैज्ञानिकों ने 2019 से 2023 तक पांच साल के अध्ययन के दौरान यह चौंकाने वाला निष्कर्ष निकाला है। इस अध्ययन का नाम है: ‘दिल्ली में सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचने वाले कणों का पांच साल का आकलन: जोखिम और स्वास्थ्य खतरे’।
शोध में वैज्ञानिकों ने दिल्ली के 39 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों से जुटाए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया। अध्ययन के अनुसार, पुरुषों के फेफड़ों में PM2.5 और PM10 जैसे जहरीले कण महिलाओं की तुलना में ज्यादा जमा हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण पुरुषों की सांस की मात्रा और हवा का प्रवाह महिलाओं से अधिक होना बताया गया है।
पुरुषों के फेफड़ों में कण ज्यादा जमा होने का कारण
शोध में यह भी पाया गया कि जब पुरुष बैठे रहते हैं, तब उनके फेफड़ों में PM2.5 कण महिलाओं की तुलना में लगभग 1.4 गुना और PM10 कण 1.34 गुना अधिक जमा होते हैं। वहीं, पैदल चलते समय पुरुषों में दोनों तरह के कण (PM2.5 और PM10) महिलाओं की तुलना में करीब 1.2 गुना ज्यादा फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय मान्य मॉडल का उपयोग किया गया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि हवा में मौजूद प्रदूषण कितना फेफड़ों के अलग-अलग हिस्सों में जाकर जमा हो रहा है।
दिल्ली में प्रदूषण का गंभीर स्तर
स्टडी के अनुसार, दिल्ली में फेफड़ों में जमा होने वाले PM2.5 कण भारत के वायु गुणवत्ता मानक से लगभग 10 गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों से करीब 40 गुना अधिक हैं। भारत में PM2.5 की सीमा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और PM10 की सीमा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। जबकि WHO के मानक PM2.5 के लिए 15 और PM10 के लिए 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित करते हैं। दिल्ली में फेफड़ों तक पहुंचने वाला प्रदूषण इन दोनों मानकों से काफी अधिक है।
बैठे रहने की तुलना में पैदल चलना ज्यादा खतरनाक
अध्ययन में यह भी सामने आया कि पैदल चलते समय फेफड़ों में कण जमा होने की दर बैठे रहने की तुलना में दो से तीन गुना अधिक होती है। सबसे ज्यादा खतरे में पैदल चलने वाले पुरुष हैं, इसके बाद पैदल चलने वाली महिलाएं, फिर बैठे हुए पुरुष और सबसे कम जोखिम बैठी हुई महिलाएं उठाती हैं। इसका सीधा मतलब है कि सड़क पर पैदल चलने वाले लोग और स्ट्रीट वेंडर जैसे बाहर ज्यादा समय बिताने वाले मजदूर सबसे ज्यादा स्वास्थ्य जोखिम में हैं। इनमें PM2.5 जैसे बारीक कण सबसे अधिक खतरनाक हैं, क्योंकि ये फेफड़ों के गहरे हिस्सों तक पहुंच जाते हैं।
शाम के समय खतरा सबसे ज्यादा
अध्ययन में यह पाया गया कि शाम के ट्रैफिक घंटों में सुबह की तुलना में फेफड़ों में PM2.5 कण 39 फीसदी और PM10 कण 23 फीसदी अधिक जमा होते हैं। इसका कारण शाम के समय ट्रैफिक का अधिक धुआं और मौसम की ऐसी स्थिति है, जो प्रदूषण को जमीन के करीब रोककर रखती है। शोध में यह भी कहा गया है कि दिवाली की रात फेफड़ों में कणों का जमा होना त्योहार से पहले के दिनों की तुलना में लगभग दोगुना हो जाता है और यह बढ़ा हुआ स्तर कई दिनों तक बना रहता है।
कौन से इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं
औद्योगिक इलाकों में फेफड़ों में प्रदूषण जमा होने की दर सबसे अधिक है, इसके बाद व्यावसायिक क्षेत्र आते हैं। हरे-भरे इलाकों, खासकर सेंट्रल दिल्ली में जोखिम तुलनात्मक रूप से कम पाया गया। 2020 के लॉकडाउन के दौरान ट्रैफिक और उद्योग बंद होने से कई इलाकों में फेफड़ों में कण जमा होना 60 से 70 फीसदी तक कम हो गया। इससे स्पष्ट होता है कि बड़े स्तर पर ट्रैफिक और उद्योग को नियंत्रित करने से स्वास्थ्य जोखिम बहुत जल्दी घटाया जा सकता है।
शोधकर्ताओं की सिफारिश
वैज्ञानिकों का कहना है कि रोजमर्रा के प्रदूषण से बचाव के लिए तत्काल नीतिगत बदलाव जरूरी हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो बाहर अधिक समय बिताते हैं, जैसे कि यात्री, स्ट्रीट वेंडर और सड़क पर काम करने वाले मजदूर। उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए मास्क, पर्यावरणीय सुधार और प्रदूषण नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।
