कबूतरों की बीट के संपर्क में आने से हो सकता है घातक संक्रमण, जा सकती है जान
punjabkesari.in Friday, Oct 17, 2025 - 08:57 PM (IST)

नई दिल्ली: भारत के कई शहरों में कबूतरों को दाना डालने वाली रिवायत्त अब काफी जोखिम भरी हो चली है। मुंबई, दिल्ली, जयपुर जैसे शहरों में यह परंपरा बहुत ज्यादा आम है। रोजाना हजारों लोग कबूतरों को दाना डालते हैं, लेकिन वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि कबूतरों की बीठ के संपर्क में आने से वे घातक संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। दरअसल डॉक्टरों का कहना है कि कबूतरों की सूखी बीठ के कारण लोगों को फेफड़ों का संक्रमण हो सकता है, जिससे जान भी जा सकती है।
कबूतरों को क्यों कहा जाता है 'उड़ने वाले चूहे'
मुंबई स्थित सैफी अस्पताल में क्रिटिकल केयर मैडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख और कंसल्टेंट फिजिशियन डॉ. दीपेश अग्रवाल के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई जैसे शहरों में कबूतरों को खिलाने वाले जोन या कबूतरखाने अब आम शहरी स्थल बन गए हैं। स्थानीय समुदायों या ट्रस्टों द्वारा चलाई जाने वाली ये जगहें बुजुर्ग नागरिकों, मॉर्निंग वॉक करने वालों और दाना खिलाने वालों से भरी रहती हैं।
आसपास अनाज बेचने वाले विक्रेता इस इंको सिस्टम को और मजबूत बनाते हैं, जिससे यह अपने आप में एक छोटे उद्योग की तरह बन गया है। डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि जब भोजन आसानी से मिलने लगता है तो कबूतरों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है, जिससे उनकी संख्या में बढ़ौतरी और पर्यावरणीय असंतुलन हो सकता है। अर्बन ईकोलॉजिस्ट इन्हें नक्सर 'उड़ने वाले चूहे' कहते हैं, क्योंकि ये चूहों की तरह तेजी से प्रजनन, रोग फैलाने की क्षमता और सार्वजनिक स्थानों को डैमेज कर सकते हैं।
कैसे नुकसान पहुंचाती है शरीर को कबूतरों की बीठ
आम जनता को कबूतरों की बीट से शरीर को होने वाले नुकसान के खतरे के बारे में कम पता है, जो अक्सर दाना डालने वाली जगहों और उनके घोंसले के पास काफी मात्रा में पाई जाती है। डॉ. अग्रवाल के अनुसार, इन बीठ में यूरिक एसिड और अमोनिया की मात्रा अधिक होती है, जो इन्हें खतरनाक बैक्टीरिया और फंगस के विकास के लिए अनुकूल बनाती है।
कबूतरों को खिलाने से नैचुरल ईकोलॉजिकल बैलेंस बिगड़ सकता है। जरूरत से ज्यादा खिलाने से न केवल उनमें खाना ढूंढने की क्षमता खत्म हो जाती है बल्कि पक्षियों की भीड़, उनके आक्रामक बिहेवियर और सार्वजनिक स्थानों के प्रदूषण में भी बढ़ौतरी होती है। इसके अलावा ब्रैड और बिस्कुट जैसे हाई प्रोटीन प्रोसैस्ड फूड कबूतरों की हैल्थ को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
कबूतरों की बॉट पब्लिक मोन्यूमेंट को खराब करती है, अपने एसिडिक नेचर के कारण हैरिटेज स्ट्रक्बर को नुकसान पहुंचाती है और इमारतों की नालियों और ए.सी. वेंट को ब्लॉक करती है। रैजिडेंशियल एरिया में घोंसले बनाने वाले कबूतर अनहेल्दी महौल पैदा करते हैं और बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
कबूतरों के पंखों और बीठ का अध्ययन कर रहा है एक पैनल
बीते सितम्बर माह में महाराष्ट्र सरकार ने कबूतरों के पंखों और बीठ के मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अपनी 13 सदस्यीय समिति में 2 विशेषज्ञों को आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया है। पैनल अन्य बातों के अलावा यह भी अध्ययन करेगा कि क्या नियंत्रित आहार देना संभव है। राज्य सरकार ने श्री वर्धमान परिवार के डॉ. अतुल शाह और वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट के डॉ. अनीश अंधेरिया को समिति में शामिल किया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 29 अगस्त 2025 को हुई विशेषज्ञ समिति की पहली बैठक में आमंत्रित सदस्यों के रूप में शामिल किए जाने के लिए प्राप्त आवेदनों पर विचार किया गया। तदनुसार विशेषज्ञ समितिने सर्वसम्मति से श्री वर्धमान परिवार मुंबई के ट्रस्टी डॉ. अतुल शाह और वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट मुंबई के अध्यक्षएवं सी.ई.ओ. डॉ. अनीश अंधेरिया को आमंत्रित सदस्य के रूप में स्वीकार करने पर सहमति व्यक्त की। 13 अगस्त के अपने आदेश में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि सामुदायिक स्वास्थ्य की रक्षा सर्वोपरि है।
उच्च न्यायालय के आदेश के बादराज्य सरकार ने राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक विजय कंडेवाड़ के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया, जो कबूतरों के पंखों और बीड के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेगी और यह भी देखेगी कि क्या उन्हें नियमितरूप से भोजन देने की अनुमति दी जा सकती है? अधिकारियों ने बताया कि समिति स्वास्थ्य संबंधी खतरों को ध्यान में रखते हुए यदि संभव हो तो नियंत्रित भोजन के लिएस्थानों की पहचान करेगी और इसके लिए नियम बनाएगी।
कबूतरों के संपर्क में आने से ये बीमारियां हो सकती हैं
हिस्टोप्लास्मीसिसः सूखी बीट के स्पोर्स को सांस के जरिए अंदर लेने सेहोनेवाला एक फंगल फेफड़ों का संक्रमण है।
किष्टीकों कोसिसः यह एक और फंगल इंफैक्शन है, जो फेफड़ों और दिमाग को प्रभावित कर सकता है।
सिटाकोसिस (तोता बुखार): एक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी जो गंभीर निमोनिया जैसी हो सकती है।
हाइपर सैसिटि विटी न्यूमोनाइटिसः पखो और बीठ के कणों को सांस के जरिए अंदर लेने से होने वाली एक एलर्जिक लंग डिजीज। लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से फेफड़े परमानेंट डैमेज हो सकते हैं।
स्वास्थ्य रक्षा के लिए क्या करें
- कवतरों के मत्ल के संवय को कम करने के लिए भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक क्षेत्रों में कबूतरों को दाना डालने में बचें।
- स्वच्छता और स्वास्थ्य निगहानी के साथ विनियमित आहार क्षेत्रों के कार्यान्वयन का समर्थन करें।
- कबूतरों के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरुकता बढ़ाएं और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों को बढ़ाव्य दें।
- कवक के बीज गुओं के सोस द्वारा अंकहिप को सीमित करने के लिए सुरक्षात्मक उपकरणों से कबूतरीके मतको सुरक्षित रूप से साफ़ करें।
- अधिकारियों को योजना बनाने में सामुदायिक नेताओं को शामिल करके सांस्कृतिक भावनाओं और वैज्ञानिक प्रमागों के बीच संतुलन बनाना चाहिए।