क्लिनिकल ट्रायल के लिए बूस्टर डोज को मिल सकती है ICMR की मंजूरी

punjabkesari.in Sunday, Sep 12, 2021 - 12:37 PM (IST)

नेशनल डेस्क: एक विशेषज्ञ का कहना है कि टीकाकरण के बाद जिन लोगों में कम एंटीबॉडी विकसित हुईं हैं उन्हें बूस्टर डोज दी जा सकती है। माना जा रहा है कि वैक्सीन की दोनों डोज लगा चुके 20 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी विकसित नहीं हुई है।

द न्यू इंडियन एक्सप्रैस की रिपोर्ट के मुताबिक भुवनेश्वर में एक शोध इकाई के 23 प्रतिशत सदस्यों में एंटीबॉडी नहीं पाई गई हैं और इन लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज भी लग चुकी हैं। भुवनेश्वर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (ILS) के निदेशक डॉ अजय परिदा ने सुझाव दिया है कि जिन लोगों में कम एंटीबॉडी पाई गई हैं उन्हें बूस्टर डोज दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि कुछ कोविड संक्रमित लोगों में एंटीबॉडी का स्तर 30,000 से 40,000 है। यदि एंटीबॉडी का स्तर 60 से 100 है, तो हम कह सकते हैं कि व्यक्ति एंटीबॉडी पॉजिटिव है।

आपको बता दें कि भुवनेश्वर स्थित संस्थान, भारतीय SARS-CoV-2 जीनोम कंसोर्टियम (INSACOG) का एक हिस्सा है, जो देश भर में 28 प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है। यह कोरोना वायरस के बदलते हुए वेरिएंट के जीनोम का पता लगाता है।

इन लोगों को लगनी चाहिए बूस्टर डोज
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई लोगों में जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लग गई हैं उनमें एंटीबॉडी का स्तर चार से छह महीने के बाद कम होता देखा गया है। अजय परिदा ने कहा कि पूर्ण टीकाकरण के बावजूद कम या नकारात्मक एंटीबॉडी वाले लोगों के लिए बूस्टर डोज की जरूरत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि कोवीशील्ड और कोवैक्सीन 70 से 80 प्रतिशत प्रभावित हैं और इससे यह भी पता चला है कि 20 से 30 प्रतिशत वैक्सीन एंटीबॉडी जेनरेट नहीं करती है।  


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Content Editor

Hitesh

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