सीजेआई रमन्ना बोले: संसद में बिना बहस के पास तो हो रहे कानून, लेकिन भुगतना अदालतों को पड़ रहा
punjabkesari.in Sunday, Aug 15, 2021 - 02:43 PM (IST)

नेशनल डेस्कः प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने संसद और विधान सभाओं में बहस के अभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि यह एक ‘‘खेदजनक स्थिति’’ है क्योंकि गुणवत्तापूर्ण बहस नहीं करने के कारण कानूनों के कई पहलू अस्पष्ट रह जाते हैं और अदालतों पर बोझ बढ़ता है। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया के दौरान एक विस्तृत चर्चा मुकदमेबाजी को कम करती है क्योंकि जब अदालतें उनकी व्याख्या करती हैं, ‘‘हम सभी को विधायिका की मंशा पता होती है’’।
प्रधान न्यायाधीश ने 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ द्वारा शीर्ष अदालत के प्रांगण में आयोजित समारोह में विधि जगत के सदस्यों से सार्वजनिक जीवन में भाग लेने और कानूनों के बारे में अपने अनुभव साझा करने का आह्वान किया। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि देश के लंबे स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व वकीलों ने किया है। उन्होंने कहा, ‘‘चाहे वह महात्मा गांधी हों या बाबू राजेंद्र प्रसाद, वे कानूनी दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी संपत्ति, परिवार एवं जीवन का त्याग किया और आंदोलन का नेतृत्व किया।’’
#WATCH | CJI Ramana says, "If you see debates which used to take place in Houses in those days, they used to be very wise, constructive...Now, sorry state of affairs...There's no clarity in laws. It's creating lot of litigation&loss to govt as well as inconvenience to public..." pic.twitter.com/8Ca80rt8wC
— ANI (@ANI) August 15, 2021
'हमें पता होता था कि कानून क्यों बनाया गया है'
उन्होंने बार सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पहली लोकसभा और राज्यसभा के अधिकतर सदस्य वकील और कानूनी समुदाय के सदस्य थे। हम जानते हैं कि कानूनों पर बहस के संबंध में संसद में दुर्भाग्य से अब क्या हो रहा है।’’ उन्होंने कहा कि पहले विभिन्न संवैधानिक संशोधनों और उनके कारण लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव पर संसद में बहस हुआ करती थी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘बहुत पहले, मैंने औद्योगिक विवाद अधिनियम पेश किए जाते समय एक बहस देखी थी और तमिलनाडु के एक सदस्य ने इस बात को लेकर कानून पर विस्तार से चर्चा की थी कि कानून मजदूर वर्ग को कैसे प्रभावित करेगा। इससे अदालतों पर बोझ कम हुआ था, क्योंकि जब अदालतों ने कानून की व्याख्या की, तो हम सभी को विधायिका की मंशा की जानकारी थी। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब स्थिति खेदजनक है। बहस की कमी के कारण कानून बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारी अस्पष्टताएं होती हैं। हम नहीं जानते कि विधायिका का इरादा क्या है। हम नहीं जानते कि कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं। इससे लोगों को बहुत असुविधा होती है। ऐसा तब होता है, जब कानूनी समुदाय के सदस्य संसद और राज्य विधानमंडलों में नहीं होते हैं।’’