चंद्रयान-2 रचेगा इतिहास, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर करेगा खोज, आज तक नहीं पहुंचा कोई देश

punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2019 - 07:13 PM (IST)

बेंगलुरुः चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम' शनिवार तड़के चांद की सतह पर ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग' करने के लिए तैयार है। भारत का यह दूसरा चंद्र मिशन चांद के अब तक अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर प्रकाश डाल सकता है। चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' भारत के दूसरे चंद्र मिशन की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब से पहले इस प्रक्रिया को कभी अंजाम नहीं दिया है।
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इसरो के अनुसार चांद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है। इसने कहा कि चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाले क्षेत्रों में पानी मौजूद होने की संभावना है। इसके अलावा चांद पर ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है। इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप' कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है।
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चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम' को शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात एक बजे से दो बजे के बीच चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया की जाएगी और यह रात डेढ़ से ढाई बजे के बीच चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' करेगा। अन्वेषण से जुड़े उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए ‘सॉफ्ट लैंडिंग' परम आवश्यक होती है। इसमें लैंडर को आराम से धीरे-धीरे सतह पर उतारा जाता है, ताकि लैंडर और रोवर तथा उनके साथ लगे अन्य उपकरण सुरक्षित रहें। ‘सॉफ्ट लैंडिंग' इस मिशन की सबसे जटिल प्रक्रिया है और यह इसरो वैज्ञानिकों की ‘दिलों की धड़कनों' को थमा देने वाली होगी।
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लैंडर के चांद पर उतरने के बाद सात सितंबर की सुबह साढ़े पांच से साढ़े छह बजे के बीच इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान' बाहर निकलेगा और अपने वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा। इसरो को यदि ‘सॉफ्ट लैंडिंग' में सफलता मिलती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा तथा चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा।
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अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि ‘चंद्रयान-2' लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी' और ‘सिंपेलियस एन' के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने का प्रयास करेगा। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का जीवनकाल एक साल का है। इस दौरान यह चंद्रमा की लगातार परिक्रमा कर हर जानकारी पृथ्वी पर मौजूद इसरो के वैज्ञानिकों को भेजता रहेगा। वहीं, रोवर ‘प्रज्ञान' का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। इस दौरान यह वैज्ञानिक प्रयोग कर इसकी जानकारी इसरो को भेजेगा।


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Yaspal

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