Budget 2023: सरकार का 2047 तक ‘एनीमिया मुक्त’ भारत का लक्ष्य, जानिए कितनी खतरनाक है ये बीमारी
punjabkesari.in Thursday, Feb 02, 2023 - 12:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तावित बजट में सिकल सैल एनीमिया बीमारी को वर्ष 2047 तक भारत से जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्र सरकार के अनुसार इस बीमारी से जूझ रहे आदिवासी क्षेत्रों में 40 वर्ष तक के 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जाएगी।
ऐसे में आपको बताते हैं कि आखिर यह रोग है क्या और में भारत में इसकी क्या स्थिति है:
क्या है सिकल सैल एनीमिया बीमारी
एक मीडिया रिपोर्ट में नोएडा के फेलिक्स अस्पताल के चेयरमैन डॉ. डी.के. गुप्ता के हवाले से कहा गया है कि इस बीमारी को भी खत्म करना संभव है। वह कहते हैं कि सिकल सैल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है। इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सैल्स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्लॉकेज कर देती हैं। सिकल सैल एनीमिया में रैड ब्लड सैल्स मर भी जाती हैं और शरीर में खून की कमी हो जाती है। जैनेटिक बीमारी होने के चलते शरीर में खून भी बनना बंद हो जाता है। वहीं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण यह रोग कई जरूरी अंगों के डैमेज होने का भी कारण बनता है। इनमें किडनी, स्पिलीन यानी तिल्ली और लिवर शामिल हैं।
क्या हैं बीमारी के लक्षण
जब भी किसी को सिकल सैल एनीमिया हो जाता है तो उसमें कई लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे मरीज को हर समय हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द रहता है। शरीर के अंगों खासतौर पर हाथ और पैरों में दर्द भरी सूजन आ जाती है। खून नहीं बनता और बार-बार खून की भारी कमी होने के चलते खून चढ़ाना पड़ता है।
लाइलाज है बीमारी
सिकल सैल एनीमिया बीमारी का पूरी तरह निदान संभव नहीं है, हालांकि ब्लड जांच के माध्यम से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। फॉलिक एसिड आदि दवाओं के सहारे इस बीमारी के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए स्टैम सैल या बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक उपाय है। सिकल सैल एनीमिया में मौत का कारण संक्रमण, दर्द का बार-बार उठना, एक्यूट चैस्ट सिंड्रोम और स्ट्रोक आदि हैं। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मौत अचानक हो सकती है। बता दें कि पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार साल 2015 से 2016 के बीच 58.4 प्रतिशत बच्चे और 53 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी के शिकार हुए हैं। पिछले 6 दशकों से यह बीमारी भारत में पनप रही है। जनजातीय आबादी भी इस रोग से पीड़ित है।
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